इंग्लैंड की क्रांति के कारण, परिणाम

इंग्लैंड की क्रांति के कारण, परिणाम

England Revolution history in Hindi-

दुनिया में कुछ क्रांतियां ऐसी हुई हैं जिन्होंने विश्व के इतिहास में अपनी अमिट छाप छोड़ी है, इंग्लैंड में 1688 ईस्वी में हुई गौरवपूर्ण क्रांति ऐसी ही एक क्रांति है| विश्व के इतिहास में पहली राजनीतिक क्रांति को हम इंग्लैंड की क्रांति के नाम से जानते हैं| यह क्रांति महान क्रांति, रक्तहीन क्रांति, गौरव पूर्ण क्रांति, शानदार क्रांति, Glorious Revolution आदि कई नामों से जानी जाती है|

इस क्रांति को रक्तहीन क्रांति इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह क्रांति रक्त की एक बूंद गिराए बिना तथा बिना किसी युद्ध के समाप्त हुई थी| इस क्रांति के बाद राजा और ब्रिटिश संसद का संघर्ष समाप्त हो गया था तथा संसद की सर्वोच्चता स्थापित हुई थी| England ki kranti से इंग्लैंड में संवैधानिक राजशाही की स्थापना हुई थी और राजाओं की अवैध और मनमानी शक्तियों को समाप्त कर दिया गया।

इंग्लैंड की क्रांति की पृष्ठभूमि-

इंग्लैंड की गौरवपूर्ण क्रांति स्टुअर्ट वंश के राजा जेम्स द्वितीय के शासनकाल में हुई थी| इस क्रांति के कारण इंग्लैंड विश्व का पहला देश बना जिसमें सर्वप्रथम संसद की स्थापना हुई थी| नॉर्मन युग के हेनरी प्रथम ने शासन कार्यों में परामर्श लेने के लिए एक सलाहकार परिषद की स्थापना की थी, इस परिषद को हम ‘क्युरिया रेजिस’ नाम से जानते हैं| क्युरिया रेजिस वर्तमान ब्रिटिश संसद का प्रारंभिक रूप थी| कुछ समय पश्चात सामंतों (बैरनों) ने राजा की निरंकुश शक्ति पर नियंत्रण हेतु एक घोषणा पत्र तैयार किया जिसे चार्टर कहा जाता है|

इस घोषणा पत्र को मानव जाति की स्वतंत्रता का महान अधिकार पत्र या मैग्नाकार्टा कहा जाता है| मैग्ना कार्टा को ब्रिटिश राज्य की संवैधानिक व्यवस्था और लोकतांत्रिक क़ानून का आधार माना जाता है|इंग्लैंड की सलाहकार परिषद ने मैग्नाकार्टा घोषणा पत्र को तैयार किया था और इस घोषणा पत्र पर उस समय के राजा जॉन ने 15 जून 1215 ईसवी को अपने हस्ताक्षर किए थे| मैग्नाकार्टा के अनुसार राजा परिषद की आज्ञा के बिना सामंतों की स्वतंत्रता में ना तो हस्तक्षेप कर सकता था और ना ही उनके अधिकारों का अपहरण कर सकता था| मैग्नाकार्टा के द्वारा राजा को पहली बार कानून के दायरे में लाया गया और यह समझाया गया कि सभी मनुष्य समान है| मैग्नाकार्टा को मानव के अधिकारों की बुनियाद रखने वाला दस्तावेज भी कहा जाता है|

इंग्लैंड के राजा हेनरी तृतीय ने क्युरिया रेजिस का नाम बदलकर पार्लियामेंट (संसद) रख दिया था| इस क्रांति के बीज वहां के राजा जेम्स प्रथम के शासनकाल में ही बोए गए थे, इसके बाद इंग्लैंड का राजा चार्ल्स प्रथम हुआ जो की बहुत ही निरंकुश शासक था, उसकी निरंकुशता के कारण राजा और संसद के मध्य संघर्ष बढ़ गया था| कालांतर में चार्ल्स प्रथम की निरंकुशता बहुत ज्यादा बढ़ गई थी जिससे चार्ल्स और संसद समर्थकों के बीच संघर्ष हरण हो गया था, इस संघर्ष को इंग्लैंड का गृहयुद्ध या प्यूरिटन क्रांति कहा जाता है|

प्यूरिटन क्रांति का काल 1642 से 1649 ईस्वी तक माना जाता है| इस गृह युद्ध में चार्ल्स प्रथम की हार हुई थी और 30 जनवरी 1649 को चार्ल्स प्रथम को फांसी दे दी गई थी| चार्ल्स प्रथम के बाद इंग्लैंड में क्रॉमवेल का शासन प्रारंभ हुआ और उसका शासनकाल 1660 ईस्वी तक था| एक चार्ल्स द्वितीय का शासन स्थापित हुआ, चार्ल्स द्वितीय की मृत्यु1685 ईस्वी में हुई और उसके बाद जेम्स द्वितीय इंग्लैंड का राजा बना| जेम्स द्वितीय बहुत ही निरंकुश राजा था, इसी कारण वश उसके शासन के तीसरे वर्ष अर्थात 1628 में इंग्लैंड की क्रांति हुई जो कि विश्व के इतिहास में शानदार क्रांति और गौरवपूर्ण क्रांति के नाम से जानी जाती है|

