महमूद ग़ज़नवी का इतिहास | Mahmud of Ghazni History in Hindi
महमूद गजनवी के पिता का नाम सुबुक्तगीन था जोकि ग़जनी पर अपना राज्य सञ्चालन करते थे| जब 997 ईस्वी में सुबुक्तगीन की मृत्यु हो गयी तो ‘उसका पुत्र इस्माइल को राजा बनाने का विचार किया जाने लगा क्योंकि सुबुक्तगीन ने इस्माइल को ही अपना उत्तराधिकारी किया था|
इससे पहले की इस्माइल का राज्याभिषेक हो सुबुक्तगीन के दूसरे पुत्र महमूद ने गृह युद्ध में इस्माइल को पराजित कर दिया एवं राजगद्दी पर विराजमान हुआ|
Mahmud Ghaznavi History in Hindi | |
नाम | महमूद |
पिता का नाम | सुबुक्तगीन |
जन्म तिथि | 2 नवम्बर 971 ईस्वी |
जन्म स्थान | ग़ज़नी (अफ़ग़ानिस्तान ) |
मृत्यु | 30 अप्रैल 1030 |
महमूद गजनवी का जन्म 2 नवम्बर 971 ईस्वी में हुआ था| जिस समय गजनवी का राज्यारोहण हुआ था उस समय उसकी उम्र 27 वर्ष की थी| महमूद गजनवी की माता जबुलिस्तान के सरदार की पुत्री थी|
महमूद को बचपन से इस्लामी ढंग शिक्षा मिली थी| उसको कुरान हदीस तथा सरई नियमों से अच्छी तरह परिचित था| महमूद का कद माध्यम तथा शरीर हृष्ट पुष्ट था परन्तु वह चेहरे से कुरूप था|
महमूद ग़ज़नवी की गणना एशिया के महानतम मुस्लिम शासकों में से एक है| महमूद गजनवी का राज्य बहुत ही विशाल था| उसके राज्य का विस्तार इराक तथा कैस्पियन सागर से गंगा तक फैला हुआ था|
महमूद गजनवी बचपन से ही बहुत महत्वाकांक्षी था| वह बहुत ही कुशाग्र बुद्धि का था| ऐसा कहा जाता है की जब खलीफा ने महमूद के पास मान्यता पत्र भेजा, उस समय उसने प्रतिज्ञा की कि मैं प्रति वर्ष भारत के काफिरों पर आक्रमण करूंगा|
बगदाद के खलीफा अल कादिर बिल्लाह ने महमूद के पद को मान्यता प्रदान की थी, और उसने महमूद को यमीन-उद-दौला एवं यमीन-उल-मिल्लाह की उपाधियां प्रदान की थी| इसी कारण वश महमूद ग़ज़नवी का वंश यमीनी के नाम से इतिहास में प्रसिद्ध है|
ऐसा कहा जाता है कि अपनी प्रतिज्ञा के बाद महमूद ने हर वर्ष भारत पर आक्रमण किया, और यहां से बहुत सारा धन लूट कर वह अपने साथ लेकर जाता था| उस ने भारत पर कितनी बार आक्रमण किया इस बारे में इतिहासकारों में मतभेद है|
कुछ विद्वानों के अनुसार महमूद ने 12 बार भारत पर आक्रमण किया था, जबकि कुछ इतिहासकारों के अनुसार महमूद गजनबी ने 18 बार भारत पर आक्रमण किया था|
महमूद हर वर्ष सितंबर-अक्टूबर के महीने में भारत पर आक्रमण करता था, और लगभग 6 महीने यहां पर लूटपाट का कार्य कर के मार्च-अप्रैल के महीने तक यहां से वापस चला जाता था| महमूद ने भारत पर अपने सभी धावे 1000 ईस्वी से 1017 ईस्वी के बीच किए थे|
महमूद ग़ज़नवी के कार्यों और लूटपाट तथा भारतीयों पर उसके आक्रमणों से यह विदित होता है कि इस्लाम धर्म में उसकी श्रद्धा थी, और वह समझता था कि भारतीयों पर हमला एवं लूटपाट करके वह इस्लाम की सेवा कर रहा है|
महमूद ग़ज़नवी के दरबारी इतिहासकार का नाम “उतबी” था| उतबी ने महमूद द्वारा यह गए आक्रमणों को जिहाद की संज्ञा दी है| उतबी ने ही “तारीख-ए-यमीनी” नामक पुस्तक की रचना की थी|
महमूद गजनवी के भारत पर आक्रमण-
महमूद गजनबी ने अपनी स्थिति सुदृढ़ करने के पश्चात भारतीय सीमा में सबसे पहले जयपाल पर आक्रमण किया और उसके दुर्गों पर अपना अधिकार कर लिया| जयपाल ने खूब सारा धन ग़ज़नवी को प्रदान किया और 50 हाथी भेंट करने का वादा किया| जयपाल को गजनी ने छोड़ दिया परंतु जयपाल इस हार से काफी क्रुद्ध था| इस लूटपाट के पश्चात गजनी वापस चला गया|
महमूद का दूसरा महत्वपूर्ण आक्रमण मुल्तान पर हुआ| उस समय मुल्तान पर करमाथी संप्रदाय का फतेह दाऊद शासन कार्य करता था| करमाथी लोग शिया समुदाय के अनुयाई थे, जिनसे कट्टर सुन्नी घृणा करते थे|
