द्वितीय विश्व युद्ध Second World War History in Hindi

Second World War History in Hindi- 

द्वितीय विश्व युद्ध एक ऐसा महायुद्ध था, जिसने दुनिया के लगभग सभी देशों को इस युद्ध में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से झोंक दिया था| इस युद्ध की शुरुआत 1 सितंबर 1939 को हुई और इसका अंत 2 सितंबर 1945 को हुआ|

इस युद्ध में भयंकर नरसंहार हुआ, और इस युद्ध में प्रतिदिन लगभग 27,000 लोगों की मौत होती थी| यह विश्व युद्ध 1 सितंबर 1939 को तब शुरू हुआ, जब जर्मनी (नाज़ी) द्वारा पोलैंड पर आक्रमण किया गया|

इसके बाद इस युद्ध में फ़्रांस और यूनाइटेड किंगडम सम्मिलित हो गए, और देखते ही देखते सम्पूर्ण विश्व इस भयंकर युद्ध की चपेट में आ गया| एडोल्फ हिटलर की आत्महत्या के सात दिन बाद, जर्मनी ने 7 मई 1945 को बिना शर्त आत्मसमर्पण कर दिया।

इसके बाद लगभग 4 महीने तक जापानी सिपाही इस युद्ध को आगे बढ़ाते रहे, परन्तु अमेरिका द्वारा हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम छोड़े जाने के उपरांत लगभग सम्पूर्ण विश्व हिल गया, और 2 सितंबर 1945 को इस युद्ध का समापन हुआ|

द्वितीय विश्व युद्ध के प्रमुख कारण क्या थे?

द्वितीय विश्व युद्ध के प्रमुख कारण –

Second World War Reason in Hindi-
द्वितीय विश्व युद्ध के विस्फोट के लिए भी वही कारण उत्तरदायी थे, जो प्रथम विश्व युद्ध के लिए थे;- धुरी राष्ट्रों की आक्रामक नीति तथा इंग्लैंड और फ्रांस की तुष्टिकरण व स्वार्थपूर्ण नीति ने द्वितीय विश्वयुद्ध को अनिवार्य बनाया| संक्षेप में, इस युद्ध के लिए निम्नलिखित कारणों को उत्तरदाई माना जाता है-

1- वर्साय की संधि में जर्मनी का अपमान-

वर्साय की संधि ही द्वितीय विश्व युद्ध का प्रमुख कारण थी| यह संधि वास्तविक अर्थों में शांति संधि नहीं थी, वरन इसमें दूसरे विश्व युद्ध के बीज छिपे हुए थे| इस संधि की शर्तों में जर्मनी का बड़ा ही अपमान किया गया तथा जर्मन प्रतिनिधियों को बलपूर्वक संधि पत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य किया गया|

जर्मनी के विशाल साम्राज्य को छिन्न-भिन्न कर दिया गया था तथा जर्मनी की सैनिक तथा समुद्री शक्ति को नष्ट कर दिया गया था| उसकी राष्ट्रीय भावनाओं को इतना कुचल दिया गया था कि जर्मन जनता अपने अपमान का बदला लेने के लिए बेचैन हो उठी थी| इसी भावना ने द्वितीय विश्वयुद्ध को जन्म दिया|

2- तानाशाही शक्तियों का उदय-

प्रथम विश्व युद्ध के उपरांत यूरोप के राष्ट्रों में तानाशाही शक्तियों का उदय और विकास हुआ| जहाँ एक ओर जर्मनी में हिटलर वहीँ दूसरी ओर इटली में मुसोलिनी तानाशाह बन बैठे| पेरिस शांति समझौते में इटली को कोई ख़ास लाभ नहीं हुआ था जिससे वहां की जनता में असंतोष की भावना थी|

इसका लाभ उठा कर मुसोलिनी ने फासीवाद की स्थापना की और सारी शक्तियां अपने हाथों में केंद्रित कर ली. मुसोलिनी इटली का तानाशाह और अधिनायक बन गया था|

जर्मन के सम्राट कैसर विलियम द्वितीय के पतन के बाद जर्मनी में गणराज्य की स्थापना हुई थी| उस समय जर्मनी में बेरोजगारी और अराजकता अपने चरम सीमा पर थी, और वह सरकार जर्मनी में बढ़ती हुई बेरोजगारी, भुखमरी तथा अराजकता को रोकने में विफल रही|

इस सरकार ने वर्साय की संधि को स्वीकार करके उस संधि पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए| सरकार के इस फैसले ने जर्मन जनता की भावनाओं को गहरी चोट पहुंचाई|

