मार्ले-मिंटो सुधार Morley-Minto Reforms 1909 in Hindi
Morley-Minto Reforms 1909 in Hindi-
भारत परिषद अधिनियम 1909 को मार्ले-मिंटो सुधार के नाम से भी जाना जाता है| सन 1905 में लॉर्ड मिंटो को भारत का वायसराय नियुक्त किया गया था और थोड़े ही दिनों के पश्चात जॉन मार्ले को भारत सचिव के रूप में नियुक्त किया गया था| इन्हीं दोनों लोगों के नाम पर भारत परिषद अधिनियम 1909 का नाम मार्ले मिंटो सुधार रखा गया था|
जिस समय लॉर्ड मिंटो को भारत का वायसराय नियुक्त किया गया उस समय भारत में स्वदेशी आंदोलन अपने पैर पसार रहा था| लॉर्ड मिंटो के समय में ही मुस्लिम लीग की स्थापना (1906) हुई थी और इन्हीं के समय में सूरत में 1907 ईस्वी में कांग्रेस का विभाजन भी हुआ था|
अक्टूबर 1906 में आगा खान के नेतृत्व में मुस्लिम समुदाय के लोगों ने लॉर्ड मिंटो से मुलाकात की और मुसलमानों के लिए अलग मतदाता होने की मांग की| इसी समूह ने जल्द ही मुस्लिम लीग की स्थापना की|
मार्ले मिंटो सुधार-
मार्ले मिंटो सुधार क्या था?
भारतीय परिषद अधिनियम 1909, ब्रिटिश संसद का एक ऐसा अधिनियम था जिसने विधायी परिषदों में कुछ सुधार किए और ब्रिटिश भारत के शासन में सीमित रूप से भारतीयों की भागीदारी में वृद्धि की, अर्थात इस सुधार के बाद ब्रिटिश हुकूमत के कार्यों में भारतीय लोगों की भागीदारी में वृद्धि हुई थी|
मार्ले-मिन्टो सुधार (भारतीय परिषद अधिनियम) किस वर्ष में पारित किया गया था? 1909 में
मार्ले मिंटो सुधार के महत्वपूर्ण तथ्य क्या थे?
मार्ले मिंटो सुधार के महत्वपूर्ण तथ्य निम्नलिखित हैं-
- केंद्रीय विधान परिषद के सदस्यों की संख्या 16 से 60 हो गई।
- इस सुधार के अनुसार प्रांतीय विधानमंडल के सदस्यों की संख्या में वृद्धि की गई, जिसके अनुसार बंगाल, मद्रास और बॉम्बे के प्रांतों में इनकी संख्या 50 की गई इसके अतिरिक्त अन्य प्रांतों में इनकी संख्या 30 की गई|
- केंद्रीय और प्रांतीय विधान परिषदों के सदस्यों को चार श्रेणियों में विभाजित किया गया था-
- पूर्व पदाधिकारी सदस्य,
- मनोनीत आधिकारिक सदस्य,
- मनोनीत गैर-सरकारी सदस्य तथा और
- निर्वाचित सदस्य
- अंग्रेजों ने इस सुधार में मुस्लिम मतदाताओं को भी जोड़ा, और इसका प्रमुख उद्देश्य हिंदुओं और मुसलमानों के बीच विवाद उत्पन्न करना था| परिषद की कुछ सीटों को मुसलमानों के लिए आरक्षण भी दिया गया था|
- निर्वाचित सदस्य अप्रत्यक्ष रूप से चुने जाते थे, अर्थात निर्वाचित सदस्य का चुनाव जनता द्वारा नहीं होता था|
- निर्वाचन परिषद का गठन स्थानीय निकायों से होता था। ये प्रांतीय विधान परिषदों के सदस्यों का निर्वाचन करते थे।
- केन्द्रीय व्यवस्थापिका के सदस्यों का निर्वाचन प्रांतीय विधान परिषदों के सदस्य करते थे।
मार्ले मिंटो सुधार का उद्देश्य और प्रभाव क्या था?
इस सुधार से ब्रिटिश हुकूमत ने भारत के मुस्लिम और हिंदू संप्रदाय में फूट डालने का प्रयास किया,भारत परिषद अधिनियम का प्रमुख उद्देश्य भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को कमजोर बनाना था| इस सुधार में मुस्लिमों को वरीयता देने के पीछे अंग्रेजों का उद्देश्य मात्र इतना था कि ऐसा करके वे मुस्लिमों को भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन से अलग कर लेंगे|
उन्होंने मुस्लिमों से कहा कि मुस्लिमों की रुचि और उनकी मांग अन्य भारतीयों से अलग है| भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को कमजोर करने के लिए उन्होंने सांप्रदायिकता को बढ़ाना शुरू कर दिया|
मार्ले मिंटो सुधार का प्रभाव क्या था?
मार्ले मिंटो सुधार ने भारत की परिषद की शक्तियों में कोई खास बदलाव नहीं किए| 1857 की क्रांति के बाद बनाई गई बुनियादी हुकूमत अभी भी अपने ही रूप से काम कर रही थी उसमें कोई खास बदलाव नहीं हुआ था| सुधार में एकमात्र महत्वपूर्ण बदलाव आया हुआ था कि सरकार ने भारतीयों को उनकी पसंद के अनुसार कुछ उच्च पदों पर नियुक्त करने लगी थी|
सत्येंद्र प्रसाद सिन्हा (लार्ड सिन्हा) गवर्नर जनरल की कार्यकारी परिषद के सदस्य बनने वाले पहले भारतीय थे। कालांतर में बंगाल के विभाजन पर रोक लगा दी गई और भारत की राजधानी कोलकाता से दिल्ली परिवर्तित की गई, यह भी मार्ले-मिंटो सुधारों के प्रभाव और परिणाम के रूप में जाना जाता है|
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