गोलमेज सम्मेलन Round Table Conference in Hindi

Round Table Conference in Hindi

नमक यात्रा के प्रति भारतीय जनता के उत्साहों को देखते ही अंग्रेजी हुकूमत को यह अहसास हुआ था कि अब भारत पर उनका राज बहुत ज्यादा दिन नहीं टिक सकेगा और उन्हें भारतीयों को भी सत्ता में हिस्सेदारी देनी पड़ेगी|

इसी बात को ध्यान में रखते हुए ब्रिटिश सरकार ने लंदन में गोल मेज सम्मेलनों का आयोजन शुरू किया। गोलमेज सम्मलेन में साइमन आयोग द्वारा प्रस्तुत की गयी रिपोर्ट के आधार पर मई 1930 में संचालित किये गए थे।

प्रथम गोलमेज सम्मेलन | First Round Table Conference in Hindi-

साइमन कमीशन के रिपोर्ट प्रस्तुत करने के पहले ही इंग्लैंड में लेबर पार्टी की सरकार बन गई थी|

लॉर्ड इरविन ने अक्टूबर 1929 में घोषणा की थी और इस घोषणा में उन्होंने कहा था, कि लंदन में एक गोलमेज कांफ्रेंस के जरिए भारतीय राजनीतिक मत के विभिन्न पहलुओं को जानने के पश्चात लेबर सरकार एक नया संविधान बनाएगी|

इन्हीं सब कारणों से आगे चलकर लंदन में गोलमेज सम्मेलन के तीन सत्र आयोजित किए गए थे| भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पहले और तीसरे सत्र में भाग नहीं लिया था|

जिस समय पहली गोलमेज कांफ्रेंस की तैयारियां हो रही थी, उसी वक्त भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भारत में सविनय अवज्ञा आंदोलन को छेड़ रखा था और वह गोलमेज कांफ्रेंस का बहिष्कार कर रहे थे जबकि दूसरी तरफ सर तेज बहादुर सप्रू और एम. आर. जयकर इस गोलमेज कांफ्रेंस में भाग लेने के इच्छुक थे|

उस समय के हालात को देखते हुए यह बात सब को स्पष्ट थी, कि बिना कांग्रेस की भागीदारी के कोई भी संधि या कोई भी समझौता सफल नहीं हो सकता| किसी कारणवश सरकार यह चाहती थी कि कांग्रेस गोलमेज सम्मेलन में हिस्सा ले|

सरकार के प्रयासों और उदारवादियों के अनुरोधों के जवाब में कांग्रेस ने कांग्रेस में शामिल होने की कुछ शर्तें रखी, लेकिन यह शर्तें अंग्रेज सरकार को स्वीकार नहीं थी|

जब अंग्रेजी सरकार ने इन शर्तों को मानने से इनकार कर दिया, तब कांग्रेस ने प्रथम गोलमेज सम्मेलन का बहिष्कार किया और इस तरह पहली कॉन्फ्रेंस बिना कांग्रेस की उपस्थिति में 12 नवंबर 1930 को प्रारंभ हुई|

कॉन्फ्रेंस में कुल मिलाकर 89 व्यक्तियों को आमंत्रित किया गया था, जिनमें से 16 व्यक्ति ब्रिटिश राजनीतिक पार्टियों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे| ब्रिटिश भारतीय प्रतिनिधिमंडल मैं 58 सदस्य थे जो कांग्रेस के अलावा भारत की तमाम पार्टियों और हितों का भी प्रतिनिधित्व कर रहे थे|

इन सदस्यों के अतिरिक्त एंग्लो-इंडियन व्यापारिक हितों को भी प्रतिनिधित्व मिला था|

देशी रियासतों और उनके नामांकित प्रतिनिधियों की संख्या 16 थी| जिसमें अलवर, भोपाल, कश्मीर, बड़ौदा, बीकानेर, हैदराबाद, पटियाला, में तथा ग्वालियर की रियासतों के प्रतिनिधि प्रमुख थे|

यह कांफ्रेंस भारतीय जनता के भाग्य का फैसला करने के लिए आयोजित की गई थी| संवैधानिक सुधारों की दृष्टि से कई बाधाओं के बावजूद कॉन्फ्रेंस में दो सकारात्मक पहलुओं पर अच्छा काम किया-

