प्रगतिवादी युग के कवि

प्रगतिवादी युग के प्रवर्तक, कवि एवं उनकी रचनाएं –

सन 1936 के आस-पास काव्य लेखन के क्षेत्र में बहुत अमूल चूल परिवर्तन हुए, इन परिवर्तनों के फलस्वरूप कविता के नए स्वरूप का आगमन हमारे सम्मुख हुआ, जिसे प्रगतिवादी कवितायेँ और हिंदी साहित्य में इस युग को प्रगतिवादी युग (Pragativadi Yug) कहा जाता है| प्रगतिवाद की कविताओं ने जीवन को यथार्थ से जोड़ा। प्रगतिवादी युग के अधिकांश कवि कार्ल मार्क्स की समाजवादी विचारधारा से प्रभावित हैं।

प्रगतिवादी कवियों को हम तीन श्रेणियों में विभाजित कर सकते हैं| प्रथम श्रेणी में उन काव्य लेखकों को सम्मिलित किया गया मूल रूप से पूर्ववर्ती काव्यधारा छायावाद से सम्बंधित हैं, दूसरी श्रेणी में वे कवि हैं जो मूल रूप से प्रगतिवादी कवि हैं और तृतीय श्रेणी में वे कवि है जिन्होंने अपनी काव्य-साधना प्रगतिवादी कविताओं से शुरु की परन्तु बाद में उन्होंने प्रयोगवादी या नई प्रकार की कविताओं की ओर अपने काव्य को सृजित किया|

प्रगतिवादी धारा में समाज के शोषित वर्ग, मज़दूर एवं किसानों के प्रति सहानुभूति व्यक्त की गयी, इसके साथ साथ धार्मिक रूढ़ियों, उंच नीच की भावना और सामाजिक विषमताओं पर चोट की गयी| इस युग में हिंदी कविता एक बार फिर किसानों, मजदूर, खेतों और खलिहानों से जुड़ी।

प्रमुख प्रगतिवादी कवि और उनकी प्रगतिवादी कविताओं का उल्लेख अग्रलिखित है-

☑ सुमित्रानंदन पंत- प्रगतिवादी रचनाएं- युगांत, युगवाणी, ग्राम्या।
☑ सूर्यकांत त्रिपाठी निराला- प्रगतिवादी कवितायेँ- कुकुरमुत्ता, अणिमा, नए पत्ते, बेला, अर्चना।
☑ नरेन्द्र शर्मा- प्रवासी के गीत,.पलाश-वन, मिट्टी और फूल, अग्निशस्य।
☑ रामेश्वर शुक्ल अंचल- किरण-वेला, लाल चुनर।
☑ माखन लाल चतुर्वेदी-.मानव|
☑ रामधारी सिंह ‘दिनकर’- कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी, परशुराम की प्रतीक्षा।
☑ उदयशंकर भट्ट- अमृत और विष।
☑ बालकृष्ण शर्मा नवीन-.कुमकुम, अपलक, रश्मि-रेखा|
☑ जगन्नाथ प्रसाद मिलिंद- बलिपथ के गीत, भूमि की अनुभुति, पंखुरियां।
☑ केदारनाथ अग्रवाल- युग की गंगा, फूल नहीं रंग बोलते हैं, लोक तथा आलोक, नींद के बादल।
☑ राम विलास शर्मा- रूप-तरंग|
☑ नागार्जुन- युगधारा, हजार-हजार बांहों वाली, प्यासी पथराई आंखे, तुमने कहा था, तालाब की मछलिया, पुरानी जूतियों का कोरस, सतरंगे पंखों वाली, भस्मासुर (खंडकाव्य)।
☑ रांगेय-राघव- अजेय खंडहर, मेधावी, राह के दीपक, पांचाली, पिघलते पत्थर।
☑ शिव-मंगल सिंह ‘सुमन’- हिल्लोल, जीवन के गान, प्रलय सृजन।
☑ त्रिलोचन- मिट्टी की बात, धरती|


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