First World War History in Hindi
Category : History in Hindi Language
History of First World War in Hindi-
प्रथम विश्व युद्ध 1914 में आर्कड्यूक फ्रांसिस फर्डिनेंड की हत्या के बाद शुरू हुआ था और 1918 में इसकी समाप्ति हुई थी| इस युद्ध में जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी, बुल्गारिया और ओटोमन साम्राज्य (केंद्रीय शक्तियों) ने ग्रेट ब्रिटेन, फ्रांस, रूस, इटली के खिलाफ युद्ध लड़ा था जबकि रोमानिया, जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका सहयोगी शक्तियों के रूप में इस युद्ध लिया था| प्रथम विश्व युद्ध में लगभग 160 लाख से ज्यादा सैनिक और नागरिक मारे गए थे, जबकि 5 करोड़ से ज्यादा लोग घायल हुए थे|
Important Facts about World War First in Hindi
☑ प्रथम विश्व युद्ध की शुरुआत कब हुई थी? 28 जुलाई 1914
☑ प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति कब हुई?– 11 नवंबर 1918
प्रथम विश्व युद्ध के कारण-
Causes of World War I in Hindi-
प्रथम विश्व युद्ध के कई मूल कारण थे जिनके कारण यह विश्व युद्ध हुआ और पूरे विश्व में भारी मात्रा में जन धन की हानि हुई| प्रथम विश्व युद्ध के प्रमुख कारणों में गुप्त संधियां, साम्राज्यवाद, सैनिकवाद, उग्र राष्ट्रीयता तथा दुष्प्रचार थे|
इसके अतिरिक्त कई अन्य कारण भी थे जिन्होंने प्रथम विश्वयुद्ध को अनिवार्य बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई| प्रथम विश्व युद्ध के प्रमुख कारणों का विवरण निम्नलिखित है-
गुप्त संधियां –
प्रथम विश्व युद्ध के होने में गुप्त संधियों का महत्वपूर्ण योगदान था और इन गुप्त संधियों के कारण ही 1914 ईस्वी से पूर्व संपूर्ण यूरोप दो शक्तिशाली गुटों में बट गया था| जर्मनी के प्रधानमंत्री बिस्मार्क ने सर्वप्रथम फ्रांस को यूरोपीय राज्यों से अलग रखने के लिए गुटबंदी प्रथा को जन्म दिया| विश्व मार्क की मृत्यु के उपरांत जर्मनी के सम्राट कैसर विलियम द्वितीय ने गुट बंदियों को विशेष प्रोत्साहन दिया और इन्हीं गुड बंदियों के परिणाम स्वरुप प्रथम विश्व युद्ध की पृष्ठभूमि तैयार हो गई| और अंततः एक भयानक युद्ध इस पूरे विश्व को देखना पड़ा|
सैनिकवाद-
जिस समय फ्रांस में क्रांति हुई उसके पश्चात फ्रांस में सैनिक शिक्षा एवं सैनिक सेवा को अनिवार्य रूप से लागू कर दिया गया| इस तरह से फ्रांस में सैनिकों को तैयार किया जाने लगा और फ्रांस के सैनिक वादे ने यूरोप के अन्य देशों में भी सैनिक वाद की भावना को प्रेरित किया| यूरोप के अन्य देशों में भी अपने यहां पर सैनिकों के खेत तैयार करने पर लग गए| उस समय यूरोप के देशों ने यह मान लिया था की अपनी स्वतंत्रता और राष्ट्रीय गौरव को बनाए रखने के लिए उन्हें सदैव युद्ध के लिए तैयार रहना पड़ेगा| सैनिकवाद की इस भावना के कारण ही यूरोप में बड़ी मात्रा