  1. उसने ब्रिटिश भारतीय प्रदेशों और भारतीय रियासतों का एक अखिल भारतीय संघ बनाने का सुझाव दिया|
  2. उसने केंद्र में उत्तरदाई सरकार की स्थापना की सिफारिश की जिसमें संक्रमण काल में कतिपय सुरक्षा उपायों का भी प्रावधान था|

** राष्ट्रवादियों को इस बात से थोड़ी निराशा अवश्य हुई कि संक्रमण काल की अवधि निर्धारित नहीं की गई थी|

गोलमेज कांफ्रेंस को देखकर उसमें सांप्रदायिक और प्रतिक्रियावादी तत्वों के जमाने का स्पष्ट आभास होता था|

कांग्रेस की कॉन्फ्रेंस में हिस्सेदारी के लिए ब्रिटिश प्रधानमंत्री रामसे मैकडॉनल्ड और भारत के वायसराय ने भारतीय नेताओं को बिना शर्त रिहा कर दिया, ताकि वे लोग अस्वस्थ नेता मोतीलाल नेहरू के घर पर मिल सके और आगामी गोलमेज कांफ्रेंस में कांग्रेस के भाग लेने की शर्तें तय कर सकें|

इन रिहा किये गए नेताओं में से कई नेता सविनय अवज्ञा आन्दोलन में भाग लेने के कारण जेल में बंद कर दिए गए थे।

प्रथम गोलमेज सम्मेलन में हिस्सा लेने वाले प्रमुख भारतीय-

  • हिंदू महासभा के एम आर जयकर और बी एस मुंजे|
  • उदारवादियों की ओर से सी वाई चिंतामणि और तेज बहादुर सप्रू|
  • आगा खान, मोहम्मद सफी, मोहम्मद अली, फजूल उल हक, मोहम्मद अली जिन्ना|
  • सिक्खों के प्रवक्ता सरदार संपूर्ण सिंह|
  • दलित वर्ग : बी.आर.अम्बेडकर|
  • भारतीय ईसाइयों की ओर से के टी पॉल|
  • रियासतें: मैसूर के दीवान सर मिर्ज़ा इस्माइल, अक़बर हैदरी (हैदराबाद के दीवान), ग्वालियर के कैलाश नारायण हक्सर, बड़ोदा के महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय, पटियाला के महाराजा भूपिंदर सिंह, जम्मू और कश्मीर के महाराजा हरि सिंह, भोपाल के नवाब हमीदुल्ला खान, बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह, अलवर के महाराजा जय सिंह प्रभाकर और इंदौर, नवानगर के के. एस. रणजीतसिंहजी, रीवा, धौलपुर, कोरिया, सांगली और सरीला के शासक।

द्वितीय गोलमेज सम्मेलन | Second Round Table Conference in Hindi-

यह सम्मलेन 7 सितम्बर 1931 से 1 दिसम्बर 1931 तक चला था|

जैसा कि हमने ऊपर देखा की प्रथम गोलमेज सम्मेलन में कांग्रेस ने अपने को गोलमेज सम्मेलन से दूर रखा और इस सम्मेलन का कोई खास प्रभाव उस समय भारतीय राजनीति और भारतीय जनमानस पर देखने को नहीं मिला|

ब्रिटिश हुकूमत में यह निर्णय लिया कि एक और गोलमेज कांफ्रेंस का आयोजन किया जाए| उस समय भारतीय राजनीति का हर व्यक्ति यह जानता था, कि ब्रिटिश हुकूमत प्रशासन के रवैए में कोई खास बदलाव नहीं आया है परंतु महात्मा गांधी ने 5 मार्च 1931 को गांधी इरविन समझौते के नाम से विख्यात एक समझौता करके दूसरी गोलमेज कांफ्रेंस में भाग लेने का फैसला किया|

जिस समय गांधीजी ने द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में हिस्सा लेने का निर्णय लिया| उस समय क्रांतिकारी गतिविधियां भारत में पूरी तरह से हावी थी, और क्रांतिकारी वर्ग कम्युनिस्ट मजदूरों को संगठित करके हड़ताल करने के लिए प्रेरित कर रहे थे|

