बाल गंगाधर तिलक Lokmanya Bal Gangadhar Tilak Biography in Hindi
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक भारत में उग्र राष्ट्रीयता के जन्मदाता थे| उनकी निस्वार्थ देश भक्ति, अदम्य साहस, सबल राष्ट्रीय प्रवृत्ति और इन सब के ऊपर अपने देश एवं देशवासियों पर मर मिटने की बात भारत के कर्णधारों में उन्हें सर्वोच्च स्थान प्रदान करती है|
बाल गंगाधर तिलक का जीवन परिचय-
गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई सन 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी नामक जिले में हुआ था| वह बचपन से ही बड़े स्वाभिमानी तथा उग्र स्वभाव के थे| 10 वर्ष की आयु में इनकी माता एवं 16 वर्ष की अल्प आयु में ही इनके पिता का निधन हो गया|
इनके पिता का नाम श्री गंगाधर रामचंद्र तिलक एवं माता का नाम पार्वती बाई गंगाधर था| 15 वर्ष की आयु में ही इनका विवाह सत्यभामा से हो गया|
इन्होंने 1876 ईसवी में डेक्कन कॉलेज पुणे से बीए स्नातक की उपाधि प्रथम श्रेणी में प्राप्त की| 1879 में मुंबई विश्वविद्यालय से इन्होंने कानून की डिग्री प्राप्त की|
1880 में पुणे में न्यू इंग्लिश स्कूल कि स्थापना की, जिसमे आगे चलकर लगभग 2000 विद्यार्थी हो गए| इस संस्था ने नवयुवकों में राष्ट्रीय जागृति उत्पन्न करने का महान और अविस्मरणीय कार्य किया|
तिलक जी महान पत्रकार भी थे, इन्होंने मराठी भाषा में ‘केसरी’ तथा अंग्रेजी भाषा में ‘मराठा’ नामक पत्र निकालें एवं निर्भयतापूर्वक इन पत्रों में प्रेरणादायक लेख भी लिखते रहें|
Lokmanya Bal Gangadhar Tilak Biography in Hindi-
पूरा नाम | लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक |
जन्म | 23 जुलाई सन 1856 |
मृत्यु | 1 अगस्त,सन 1920 |
जन्म स्थान | चिक्कन गांव,रत्नागिरि- महाराष्ट्र |
मृत्यु स्थान | बंबई, महाराष्ट्र |
पिता का नाम | श्री गंगाधर रामचंद्र तिलक |
माता का नाम | पार्वती बाई गंगाधर |
पत्नी | सत्यभामा (तापी) |
व्यवसाय | ‘मराठा’ एवं ‘केसरी’ पत्रिका के संस्थापक |
पार्टी | कांग्रेस |
शिक्षा | स्नातक (बी.ए.) एवं वक़ालत (एल.एल.बी.) |
विद्यालय | डेक्कन कॉलेज एवं बंबई विश्वविद्यालय |
भाषा | हिन्दी,मराठी,संस्कृत एवं अंग्रेज़ी |
जेल यात्रा (कारावास ) | राजद्रोह का मुक़दमे में कारावास की सजा |
पुरस्कार-उपाधि | लोकमान्य’ |
विशेष योगदान | इंडियन होमरूल लीग की स्थापना तथा डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी का गठन |
बाल गंगाधर तिलक का राजनीति में प्रवेश-
सन 1884 में उन्होंने दक्षिणी भारत में एजुकेशन सोसाइटी नामक एक प्रमुख शिक्षण संस्था की स्थापना की| वह अपनी प्रबल राष्ट्रभक्ति के कारण देश के लिए सब कुछ न्यौछावर करने के लिए तैयार रहते थे| सन 1889 ईस्वी में उन्होंने कांग्रेस में प्रवेश किया|
तिलक क्रांतिकारी विचारों के थे और इन्होंने कांग्रेस के गरम दल का नेतृत्व किया| सन 1908 में सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर 6 वर्ष के लिए कारावास की सजा सुनाई|
