Shahjahan History in Hindi | शाहजहां का इतिहास

दोस्तों आप इस आर्टिकल में शाहजहां का सम्पूर्ण इतिहास ( Shahjahan History in Hindi) और उसके जीवन (Life History), विवाह तथा उसके द्वारा लड़े गए युद्धों के बारे में जानेंगे-

Shahjahan Biography in Hindi-

  • शाहजहां के बचपन का नाम खुर्रम था|
  • शाहजहां का जन्म लाहौर में 5 जनवरी सन 1592 ईसवी को हुआ था|
  • शाहजहां की माता का नाम मानवती था, जिनको हम जगत गोसाई के नाम से भी जानते हैं|
  • मानवती मारवाड़ के कोटा राज्य के राजा उदय सिंह की पुत्री थी|
  • खुर्रम अपने पितामह सम्राट अकबर को अत्यंत ही प्रिय था|
  • खुर्रम की दक्षिणी विजय से प्रसन्न होकर जहांगीर ने उसे “शाहजहां” की उपाधि से सम्मानित किया था|

शाहजहां की शिक्षा व्यवस्था-

शाहजहां बचपन में अध्ययन में काफी निपुण था अतएव उसकी शिक्षा का उचित प्रबंध बचपन से ही किया गया था| उसे फारसी भाषा तथा साहित्य का अच्छा ज्ञान था| उसने भूगोल, अर्थशास्त्र, इतिहास एवं राजनीति व धर्म शास्त्र विषयों का अच्छा अध्ययन किया था| इसके साथ वह अस्त्र एवं शस्त्र चलाने में निपुण था| इसके आलावा खुर्रम घुड़सवारी में भी काफी निपुण था|

शाहजहां का इतिहास | Shahjahan History in Hindi

शाहजहां का जन्म 5 जनवरी सन 1592
सिंहासनारोहण 1628 ईस्वी
मुमताज की मृत्यु 1631 ईस्वी
धर्मत का युद्ध 1658 ईस्वी
दारा को मृत्युदंड 1659 ईस्वी
मुराद का अंत 1661 ईस्वी
शाहजहां की मृत्यु 22 जनवरी सन 1666 ईस्वी

शाहजहां का विवाह-

शाहजहां का विवाह (Shahjahan ka vivah) आसफ खान की पुत्री अर्जुमंद बानो बेगम से हुआ था और उसके विवाह के समय उसकी उम्र 20 वर्ष की थी| यही अर्जुमंद बानो बेगम ही आगे चलकर इतिहास में मुमताज महल के नाम से प्रसिद्ध हुई|

वह बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा का धनी था, इसलिए उसकी ख्याति एवं पद में अनवरत बढ़ोतरी होती गई| सन 1607 इसवी में शहजादे खुर्रम का मनसब 8000 जात और 5000 सवार बना दिया गया और 1 वर्ष पश्चात उसे हिसार फिरोजा की जागीर भी दे दी गई|

सन 1617 में नूरजहां के अनुरोध पर शाहजहां के मनसब को 30000 जात और 20000 सवार कर दिया गया| मेवाड़ विजय एवं दक्षिण में उसकी सफलता उसके प्रतिभावान होने के सफल प्रमाण है|

शाहजहां के बच्चे-

शाहजहां के चार पुत्र थे| जिनके नाम दाराशिकोह, शाहशुजा, औरंगजेब एवं मुराद थे| उसके जीवनकाल में ही राज्यसत्ता एवं सिंहासन के लिए संघर्ष आरंभ हो गया और इस संघर्ष में औरंगजेब को सफलता प्राप्त हुई जिसके फलस्वरूप वह शहंशाह बना|

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शाहजहां का सिंहासनारोहण-

जहांगीर की मृत्यु के पश्चात शाहजहां राजगद्दी पर बैठा| उसका विधिवत सिंहासनारोहण 6 फरवरी सन 1628 ईसवी को आगरा में हुआ था| इस अवसर पर खूब आनंद एवं उत्सव मनाया गया| सरदारों की पदोन्नति की गई तथा पारितोषिक दिए गए|

राज गद्दी पर विराजमान होने के उपरांत उसने खानजहां लोदी एवं नूरपुर के जमीदार जगत सिंह के विद्रोह का अंत किया था| उसने पुर्तगालियों को भी युद्ध में पराजित किया था और अपने साम्राज्य को सुदृढ़ बनाने हेतु गोलकुंडा, बीजापुर एवं अहमदनगर पर आक्रमण किए|

इतिहासकारों के मतानुसार शाहजहां जहांगीर एवं अकबर की अपेक्षा अधिक कट्टर मुसलमान था| राजगद्दी पर बैठने के उपरांत उसने पहला कार्य यह किया कि राज्य के कार्यों में सौर वर्ष का प्रयोग बंद करके चंद्र वर्ष तथा हिजरी सन के प्रयोग की आज्ञा दे दी, और उसके इस कार्य से कट्टर मुसलमान अत्यंत प्रसन्न हुए|

शाहजहां ने अकबर एवं जहांगीर के समय में प्रचलित सिजदा प्रथा को भी बंद करा दिया एवं सिजदा प्रथा के स्थान पर जमी बोस (इस प्रथा में जमीन को चूमने का निर्देश होता है) का नियम लागू कर दिया गया| इस प्रकार के अभिवादन में लोग दाहिना हाथ जमीन पर टिका कर उसका पृष्ठभाग चूमा करते थे|