हड़ताल के समय होने वाली अराजकता की आशंका से गांधी जी ने इरविन के साथ एक समझौता किया था, और यह समझौता इतिहास में गांधी इरविन समझौता के नाम से प्रसिद्ध है|

यह समझौता मजदूर वर्ग की हड़ताल के समय होने वाली अराजकताओं के लिए किया गया था|

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने गांधी जी के द्वारा चलाए जा रहे सविनय अवज्ञा आंदोलन को स्थगित कर दिया था| कांग्रेस की तरफ से महात्मा गांधी दूसरी गोलमेज कांफ्रेंस में एकमात्र प्रतिनिधि एवं प्रवक्ता रहेंगे|

29 अगस्त 1931 को गांधीजी द्वितीय गोलमेल परिषद में भाग लेने के लिए लंदन के लिए रवाना हुए थे|

द्वितीय गोलमेज सम्मेलन से पूर्व भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने यह घोषणा की कि पूर्ण स्वराज्य ही उनका अंतिम राजनीतिक लक्ष्य है| इस बीच परिस्थितियों में काफी बदलाव आ चुका था, और 26 अगस्त 1931 को मैकडोनाल्ड के लेबर मंत्रिमंडल ने त्यागपत्र दे दिया और उसके स्थान पर अनुदारवादियों के प्रभुत्व वाली एक साझा सरकार बनी|

अप्रैल 1931 में लार्ड इरविन के स्थान पर दिल्ली में वेलिंगटन वायसराय बनाए गए| एक प्रमुख अनुदारवादी सर सैमुअल मोरे को भारत का राज्य सचिव बनाया गया|

इन परिवर्तनों के कारण सरकारी दृष्टिकोण कठोर हो गया| प्रथम गोलमेज सम्मेलन के अधिकांश प्रमुख प्रतिनिधियों ने द्वितीय गोलमेज सम्मेलन के सत्र में भी भाग लिया था|

इसके अतिरिक्त कुछ नए प्रतिनिधि भी द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में शामिल हुए थे| नए शामिल होने वाले व्यक्तियों में गांधी जी के अलावा मोहम्मद इकबाल (जो कि एक महान शायर थे), महामना मदन मोहन मालवीय जी, श्रीमती सरोजिनी नायडू एवं अली इमाम जैसे महान राजनीतिक नेता थे| इसके अलावा जी डी बिड़ला जैसे पूंजीपति भी इस सम्मेलन का हिस्सा बने|

द्वितीय गोलमेज सम्मेलन का सत्र 1 दिसंबर 1931 को समाप्त हुआ, और इस सम्मेलन में निम्नलिखित सिफारिशें की गई-

  • भारतीय संघ की संरचना होनी चाहिए|
  • संघीय न्यायपालिका का ढांचा|
  • राज्यों द्वारा संघ में सम्मिलित होने की पद्धति और वित्तीय संसाधनों का वितरण|

गांधी जी ने जो योजना प्रस्तुत की थी, वह योजना नेहरू समिति द्वारा दी गई रिपोर्ट का ही दूसरा रूप थी|

इस सम्मेलन की कार्रवाई में सांप्रदायिकता से संबंधित मुद्दों में काफी अड़चनें आई और गांधी जी इस बात से भली भांति परिचित है कि सांप्रदायिकता की समस्या इतनी जटिल एवं कठिन है उसका कोई तात्कालिक समाधान संभव ही नहीं है अतः उन्होंने कॉन्फ्रेंस में एक सुझाव दिया कि पहले संवैधानिक समस्याओं का समाधान किया जाना चाहिए, उसके बाद सांप्रदायिक मामलों पर विचार किया जाए|

इस सुझाव के कारण अल्पसंख्यक वर्ग के प्रतिनिधि और संतुष्ट हो गए और उन्होंने अपने रवैया में कठोरता अपनाई| मुस्लिम प्रतिनिधियों ने एक पृथक निर्वाचन क्षेत्र बनाए रखने पर जोर दिया, और इस तरह से गोलमेज सम्मेलन का यह सत्र कटुता एवं क्षोभ के माहौल में संपन्न हुआ|


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