महमूद गजनबी ने दाऊद को पराजित करने के उद्देश्य से आनंदपाल से मैत्री करनी चाही, और आनंदपाल के राज्य से होकर जाने की अनुमति मांगी| आनंदपाल ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया और महमूद को रोकने की भी कोशिश की परंतु वह सफल ना हो सका|
आनंदपाल ने अपनी हार के पश्चात कश्मीर की पहाड़ियों में छिप कर अपने प्राणों की रक्षा की| इसके पश्चात महमूद ने आगे बढ़कर दाऊद के राज्य पर घेरा डाला| हताश होकर दाउद ने अपना समर्पण कर दिया|
उसी समय महमूद के राज्य पर ईलक खान ने आक्रमण कर दिया था अतः वह भारत के जीते हुए राज्यों की जिम्मेदारी आनंद पाल के पुत्र सुखपाल को सौंपकर वापस खुरासान के लिए प्रस्थान कर दिया|
सुखपाल जयपाल के पुत्र आनंदपाल का पुत्र था| जयपाल को परास्त करने के उपरांत महमूद सुखपाल को अपने साथ लेकर गया था, और वहां उसे जबरन मुसलमान धर्म कबूल करवाया था| सुखपाल का नाम नवाज शाह कर दिया गया था| कालांतर में अवसर पाकर सुखपाल ने इस्लाम धर्म का त्याग कर दिया और महमूद के विरुद्ध विद्रोह आरंभ कर दिया|
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महमूद ग़ज़नवी का सोमनाथ पर आक्रमण
गजनबी जिस समय ट्रांसोक्सियाना के युद्धों में व्यस्त था, उस समय उसका भारतीय अभियान रुका हुआ था और भारत के राज्यों में शांति की स्थिति थी| 1024 ईस्वी में महमूद ने एक बार फिर से भारत पर आक्रमण और विजय करने का विचार किया|
भारत पर महमूद का अंतिम प्रसिद्ध आक्रमण सोमनाथ का था| सोमनाथ का मंदिर अपने समय का एक विख्यात शिव मंदिर था| यह मंदिर 13 मंजिल का था और शिवलिंग के अलावा इस मंदिर में कई सोने एवं चांदी की मूर्तियां विद्यमान थी|
सोमनाथ मंदिर के पुजारियों ने शेखी बघारते हुए कहा था कि भगवान सोमनाथ दूसरे देवताओं से अप्रसन्न हो गए हैं और इसी कारणवश महमूद इन देवी-देवताओं की मूर्तियों को तोड़ने में समर्थ हुआ है| इसी कारणवश महमूद ने सोमनाथ के मंदिर पर आक्रमण करने का निश्चय किया और 17 अक्टूबर 1024 ईसवी को महमूद ने एक विशाल सेना का गठन करके गजनी से भारत की ओर रवाना हुआ|
10 नवंबर को वह मुल्तान पहुंचा| उसने रास्ते में आने वाली सभी कठिनाइयों से अपने को बचाने के लिए सारे प्रयत्न कर रखे थे| उसे मालूम था कि उसके रास्ते में मरुस्थल का भी इलाका आएगा जहां पर पानी और खाने की सुविधा प्राप्त ना होगी, अतः उसने इन सारी मूलभूत आवश्यकताओं की वस्तुओं की समुचित मात्रा अपने साथ लेकर चला| इतिहासकारों के अनुसार लगभग 30000 ऊंटों पर खाने के सामान को लादा गया था|
जिस समय महमूद ने सोमनाथ के मंदिर पर आक्रमण करने का विचार किया, उस समय गुजरात की राजधानी पर राजा भीमदेव का शासन हुआ करता था| और जब जनवरी 1025 ईस्वी में महमूद गुजरात की राजधानी अन्हिलवाड़ पहुंचा, तो उसे यह देखकर बहुत हैरानी हुई कि भीमदेव राजधानी छोड़कर भाग गया है और उसने महमूद से लड़ाई करने का तनिक भी प्रयास नहीं किया|
राजधानी में बहुत कम लोग बचे थे जिन्हें महमूद के सैनिकों ने लूट लिया| जब महमूद मंदिर के निकट पहुंचा तब उसने देखा कि मंदिर के पुजारी और बहुत सारे लोग मंदिर में ही शरण लिए हुए हैं क्योंकि उन्हें यह विश्वास था कि महमूद उनका कुछ नहीं कर सकता और भगवान सोमनाथ की उपस्थिति के कारण वे सब वहां पर सुरक्षित हैं|
उसने कत्लेआम का हुकुम दे दिया और इस कत्लेआम में लगभग 50000 लोगों का कत्ल हुआ| महमूद ने स्वयं सोमनाथ की मूर्ति को तोड़ा और उसे मक्का एवं मदीना भिजवा दिया| इस आक्रमण के पश्चात गजनबी को बहुत सारा धन, सोना चांदी आदि प्राप्त हुआ जिसे लेकर वह पुनः अपने राज्य वापस चला गया|
महमूद ने अपना अंतिम अभियान जाटों के खिलाफ चलाया था और 1030 ईस्वी में महमूद गजनवी की मृत्यु हो गई थी|
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