हुमायूँ का इतिहास Humayun History in Hindi

हुमायूँ का जीवन परिचय-

Humayun biography in Hindi- बाबर की मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र नासिरुद्दीन मुहम्मद हुमायूं अपने पिता के राज्य का उत्तराधिकारी बना| हुमायूं का जन्म 6 मार्च सन 1508 ईसवी को काबुल में हुआ था और उसने 18 वर्ष की आयु से ही युद्ध में भाग लेना प्रारंभ कर दिया था|

पानीपत के प्रथम युद्ध एवं खानवा के युद्ध में वह अपने पिता बाबर के साथ युद्धों में सम्मिलित हुआ था| बाबर की मृत्यु के चार दिन बाद 23 वर्ष की आयु में हुमायूं 29 दिसंबर सन 1530 ईस्वी को आगरा में गद्दी पर विराजमान हुआ|

परंतु हुमायूँ का यह राज सिंहासन अनेक प्रश्नचिन्हों से गिरा हुआ था| हुमायूं के सामने अनेक कठिनाइयों थी, ऐसी कठिनाइयां जिन्होंने उसके शासन और जीवन को आजीवन विपत्ति में डाले रखा|

हुमायूँ का इतिहास Humayun History in Hindi–

हुमायूं का जन्म 6 मार्च 1508 ईस्वी
हुमायूँ का सिंहासनारोहण 1530 ईस्वी
चुनार का घेरा 1532 ईस्वी
हुमायूं एवं बहादुर शाह का युद्ध 1535 ईस्वी
चौसा का युद्ध 1539 ईस्वी
कन्नौज का युद्ध 1540 ईस्वी
अकबर का जन्म 1542 ईस्वी
हुमायूं का भारत आगमन 1555 ईस्वी
हुमायूं की मृत्यु 27 जनवरी 1556 ईस्वी

हुमायूं का मकबरा Humayun Ka Maqbara-

हुमायूं का मकबरा (Humayun Ka Maqbara) अकबरकालीन इमारतों में सर्वप्रथम है, और यह मकबरा दिल्ली किले के पास स्थित है| इस मकबरे में पारसी शैली का अधिक प्रभाव है| यह पहली इमारत है जिसमें संगमरमर का प्रयोग हुआ था| इस मकबरे का निर्माण हुमायूं की चहेती पत्नी हाजी बेगम द्वारा हुमायूं की मृत्यु के 8 वर्ष बाद सन 1565 ईस्वी में कराया गया|

यह मकबरा उत्तर भारत में वास्तु शैली की एक नए चरण का सूचक है और इसकी सबसे उल्लेखनीय विशेषता इसका शानदार गुंबद है, जो कि संगमरमर का बना हुआ है|

हुमायूं की प्रारंभिक सफलताएं-

कालिंजर पर आक्रमण-
राज्यारोहण के कुछ महीनों के बाद ही सन 1531 ईस्वी में हुमायूं ने बुंदेलखंड में स्थित कालिंजर के दुर्ग पर आक्रमण किया| 6 महीने के घेरे के बाद हुमायूं ने वहां के राजा प्रताप रुद्रदेव से संधि कर ली| राजा ने हुमायूं को 12 मन सोना दिया और शाही सेवा स्वीकार की|

महमूद लोदी का दमन-
कालिंजर का घेरा उठा लेने के पश्चात सन 1532 ईस्वी में दोराह नामक स्थान पर महमूद लोदी और हुमायूं की सेना के मध्य युद्ध हुआ, जिसमें हुमायूं विजई हुआ और महमूद लोदी बिहार की ओर भाग निकला|

चुनार का घेरा-
महमूद लोदी को पराजित करने के बाद हुमायूं ने चुनार के दुर्ग का घेराव किया, यह दुर्ग शेरख़ाँ के अधिकार में आता था और यह घेराव सितंबर 1532 ईस्वी से दिसंबर 1532 ईसवी तक चलता रहा अंत में शेरखान ने हुमायूं की अधीनता स्वीकार कर ली|

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गुजरात के सुल्तान बहादुरशाह-
भारत में हुमायूं के दो प्रबल शत्रु थे, एक बिहार में अफगानों का सरदार शेरख़ाँ और दूसरा गुजरात का सुल्तान बहादुरशाह| बहादुर शाह ने 1531 ईस्वी में मालवा पर चढ़ाई की क्योंकि वहां के सुल्तान ने बहादुर शाह के विद्रोही भाई को अपने यहां पर शरण दे रखी थी|

उस ने मालवा के सुल्तान को कैद करके चंपानेर के किले में भेज दिया और उसके राज्य को अपने राज्य में मिला लिया और खानदेश,अहमदनगर और बरार के शासकों से अपनी अधीनता स्वीकार कराई| पुर्तगाल वालों ने भी उसकी अधीनता स्वीकार कर ली थी| उसने एक बहुत बड़ी सेना लेकर 1533 ईस्वी में चित्तौड़ पर चढ़ाई की परंतु राणा से रुपए लेकर लौट आया|

काबुल और कंधार की विजय-
मार्च 1545 ईस्वी में हुमायूं कंधार पहुंचा और डेरा डालने के बाद उसे जीत लिया| कंधार की जीत के पश्चात हुमायूं की स्थिति बहुत कुछ सुधर गई और उसने अपनी शक्तियों का संग्रह करके काबुल पर चढ़ाई कर दी| कामरान हार गया और काबुल उसके अधिकार में आ गया|

अकबर जिसे कामरान ने एक बार किले की दीवारों पर तीरों और गोलियों की बौछार के सामने कर दिया था अपने पिता को वापस मिल गया| कामरान ने अपने खोए हुए राज्य को प्राप्त करने की बहुत कोशिश की, परंतु फिर हार कर भाग गया और मिर्जा हिंदाल एक रात की मुठभेड़ में मारा गया|

कामरान भागकर शेरशाह के उत्तराधिकारी सलीमशाह के दरबार में गया जिसके दुर्व्यवहार के कारण उसने धक्कड़ों के यहां शरण ली, धक्कड़ों के सरदार ने उसे हुमायूं को सौंप दिया, उसने उसे हानि पहुंचाने में असमर्थ बनाने के लिए उसकी आंखें निकलवा दी|

इसके बाद कामरान मक्का चला गया| मिर्जा अस्करी भी, जो अपनी चाल से बाज नहीं आता था, कैद हो गया और उसे भी हुमायूं ने मक्का जाने का फरमान सुनाया| उत्तर पश्चिम में अपने प्रतिद्वंदियों से मुक्त होकर हुमायूं फिर से भारत जीतने की तैयारी करने लगा|


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