समुद्रगुप्त का इतिहास Samudragupta History Biography in Hindi

समुद्रगुप्त गुप्त वंश के सबसे प्रतापी राजाओं में से एक था| समुद्रगुप्त का इतिहास जानने के बहुत कम स्रोत हैं, और उसके इतिहास को जानने के साधन प्रयाग प्रशस्ति व उसके द्वारा चलाई गई मुद्रा हैं| समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन (Bharat ka Nepolian) कहा जाता है|

समुद्रगुप्त का इतिहास-

समुद्रगुप्त चंद्रगुप्त प्रथम का पुत्र था, उसकी माता का नाम कुमारदेवी था| समुद्रगुप्त के शिक्षा की उचित व्यवस्था की गई थी और किसी कारणवश वह बहुत बड़ा विद्वान एवं शास्त्रों का ज्ञाता था|

वह एक प्रतिभाशाली युवक था तथा वह अपनी शिक्षाओं के कारण सर्वगुण संपन्न था| शास्त्र के साथ-साथ वह शस्त्र विद्या का भी ज्ञाता था| समुद्रगुप्त की अनेक रानियाँ थी, परंतु पटरानी का पद दत्तदेवी को प्राप्त था। समुद्रगुप्त के दो पुत्र थे- रामगुप्त तथा चंद्रगुप्त|

Samudragupta History in Hindi-

नाम समुद्रगुप्त
उपाधि भारत का नेपोलियन
पिता का नाम चंद्रगुप्त प्रथम
माता का नाम कुमारदेवी
पुत्र रामगुप्त एवं चंद्रगुप्त|
शासनकाल 333 से 380 ईसवी
समुद्रगुप्त की राजधानी पाटिलपुत्र ( आधुनिक पटना)
मृत्यु 380 ईसवी

 

समुद्रगुप्त का राज्यारोहण-

चंद्रगुप्त प्रथम की मृत्यु के बाद समुद्रगुप्त उसका उत्तराधिकारी बना, और वह सिंहासन पर विराजमान हुआ| समुद्रगुप्त का शासन काल 335 से 380 ईसवी तक माना जाता है| इलाहाबाद में प्राप्त अभिलेखों के अनुसार ऐसा माना जाता है की चंद्रगुप्त के बाद राजगद्दी के लिए भाइयों के मध्य संघर्ष हुआ था|

बड़े भाई कच को गद्दी पर बिठाया गया था और जब समुद्रगुप्त ने अपनी स्थिति को सुदृण कर लिया तो उसने अपने राज्य का विस्तार किया| इस अभिलेख की रचना समुद्रगुप्त के राजकवि ‘हरिषेण’ ने की थी| समुद्रगुप्त ने कुशल रणनीति और अद्भुत बहादुरी के साथ हर लड़ाई लड़ी थी।

ऐसा कहा जाता है कि उसके शरीर पर कुल्हाड़ियों, तीर, भाले, तलवारों और कई अन्य हथियारों के सौ घावों के निशान थे|

समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन क्यों कहा जाता है?

समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन कहा जाता है और इसके पीछे कई कारण हैं| समुद्रगुप्त एक साम्राज्यवादी एवं महत्वाकांक्षी व्यक्ति था| सिंहासन पर आसीन होने के उपरांत वह संपूर्ण भारत का राजनीतिक एकीकरण करना चाहता था| वह संपूर्ण भारत पर अपना एक छत्र राज्य स्थापित करना चाहता था, उसकी इस दिग्विजय के बारे में प्रयाग प्रशस्ति में लिखा गया है|

तत्कालीन भारत में समुद्रगुप्त के राज्य के अतिरिक्त कई अन्य शक्तिशाली राज्य स्थित है| अपनी कुशाग्र बुद्धि एवं युद्ध कला कौशल से समुद्रगुप्त ने अपने आसपास स्थित कई राज्यों पर आक्रमण किया और उन्हें परास्त के अपने राज्य में शामिल किया|