जेल से छूटने पर वह पुनः स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े| उन्होंने महाराष्ट्र में गणपति उत्सव और शिवाजी उत्सव मनाने की प्रथा प्रारंभ की|
उन्होंने सन 1893 में केसरी के एक लेख में लिखा था- भारत में अंग्रेज नौकरशाही से अनुनय-विनय करके हम कुछ प्राप्त नहीं कर सकते हैं ऐसा प्रयास करना तो एक पत्थर की दीवार से सिर टकराने के समान है|
उनका विचार था- अगर हमारे मकान में चोर घुसे और हममें उन्हें भगाने की ताकत ना हो तो हमें निसंकोच उन्हें बंद कर देना चाहिए और जिंदा जला देना चाहिए|
एक बार तिलक को राजद्रोह के अपराध में गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें 18 महीने की कठोर कारावास की सजा सुनाई गई| इस पर सारे देश ने शोक मनाया, अंग्रेज माफी मांगने की शर्त पर उन्हें छोड़ देने के लिए तैयार थे, किंतु तिलक ने माफी मांगने से इंकार कर दिया|
तिलक के स्वराज्य संबंधी विचार
बाल गंगाधर तिलक स्वराज के पक्षधर थे| सन 1916 में कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में उन्होंने घोषणा की- स्वराज्य मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा (swaraj is my birthright and i shall have it)|
स्वराज्य प्राप्ति के लिए उन्होंने चार साधन बताए-
- स्वदेशी भावना का प्रचार
- विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार
- राष्ट्रीय शिक्षा का प्रसार
- शांतिपूर्वक सक्रिय विरोध
लेखक के रूप में बाल गंगाधर तिलक का इतिहास
लोकमान्य तिलक बर्मा के मांडले जेल में सन 1908 से 1914 तक बंद रहे, इस अवधि में उन्होंने लेखन कार्य किया| कारावास में ही उन्होंने दो प्रसिद्ध ग्रंथों की रचना की- गीता रहस्य और आर्क्टिक होम ऑफ वेदाज (The Arctic Home in the Vedas), इसके अतिरिक्त उनकी एक अन्य पुस्तक दि ओरियन (The Orion) है|
तिलक के सामाजिक कार्य
लोकमान्य तिलक का मानना था की भारतीय समाज में जाति प्रथा एवं अस्पृश्यता की बुराइयां व्याप्त है और उन्हें दूर करने का प्रयास केवल कानून बनाकर ही नहीं किया जा सकता, बल्कि इसके लिए जन चेतना अत्यंत ही आवश्यक एवं महत्वपूर्ण है वह अस्पृश्यता के घोर विरोधी थे|
25 मार्च 1918 में दलित जाति सम्मेलन के अवसर पर उन्होंने कहा था- यदि ईश्वर भी अस्पृश्यता को सहन करें तो मैं उसे ईश्वर के रुप में स्वीकार नहीं करूंगा|
1 अगस्त 1920 ईस्वी को 64 वर्ष की आयु में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का मुंबई में निधन हो गया|
वैलेंटाइन शिरोल के शब्दों में “यदि कोई व्यक्ति भारतीय चेतना का जनक होने का दावा कर सकता है तो वह बाल गंगाधर तिलक है|”
इन्हीं गुणों के कारण उन्हें लोकमान्य की उपाधि दी गई थी|
महात्मा गांधी के शब्दों में “हमारे समय में किसी भी व्यक्ति का जनता पर इतना प्रभाव नहीं पड़ा जितना तिलक का| स्वराज्य के संदेश का इतनी तन्मयता से प्रचार नहीं किया जितना कि लोकमान्य तिलक ने किया|”
डॉक्टर वीपी शर्मा के शब्दों में “तिलक का जीवन विभिन्न प्रकार के प्रगतिशील कार्यों की कहानी है|”
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