में अस्त्र एवं शस्त्र का निर्माण शुरू हुआ| इंग्लैंड एवं जर्मनी ने अपनी सेना के विस्तार में एड़ी चोटी का जोर लगा दिया और अपनी नौसैनिक शक्ति उन्होंने चरम सीमा पर पहुंचा दिया| सैनिक वाद के इस विकास ने यूरोप के राज्यों की जनता में एक उत्तेजना फैला दी और यूरोपीय शासकों ने सैनिक वाद को अपनी राष्ट्रीय नीति का आधार बना लिया| यही संकुचित मानसिकता प्रथम विश्वयुद्ध का कारण बनी|
उग्र राष्ट्रीयता-
1870 ईस्वी से 1914 ईस्वी के समय में यूरोप के कई देशों (इंग्लैंड, स्पेन, पुर्तगाल, इटली, फ्रांस जर्मनी, बेल्जियम, हालैंड) में राष्ट्रीयता की भावना प्रबल थी| इसी राष्ट्रीयता की भावना के कारण ही प्रत्येक यूरोपीय राष्ट्र अपने राष्ट्रीय हितों को पूरा करने एवं अन्य राष्ट्रों के हितों की अवहेलना करने के लिए तत्पर हो चुका था| यह सभी यूरोपीय देश एशिया, अफ्रीका और बाल्कन प्रदेश में संघर्षरत थे| इन देशों ने अन्य देशों का शोषण करना प्रारंभ कर दिया और इसी शोषण के फलस्वरुप अनेक राष्ट्रों में पारस्परिक तनाव, स्पर्धा एवं द्वेष में युद्ध की स्थिति उत्पन्न कर दी|
बोस्निया और हर्जेगोविना की समस्या-
बोस्निया और हर्जेगोविना के क्षेत्र बाल्कन के क्षेत्र में स्थित थे और उस समय यह क्षेत्र कार्य की के ऑटोमन साम्राज्य के अधीन थे| बर्लिन कांग्रेस के निर्णय के अनुसार इन प्रदेशों पर ऑस्ट्रिया का प्रशासनिक नियंत्रण कर दिया गया था| लेकिन सन 1928 ई में ऑस्ट्रिया ने बोस्निया और हर्जेगोविना को अपने साम्राज्य का एक अभिन्न अंग बना लिया था| सर्वेयर ने इन प्रदेशों पर अपने अधिकार का दावा किया और इन दावों से ऑस्ट्रिया और सर्बिया के संबंधों में तनाव उत्पन्न हो गया और यही तनाव आगे चलकर प्रथम विश्वयुद्ध का कारण बना|
मोरक्को संकट-
1904 में इंग्लैंड और फ्रांस की मित्रता संधि हो गई और इस संघ से जर्मनी बहुत ही असंतुष्ट हो गया| जर्मनी के असंतुष्ट होने का कारण यह था कि इस संधि ने उसके हितों पर पानी फेर दिया था| जर्मन सम्राट कैसर विलियम द्वितीय ने फ्रांस के समक्ष दो मांगे रखी थी-
पहली- “ फ्रांस के विदेश मंत्री देलकासे की पदच्युति”,
दूसरी “अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में मोरक्को की समस्या पर विचार”
उन्होंने इन मांगो के पूरा न होने पर युद्ध छेड़ देने की धमकी भी दे दी थी| फ्रांस के अनुरोध पर स्पेन में अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन बुलाया गया और इस सम्मेलन में इंग्लैंड ने फ्रांस का साथ दिया| इसी बीच सन 1970 ईस्वी में इंग्लैंड रूस तथा फ्रांस में एक मैत्री संधि हो गई इस मैत्री संधि ने जर्मनी का रोग और भी अधिक बढ़ा दिया सन 1911 ईस्वी में पुनः मोरक्को का संकट उपस्थित हो गया जिसने फ्रांस और जर्मनी के बीच युद्ध होने की संभावना को और भी प्रबल बना दिया|
बाल्कन समस्या-