इसके बाद समुद्रगुप्त ने दक्षिण भारत की ओर रुख किया और दक्षिण भारत के लगभग 12 राज्यों पर समुद्रगुप्त ने विजय प्राप्त की थी| उसने अपने शासनकाल में कई ऐसे राज्यों को जीता जो बहुत ही शक्तिशाली थे और इन राज्यों को परास्त करके उसने पाटलिपुत्र को अपनी राजधानी बनाया था|

समुद्रगुप्त ने आर्यवर्त के शक्तिशाली राज्यों पर अपनी सत्ता स्थापित की थी और उनके राज्यों को अपने साम्राज्य में मिला लिया था| देखते ही देखते समुद्रगुप्त का प्रभाव भारत की सीमाओं को भी पार कर गया था| और उसने कई विदेशी राज्यों से अपने संबंध प्रगाढ़ किए|

कई विदेशी राजाओं ने समुद्रगुप्त को अपनी कन्याएं भेंट की थी| समुद्रगुप्त का साम्राज्य विस्तार बहुत ही विशाल था, उसका साम्राज्य बंगाल से लेकर हिमालय के समानांतर पंजाब तक का था, इसके अतिरिक्त उसका शासन क्षेत्र लाहौर, चंबल, जबलपुर तथा करनाल तक फैला हुआ था|

ऐसा माना जाता है कि समुद्रगुप्त ने अपने बाहुबल के प्रताप से सारी पृथ्वी को बांध दिया था और संपूर्ण पृथ्वी पर उसका कोई भी प्रतिद्वंदी नहीं था| अतः हम यह कह सकते हैं कि समुद्रगुप्त भारत के इतिहास का नेपोलियन ही था|

More History of Samudragupta in Hindi-

समुद्रगुप्त एक पराक्रमी योद्धा था और उसने अपने पराक्रम के बल पर बहुत सारे राज्यों को अपने शासन क्षेत्र में मिला लिया था| कितने बड़े शासन को चलाना कोई आसान कार्य नहीं था परंतु उसने अपनी कुशल नीतियों से इन राज्यों का संचालन किया|

समुद्रगुप्त भारतीय इतिहास का एक महान विजेता तथा साम्राज्य निर्माता था| वह बहुमुखी प्रतिभा का धनी था| एक पराक्रमी योद्धा होने के साथ-साथ वह प्रजा पालक, दानी, संगीत प्रेमी तथा साहित्य प्रेमी भी था| समुद्रगुप्त एक उदार तथा दानी शासक था, उसके राज्य कवि हरिषेण में उसकी दयालुता तथा दानशीलता की भूरि-भूरि प्रशंसा की है|

समुद्रगुप्त ने अश्वमेध यज्ञ प्रारंभ किया था और उसने अपनी मुद्राओं पर गरुड़ की मूर्ति अंकित की है इससे यह स्पष्ट होता है कि वह विष्णु का उपासक था और वह वैदिक धर्म को मानने वाला था| अन्य धर्मों के साथ उसका व्यवहार बहुत ही कुशल था और वह अन्य धर्मों की प्रगति के लिए सहायता प्रदान करता था|

जैन और बौद्ध धर्म समुद्रगुप्त के समय में फलते-फूलते रहे थे और समुद्रगुप्त ने एक बौद्ध विहार भी बनवाया था, अतः हम कह सकते हैं कि वह सभी धर्मों का सम्मान आदर करता था|

समुद्रगुप्त के सिक्के-

समुद्रगुप्त ने सात अलग-अलग प्रकार के सिक्कों का प्रचलन शुरू किया था| वे मानक प्रकार, आर्चर प्रकार, बैटल एक्स प्रकार, आकाशवाणी प्रकार, टाइगर कातिलों का प्रकार, राजा और रानी के प्रकार और वीणा प्लेयर प्रकार के रूप में जाना जाता है।


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