यह ऐसी परंपरा थी जिसके अभिवादन में स्वामी और सेवक का, राजा और प्रजा का संबंध स्पष्ट प्रदर्शित होता है| शेख, सैयद और उलेमा इस प्रकार के अभिवादन से मुक्त रखे गए| राज्यारोहण के 10वें वर्ष के पश्चात यह नियम बंद करा दिया गया, और इसके स्थान पर चहार तसलीम की प्रथा प्रचलित की गई|

उसने अपने दादा की स्मृति में आगरा नगर का नाम अकबराबाद रख दिया, साम्राज्य के प्रांतों के शासन प्रबंध में भी कुछ आंशिक बदलाव किया गया| आसफ खान का मनसब 8000 जात और 8000 सवार कर दिया गया|

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More History of Shahjahan in Hindi-

शाहजहां का काल बहुमुखी गतिविधियों का दौर था, हिंदुओं के प्रति चली आ रही नीतियों में शाहजहां ने कई फेरबदल किए| शाहजहां ने स्वयं को ‘इस्लाम का रक्षक’ बतलाया और उसने मुगलों की इस नीति को दोहराया कि हिंदुओं के पुराने पूजा स्थानों एवं मंदिरों की मरम्मत तो करवाई जा सकती है परंतु नए मंदिरों एवं पूजा स्थानों का निर्माण नहीं किया जा सकता है|

उसके समय में जहांगीर के काल में बने अनेक मंदिरों को नष्ट कर दिया गया परंतु पुराने हिंदू मंदिरों में किए जाने वाले दान जारी रहे| अपने शासन के अंतिम समय में शाहजहां ने हिंदुओं के प्रति उदारवादी नीति अपनाई और उसने वेदों के साथ-साथ कई हिंदू धर्म ग्रंथों का फारसी में अनुवाद भी करवाया था|

शाहजहां की मृत्यु | Shahjahan Ki Mrityu

शाहजहां और उसकी पुत्री जहांआरा को आगरा के किले में रखा गया था और वहां पर उसकी कड़ी निगरानी रखी जाती थी| पिता और पुत्री दोनों को लगभग 8 वर्ष तक बंदी बनाकर आगरा के किले में रखा गया था|

उसने इस कारागृह से अपने आप को मुक्त करने के बहुत सारे प्रयत्न किए, परंतु यह सारे ही प्रयत्न व्यर्थ रहे| उसके इन प्रयत्नों से उसके सभी शत्रु और भी सतर्क हो गए, और जैसे ही उसके शत्रुओं को उसके इन प्रयासों का पता चला तो उन्होंने उसको और ज्यादा दुख और यातनाएं देना आरंभ कर दिया|

शाहजहां को इन्हीं प्रयत्नों के फलस्वरूप साधारण सुविधाएं भी मिलना लगभग बंद हो गई थी| अब कोई भी आदमी औरंगजेब के सेनिको एवं दूतों की अनुपस्थिति में उससे नहीं मिल सकता था और उसके लिखे गए सारे पत्रों को खूब जांचा एवं परखा जाने लगा|

उसके लिए आए हुए किसी भी पत्र को सबसे पहले उसे ना देकर उसके शत्रु खुद ही उसको पढ़ लेते थे, और अंततः उसे अपने हाथों से चिट्ठियां लिखने की भी मनाही कर दी गई|

साधारण सुविधाओं के ना मिलने के कारण शाहजहां सन 1666 ईस्वी में काफी बीमार पड़ गया| उसकी पुत्री जहांआरा ने उसकी खूब सेवा की, परंतु उसका कोई लाभ नहीं हुआ और अंत में 22 जनवरी सन 1666 को शाहजहां की मृत्यु आगरा के किले में हो गई|

उसकी मृत्यु के उपरांत उसकी पुत्री जहांआरा चाहती थी कि उसका जनाजा बड़ी ही धूमधाम से निकले, परंतु औरंगजेब ने जनाजे की आज्ञा न दी| शाहजहां ने आगरा निवासियों के लिए बहुत ही सराहनीय कार्य किए थे और उसकी मृत्यु से आगरा निवासियों को बड़ा ही दुख हुआ|

आगरा निवासियों ने बादशाह शाहजहां का गुणगान करने लगे और उसके महान कार्यों का प्रचार-प्रसार भी होने लगा| पूरे आगरा में सर्वत्र शोक मनाया गया और इस समय जहांआरा की दशा अत्यंत ही दयनीय थी| शाहजहां की मृत्यु (Shah jahan ki mrityu) के बाद वह दिल्ली चली गई और वहां 1681 में उसकी भी मृत्यु हो गई|

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शाहजहांकालीन इमारतें-

शाहजहां को भवन निर्माण एवं स्थापत्य कला में विशेष रुचि थी| उसने आगरा में अपनी चहेती पत्नी मुमताज महल की स्मृति में ताजमहल का निर्माण कराया| इसके अतिरिक्त उसने आगरा में मोती मस्जिद, दिल्ली का लाल किला, जामा मस्जिद आदि इमारतों का निर्माण कराया|

मयूर सिंहासन-

शाहजहां ने मयूर सिंहासन का निर्माण करवाया था| मयूर सिंहासन को हम तख्त-ए-ताऊस के नाम से भी जानते हैं| मयूर सिंहासन का निर्माण बहुमूल्य रत्नों एवं कोहिनूर के हीरे से की गई थी|

यह सिंघासन एक सुनहरे घाट के रूप का था, जिसमें 12 खंभे थी और 2 मयूर विद्यमान थे| इन दो मयूरों के मध्य वृक्ष पर हीरा, मोती, पन्ना एवं लाल मणियों से नक्काशी की गई थी जो कि अत्यंत शोभनीय थी| मयूर सिंहासन को नादिर शाह ने सन 1739 ईस्वी में लूटकर ईरान ले गया था|

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