बाल्कन प्रदेश में रूस ने पान स्लाव आंदोलन को प्रोत्साहन दिया था जिसके परिणाम स्वरुप बाल्कन राष्ट्रों की इसाई जनता टर्की की अधीनता से मुक्त होने के लिए संघर्षरत हो गई दूसरी ओर बरलिन संधि के बाद से टर्की पर जर्मनी का प्रभाव बढ़ने लगा| तुर्की के सुल्तान की अयोग्यता का लाभ उठाकर 1911 ईस्वी मैं इटली |त्रिपोली पर अधिकार कर लिया| इससे उत्साहित होकर बाल्कन राज्य {यूनान, सर्बिया मोंटेनेग्रो तथा बुलगारिया} ने 1912 ईस्वी में धरती पर आक्रमण कर उसको बुरी तरह पराजित कर दिया| युद्ध के बाद बाल्कन राज्य में परस्पर संघर्ष छिड़ गया: जिससे बुलगारिया को पराजय का मुंह देखना पड़ा| इन बाल्कन युद्ध ने टर्की में जर्मनी के बढ़ते प्रभाव को रोक दिया| इस प्रकार बाल्कन समस्या ने यूरोप में प्रथम विश्वयुद्ध का वातावरण तैयार कर दिया|
प्रथम विश्व युद्ध के तात्कालिक कारण:
Immediate cause of world war 1 in Hindi
सेराजेवो हत्याकांड-
बोस्निया की राजधानी सेराजेवो में ऑस्ट्रिया हंगरी साम्राज्य के उत्तराधिकारी युवराज आर्क ड्यूक फ्रांसिस फर्डिनेंड तथा उसकी पत्नी को कुछ आतंकवादियों ने 28 जून 1984 को बम से उड़ा दिया| इसके लिए ऑस्ट्रिया हंगरी ने सर्बिया सरकार को दोषी ठहराया और उसे कुछ अपमानजनक शर्तें स्वीकार करने का आदेश दिया| सर्वेयर ने ऑस्ट्रिया की शर्तें स्वीकार करने से इनकार कर दिया| ऑस्ट्रिया हंगरी ने सर्बिया पर आक्रमण कर दिया और 28 जुलाई 19 14 ईसवी को युद्ध की घोषणा दी प्रकाशित करवा दी| सर्बिया कि जाति का संरक्षक होने के कारण रोज भी उसकी रक्षा के लिए कूद पड़ा| 1 अगस्त 1914 ईसवी को इंग्लैंड तथा फ्रांस ने सर्बिया के पक्ष में युद्ध की घोषणा कर दी| इस प्रकार यूरोप में प्रथम विश्व युद्ध का आरंभ हो गया|
प्रथम विश्व युद्ध के परिणाम-
Results of World War One in Hindi-
प्रथम विश्व युद्ध 20 शताब्दी की एक भयंकर तथा विनाशकारी घटना थी| इसकी चपेट मैं लगभग 30 देश आ गए थे| इसके परिणाम अधिकांशतः विनाशकारी सिद्ध हुए किंतु कुछ परिणाम गुणकारी भी थे| प्रथम विश्व युद्ध के परिणामों का विवरण निम्नलिखित है-
जन धन की हानि –
इस युद्ध में प्रथम बार बड़े पैमाने पर तबाही हुई| इस युद्ध में केंद्रीय शक्तियों{ जर्मनी और साथी देश] के 3300000 सैनिक मारे गए तथा 82 लाख 50, हजार सैनिक घायल हुए; जबकि मित्र राष्ट्रों[ इंग्लैंड; फ्रांस; इटली और साथी देश] के 51 लाख 50 हजार सैनिक मारे गए तथा लगभग 1 करोड़28 लाख सैनिक घायल हुए| हवाई हम लोग, महामारी यो तथा अका लो के कारण गैर- सैनिक लोगों की बड़ी संख्या में जाने गई| अनिल नगर ध्वस्त हो गए और अनेक देशों की अर्थव्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गई|
आर्थिक परिणाम-
