सरोजनी नायडू का जीवन परिचय Sarojini Naidu Biography in Hindi

Sarojini Naidu Biography in Hindi-

सरोजिनी नायडू ‘भारत कोकिला’ के साथ-साथ एक क्रांतिकारी, देशभक्त और कुशल राजनीतिज्ञ भी थीं। वह भारत की महिला स्वत्रंता सेनानियों में अग्रणी स्थान रखती हैं| उन्होंने राजनीतिक क्षितिज को विशेष आभा प्रदान की। सरोजिनी नायडू उन रत्नों में से एक थीं जिन्हें गोपाल कृष्ण गोखले और महात्मा गाँधी जैसे महान नायकों ने गढ़कर महिमामण्डित किया था। 

“भारत कोकिला’ सरोजिनी नायडू विश्व की एक सुप्रसिद्ध कवयित्री तथा भारत के राष्ट्रीय-क्षितिज की कर्मठ नायिका थी| वह अपनी विलक्षण प्रतिभा, काव्य-कुशलता, वक्तृत्व-शक्ति, राजनीति-ज्ञान तथा अन्तर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण के कारण केवल भारत में ही नहीं वरन् समस्त विश्व के नारी-जगत् में विशिष्ट स्थान रखती हैं।



Sarojini Naidu Short Biography in Hindi-

नाम सरोजिनी नायडू
ख़िताब भारत कोकिला
जन्म 13 फरवरी, सन् 1879
जन्म स्थान हैदराबाद
पिता का नाम अघोरनाथ चट्टोपाध्याय
माता का नाम श्रीमती वरना सुन्दरी देवी
पति का नाम डाक्टर गोविन्द राजुलु नायडू
बच्चे जयसूर्य, पद्मजा, रणधीर और लीलामणि
मृत्यु 2 मार्च, 1949
मृत्यु स्थान इलाहाबाद

Complete Biography of Sarojini Naidu in Hindi

श्रीमती नायडू का जन्म 13 फरवरी, सन् 1879 को एक बंगाली ब्राह्मण परिवार में हैदराबाद में हुआ था। इनके पिता का नाम अघोरनाथ चट्टोपाध्याय तथा माता का नाम श्रीमती वरना सुन्दरी देवी था। आठ भाई-बहनों में सबसे बड़ी थीं।

जब सरोजिनी नायडू नौ वर्ष की थीं तो एक दिन अंग्रेजी न बोल पाने के कारण वह अत्यन्त लज्जित हुई थीं और तभी से अंग्रेजी बोलने तथा सीखने में उन्होंने अपनी ऐसी योग्यता प्रदर्शित की कि जो कोई भी सुनता चकित हो जाता था।

सरोजनी नायडू की शिक्षा-

वह एक प्रतिभावान विद्यार्थी थीं। सरोजिनी नायडू ने अपनी सबसे पहली कविता 11 वर्ष की आयु में लिखी थी। प्रतिभा और कवित्व-शक्ति से प्रभावित होकर हैदराबाद के निजाम ने उन्हें विशेष अध्ययन के लिए विदेश जाने को प्रोत्साहित किया और लगभग 42,000 रुपये प्रति वर्ष की छात्रवृति देने की घोषणा की।

इंग्लैण्ड पहुंचने पर वे लंदन के किंग्स कॉलेज और कैम्ब्रिज के गिर्टन कॉलेज में अध्ययन करती रहीं। वहां वे केवल पढ़ने में ही व्यस्त नहीं रहीं बल्कि उन्होंने अपनी कवित्व-शक्ति का भी उपयोग किया। वे वहां प्रसिद्ध विद्वान् एडमंड गोस, विलियम आर्चर और हैनीमैन जैसे प्रकाशकों से मिलीं और उनके प्रोत्साहन से अनेक उत्कृष्ट कवितायें लिखीं।

सरोजनी नायडू का विवाह किसके साथ हुआ था?