इंग्लैंड की क्रांति के कारण-

England ki kranti ke karan-

1688 में हुई गौरवपूर्ण क्रांति के कई कारण थे, किसी एक कारण को श्रेय देना बहुत ही मुश्किल है| वास्तव में इंग्लैंड की क्रांति का मूल कारण इंग्लैंड के लोगों में फैला हुआ सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक असंतोष था| इंग्लैंड की क्रांति के कारण अग्रलिखित है-

1- कैथोलिकों सैनिक अधिकारी को बनाना-
जेम्स द्वितीय के शासनकाल में बहुत से कैथोलिकों को सेना में अधिकारी बनाया गया| जबकि दूसरी ओर इंग्लैंड की संसद ने इन नियुक्तियों को असंवैधानिक बताया| इन नियुक्तियों के कारण जेम्स द्वितीय और संसद के बीच टकराव की स्थिति उत्पन्न हुई और जेम्स द्वितीय ने संसद को विसर्जित कर दिया| संसद के विसर्जन के पश्चात क्रांति की शुरुआत के कारणों को बल मिला|

2- धार्मिक अनुग्रह की द्वितीय घोषणा-
इस घोषणा के द्वारा तत्कालीन सम्राट जेम्स द्वितीय ने कैथोलिक समाज के पक्ष में क्लैरेंडन कोर्ट एक्ट एवं अन्य कानूनों को स्थापित कर दिया| कैथोलिक अनुयायियों को प्रार्थना सभाओं, पूजा पाठ एवं सरकारी पदों पर नियुक्त की खुली छूट दे दी गई| जहां एक और कैथोलिक समाज को कई प्रकार की छूट प्रदान की गई वही दूसरी ओर प्रोटेस्टेंट जनता की दृष्टि में यह कानून के विरुद्ध था|

Important point:- धार्मिक अनुग्रह की द्वितीय घोषणा कब हुई थी? 

इंग्लैण्ड को कैथोलिक देश बनाने के लिए जेम्स द्वितीय ने दो बार (पहली बार 1687 ई. में और दूसरी बार 1688 ई. में) धार्मिक अनुग्रह की घोषणा की थी ।

3- कोर्ट ऑफ हाई कमीशन की पुनः स्थापना-
जेम्स द्वितीय ने कैथोलिक समाज के अनुयायियों की नियुक्ति अधिकारियों के रूप में की थी और इन्हीं युक्तियों को वैधानिक रूप प्रदान करने के लिए राजा ने कोर्ट ऑफ हाई कमीशन की पुनः स्थापना की, जबकि संसद इस प्रकार के न्यायालयों को निषेध कर चुकी थी| इस कारणवश संसद के साथ-साथ इंग्लैंड की प्रोटेस्टेंट जनता भी राजा के विरुद्ध हो गई|

4- पादरियों के विरुद्ध मुकदमा-
जेम्स द्वितीय ने अपने द्वारा की गई घोषणाओं को चर्चाओं में पढ़कर सुनाए जाने का आदेश दिया परंतु उस समय 7 पादरियों ने इस आज्ञा का पालन ना करके चर्च में घोषणापत्र को पढ़ने से इंकार कर दिया| पादरियों के खिलाफ राज आज्ञा का पालन ना करने के जुर्म में राजद्रोह के अपराध में मुकदमा चलाया गया| जब पादरियों को राजद्रोह के जुर्म में गिरफ्तार किया गया तो लंदन में जनाक्रोश बहुत ज्यादा बढ़ गया जिसने इंग्लैंड की क्रांति को अवश्यंभावी बना दिया|

5- जेम्स द्वितीय के पुत्र का जन्म
जेम्स द्वितीय की दो पत्नियां थी और प्रथम पत्नी से दो पुत्रियां थी, जिनका नाम मेरी तथा एन था| मेरी का विवाह प्रोटेस्टेंट शासक विलियम ऑफ ऑरेंज के साथ हुआ था इस कारणवश मेरी प्रोटेस्टेंट समुदाय की समर्थक थी| और उस समय लोगों को यह लगता था कि जेम्स द्वितीय के कोई पुत्र नहीं है इस कारणवश आगे चलकर “मेरी” जेम्स के राज्य की सर्वे सर्वा होगी और उसके समय में प्रोटेस्टेंट को फलने-फूलने का शुभ अवसर प्राप्त होगा| परंतु 10 जून 1688 ईस्वी को जेम्स की द्वितीय पत्नी ने पुत्र को जन्म दिया| यह समाचार सुनकर इंग्लैंड की जनता अचंभित रह गई और लोगों को यह लगा कि जेम्स का पुत्र राजा बनकर भविष्य में प्रोटेस्टेंट धर्म को खत्म करने का प्रयास करेगा और इसी खतरे के कारण उन लोगों ने इंग्लैंड की क्रांति की शुरुआत की|