प्रथम विश्वयुद्ध में धन की अपार विनाश ने अनेक देशों को अमेरिका का कर्जदार बना दिया| विभिन्न देशों की मुद्राओं का अवमूल्यन हो जाने से संसार में भयानक आर्थिक मंदी फैल गई| दिसंबर 1922 ईस्वी में जर्मनी के मार्क का मूल्य इतना अधिकार गिर गया था कि एक पाउंड के बदले 34,000 मार्क प्राप्त किए जा सकते थे| व्यापार नष्ट होने से यूरोप की आर्थिक व्यवस्था बिगड़ गई| रूस दिवालिया होने की कगार पर पहुंच गया| सबसे भयानक आर्थिक परिणाम जर्मनी पर पड़े| उसके अधिकार की अल्सेस- लॉरेन क्षेत्र तथा सार घाटी की कोयला खाने फ्रांस को दे दी गई| उसे 6 अरब 50 करोड़ पाउंड का हर्जाना देने को विवश किया गया|
राजनीतिक परिणाम-
प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात यूरोप के मानचित्र में अनेक महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए तथा एक नवीन युग का प्रारंभ हुआ| इस युद्ध के प्रमुख राजनीतिक निम्नलिखित थे –
निरंकुश राज्यों का अंत-
ऑस्ट्रिया हंगरी’ जर्मनी तथा रूस के राजवंशो का अंत हो गया| बुलगारिया तथा टर्की का निरंकुश शासन भी समाप्त हो गया| सन 1917 ईस्वी में रूस की जनता ने अपने सम्राट जार के विरुद्ध क्रांति करके उसके शासन को समाप्त कर दीया| तत्पश्चात रुश मेलेनिन के नेतृत्व में साम्यवादी शासन की स्थापना हुई|
नवीन गणतंत्र की स्थापना-
प्रथम विश्व युद्ध से पूर्व केवल फ्रांस, पुर्तगाल तथा स्विट्जरलैंड इन 3 देशों में गणतंत्र की स्थापना हो सकी थी, किंतु युद्ध के पश्चात कई देशों में गणतंत्र की स्थापना|
राष्ट्रीय भावनाओं का विकास-
इस महा युद्ध के पश्चात राष्ट्रीयता एवं आत्म निर्णय के सिद्धांतों को व्यापक मान्यता दी गई| कई स्थानों पर जनता को सार्वजनिक मतदान का अधिकार दिया गया| राष्ट्र के निर्माण के संबंध में एक जाति तथा एक राज्य का सिद्धांत भी लागू किया गया| इसके आधार पर यूरोप में 8 नए देशों जैसे- युगोस्लाविया, पोलैंड, चेकोस्लोवाकिया आदि का निर्माण किया गया|
अमेरिका के प्रभाव में वृद्धि-
इस महा युद्ध में मित्र- राष्ट्र कि विजय युद्ध में अमेरिका की प्रवेश से हुई थी| इससे यूरोप की राजनीति में अमेरिका का प्रभाव बढ़ गया| अमेरिका के तात्कालीन राष्ट्रपति वुडरो विल्सन वर्साय की संधि में प्रमुख भूमिका निभाई थी|
प्रमुख संधियां-
ऑस्ट्रिया हंगरी को सेंट जर्मन की संधि पर हस्ताक्षर करनी पड़ी| इस संधि द्वारा ऑस्ट्रिया और हंगरी को दो अलग-अलग राज्य में बांट दिया गया| ऑस्ट्रिया के कुछ प्रदेश पोलैंड, चेकोस्लोवाकिया और युगोस्लाविया को दे दिए गए तथा उन प्रदेशों की स्वतंत्रता को मान्यता देने के लिए बाध्य किया गया| उसके सैन्य शक्ति को क्षीण कर दिया गया तथा उस पर भविष्य में जर्मनी से आर्थिक राजनीति संबंध रखने पर प्रतिबंध लगा दिया गया| टर्की को सेवर्स की संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए विवश किया गया| इस संधि ने टर्की सम्राज्य को बिल्कुल छिन्न-भिन्न कर दिया|