भारत लौटने पर सन् 1898 में इनका विवाह हैदराबाद के प्रधान मैडिकल अफसर डाक्टर गोविन्द राजुलु नायडू से सम्पन्न हो गया। उन्होंने चार बच्चों को जन्म दिया। उनकी दूसरी संतान कुमारी पद्मजा नायडू स्वतंत्र भारत में पश्चिम बंगाल की राज्यपाल बनीं।

सरोजिनी नायडू ने एक आदर्श वैवाहिक जीवन जीने के अलावा अस्पतालों में स्त्री-रोगियों की सहायता करना, लड़कियों के लिए विद्यालयों की संख्या बढ़ाना आदि सामाजिक कार्य भी किए। विवाह के पश्चात् नायडू केवल गृहस्थी के कार्यों से ही सन्तुष्ट नहीं हो सकी, देश की करुण पुकार ने उनका ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया।

Role of Sarojini Naidu in freedom struggle in Hindi-

सरोजनी नायडू और स्वतंत्रता आंदोलन-

उस समय श्री गोखले के नेतृत्व में कांग्रेस भावी स्वतंत्रता का पथ-प्रदर्शन कर रही थी। वे उन्ही की अनुगामिनी बनीं और तब से अन्त तक राजनीतिक तूफानों और झंझावतों से अनवरत संघर्ष करती रहीं। सन् 1915 में उन्होंने बम्बई कांग्रेस अधिवेशन में भाग लिया और सन् 1916 में लखनऊ कांग्रेस में सम्मिलित हुईं। तत्पश्चात् उन्होंने समस्त भारत का भ्रमण किया और मुख्य-मुख्य नगरों में भाषण दिये।

सन् 1924 में श्रीमती नायडू भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष होकर दक्षिण अफ्रीका गईं। सन् 1926 में वे कांग्रेस के कानपुर अधिवेशन की अध्यक्ष निर्वाचित की गई और सन् 1928 में उन्होंने अमेरिका और कनाडा जाकर भारतीयों के दृष्टिकोण का अमेरिकियों में प्रचार किया।

15 अगस्त, सन् 1947 को स्वतंत्रता प्राप्त हो जाने पर देश ने उनके सिर पर वृद्धावस्था में भी युक्तप्रान्त जैसे बड़े प्रान्त का शासनभार सौंपा। अपनी गवर्नरी के कार्यकाल में उन्होंने जिस योग्यता और तत्परता का परिचय दिया, वह चिरस्मरणीय रहेगा।

उन्होंने भारतीय नारी के उत्थान में प्रशंसनीय कार्य किया। वे पर्दा-प्रथा, दहेज़ प्रथा, बालविवाह आदि कुप्रथाओं से बहुत अधिक चिढ़ती थीं। वे स्त्री-पुरुषों के समान अधिकारों की कायल थीं। उन्होंने मांटेग्यु के ऐतिहासिक भारतीय दौरे के समय ‘अखिल भारतीय महिला डेपुटेशन’ का नेतृत्व किया और नारी के बालिग मताधिकार की मांग की।

सरोजनी नायडू की मृत्यु कब हुई थी?

भारत के राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और साहित्यक क्षेत्रों में अपनी अप्रतिम प्रतिभा और तेजस्विता का सिक्का जमा कर 70 वर्ष के यशस्वी जीवन के पश्चात् 2 मार्च, 1949 में श्रीमती नायडू का देहावसान हुआ। निस्सन्देह, वे भारतीय महिला-जागृति की मूर्तिमान प्रतीक थीं।

वे एक सफल कवयित्री थीं, जो मधुर कल्पना-लोक की कोमल भावनाओं और करुण अनुभूतियों को हृदय में संजोये एक दिन राजनीति के कांटों-भरे क्षेत्र में उतर पड़ी थीं। संपूर्ण भारतवर्ष इस भारत कोकिला को सदैव स्मरण करता रहेगा और उनके महान् कार्यों का अनुकरण करता रहेगा।


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