इंग्लैंड की क्रांति के परिणाम-

England ki kranti ke parinam-
1688 ईसवी की इंग्लैंड की क्रांति इतिहास में गौरवपूर्ण क्रांति के नाम से इस लिए प्रसिद्ध है, क्योंकि बिना खून की एक बूंद बहाये तथा बिना युद्ध लड़े इंग्लैंड में जेम्स द्वितीय के निरंकुश शासन का अंत करके संसद की सत्ता स्थापित कर दी गई|
इस क्रांति के विश्व- इतिहास पर भी बड़े दूरगामी एवं व्यापक परिणाम हुए, जो निम्नवत है-

1- राजा के दैवीय अधिकारों का अंत-
क्रांति से पूर्व इंग्लैंड के अधिकांश सम्राट “राजा के दैवी अधिकारों के सिद्धांत” में विश्वास करते आ रहे थे| वह अपने को पृथ्वी पर ईश्वर का प्रतिनिधि मानने के साथ-साथ यह भी मानते थे कि राजा को अपनी स्वेच्छा से शासन करने का अधिकार था| इस क्रांति ने यह स्पष्ट कर दिया कि राजा का पद जनता की इच्छा पर निर्भर करता है, ना की दैवीय अधिकारों पर|

2- संसद की सर्वोच्चता की स्थापना-
इंग्लैंड में गौरवपूर्ण क्रांति की सफलता के पश्चात संसद की सर्वोच्चता स्थापित हो गई| इससे यह सिद्ध हो गया कि जनता के प्रतिनिधि संसद की शक्ति अधिक है और राजा को संसद की इच्छा के अनुसार ही शासन करना चाहिए|

3- राजा और संसद के संघर्ष का अंत-
गौरव पूर्ण क्रांति के पश्चात राजा और संसद के संघर्ष का अंत हो गया, जिससे इंग्लैंड के आर्थिक विकास की गति में तेजी आ गई|

4- राजा की निरंकुशता पर प्रतिबंध-
संसद ने1689 में बिल ऑफ राइट्स पारित करके राजा की निरंकुशता पर अंकुश लगा दिया| निरंकुशता समाप्त होने पर स्वतंत्रता और समानता के आदर्शों की स्थापना की गई| इस बिल के द्वारा निश्चित कर दिया गया कि इंग्लैंड में प्रोटेस्टेण्ट धर्म का अनुयाई ही राजा बन सकेगा|

5- स्वतंत्र न्यायपालिका की स्थापना-
इंग्लैंड में क्रांति की सफलता के पश्चात न्यायपालिका की स्थापना की गई| अब न्यायाधीश स्वतंत्र हो गए थे, क्योंकि न्यायाधीशों पर राजा का कोई नियंत्रण नहीं रहा|

6- यूरोप में क्रांतियों का प्रचलन-
इंग्लैंड की गौरवपूर्ण क्रांति की सफलता से प्रोत्साहित होकर यूरोप में राजनीतिक क्रांतियों की एक श्रृंखला प्रारंभ हो गई|

7- इंग्लैंड और फ्रांस में विरोध-
फ्रांस, यूरोप में कैथोलिक धर्म का नेतृत्व कर रहा था; अतः जेम्स द्वितीय के साथ फ्रांस के मधुर संबंध थे, परंतु इंग्लैंड में प्रोटेस्टेंट धर्म की मान्यता स्थापित हो जाने से इंग्लैंड और फ्रांस के संबंधों में कटुता उत्पन्न हो गई|

8- इंग्लैंड में संसदीय शासन का विकास-
19वीं सदी में इंग्लैंड में संसदीय शासन प्रणाली का तेजी से विकास हुआ| 1832 ईसवी में पहला सुधार अधिनियम पारित हुआ, जिससे लोगों को मताधिकार प्राप्त हुआ|1867 ईसवी,1884-85 तथा 1911 ईस्वी में इंग्लैंड में सभी वयस्क पुरुषों को मताधिकार मिल गया| 1918 ईस्वी में इंग्लैंड में महिलाओं को भी मताधिकार प्राप्त हो गया| इस प्रकार इंग्लैंड में संसदीय शासन मजबूती से स्थापित हो गया और ब्रिटिश संसद “सरकार की जननी” कही जाने लगी| इससे हम कह सकते हैं कि इंग्लैंड के इतिहास में रक्तहीन क्रांति एक युगांतकारी घटना थी|

यह भी जानें- फ्रांस की क्रांतिRussian Revolution History in Hindi ,  1857 की क्रांति 


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