जर्मनी की आंतरिक राजनीति में उस समय बहुत ही उतार चढ़ाव था| जर्मनी की आंतरिक दशा का लाभ उठाकर अडोल्फ़ हिटलर ने नाजी पार्टी की स्थापना की तथा जनता के समक्ष जोरदार शब्दों में घोषणा की कि नाजी पार्टी जर्मनी का उत्थान करेगी तथा वर्साय में जर्मनी के अपमान का बदला लेगी|

3- साम्राज्यवादी भावना का विकास –

साम्राज्यवादी भावना का विकास भी द्वितीय महायुद्ध का एक मुख्य कारण था| यूरोप के बहुत से राष्ट्र सैनिक दृष्टि से सबल होते हुए भी साम्राज्य की दृष्टि से अपने को हीन समझते थे| इन राष्ट्रों में जर्मनी, इटली और जापान का नाम प्रमुख था|

यह राष्ट्र सैन्य शक्ति की दृष्टि से ब्रिटेन, अमेरिका, फ्रांस आदि देशों से किसी भी प्रकार कम नहीं थे, किंतु उनके पास इंग्लैंड और फ्रांस के समान विशाल साम्राज्य नहीं थे, अतः साम्राज्य विस्तार की भावना उनके हृदय में निरंतर बढ़ती जा रही थी| ऐसी स्थिति में युद्ध का होना अनिवार्य था|

4- राष्ट्रसंघ की दुर्बलता-

द्वितीय विश्व युद्ध का एक महत्वपूर्ण कारण राष्ट्रसंघ की असफलता थी| प्रथम विश्व युद्ध के उपरांत राष्ट्र संघ का निर्माण किया गया था, जिसका उद्देश्य था विश्व में शांति को कायम करना परंतु कालांतर में राष्ट्र संघ अपने उद्देश्य में असफल रहा और जर्मनी, जापान तथा इटली ने अपनी इच्छा अनुसार ऑस्ट्रिया, मंजूरियां और अबीसीनिया पर विजय प्राप्त की|

निर्बल राष्ट्रों ने राष्ट्र संघ से अपनी सुरक्षा की प्रार्थना की, परंतु राष्ट्र संघ उनकी सुरक्षा करने में असफल रहा| राष्ट्र संघ की उदासीनता तथा दुर्बलता को देखकर के राष्ट्र अपने अपने बचाव के लिए सैनिक तैयारियां करने लगे, ताकि भविष्य में उन्हें राष्ट्र संघ और अन्य देशों के सामने घुटने ना टेकने पड़े|

5- विभिन्न गुटबंदियाँ –

वर्साय की संधि में जर्मनी के हुए अपमान से हिटलर काफी आहत था, और जब हिटलर ने इस अपमान का बदला लेने के लिए कुछ देशों पर आक्रामक कार्यवाहियां कि, तब हिटलर की आक्रामक कार्यवाहियों को देखकर यूरोप के राष्ट्रों में खलबली मच गई|

सभी राष्ट्र अपनी अपनी सुरक्षा करने के लिए अन्य देशों के साथ गुटबंदी करने लगे| इन गुटबंदियों में विचित्र बात यह थी कि एक ही राष्ट्र कई गुटों में सम्मिलित हो जाता था| एक राष्ट्र कई राष्ट्रों से गुटबंदी करके अपने आप को वह सर्वाधिक शक्तिशाली बनाने का प्रयास करता था|

सबसे पहले फ्रांस, रूस, पोलैंड चेकोस्लोवाकिया, रोमानिया और युगोस्लाविया ने अपना गुट बनाया| इसके उपरांत जर्मनी, इटली और जापान में गुटबंदी हो गई| इस तरह हम यह कह सकते हैं कि उस समय यूरोप के प्रमुख राष्ट्र दो विरोधी गुटों में बंट गए|

इन गुटबंदियों का परिणाम यह हुआ कि विश्व के सभी राष्ट्र एक दूसरे को अविश्वास और शंका की दृष्टि से देखने लगे| कोई भी राष्ट्र दूसरे राष्ट्र को अपना मित्र ना समझ कर अपना शत्रु ही समझने लगा|

6- हथियार बंदी की होड़ –

प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति के पश्चात राष्ट्र संघ ने निरस्त्रीकरण के लिए काफी प्रयास किए, परंतु राष्ट्र संघ का यह प्रयास विफल रहा| यूरोप में हुए विभिन्न गुट बंदियों ने अपने राष्ट्र को आने वाले युद्धों उसे सुरक्षित करने के लिए हथियार बंदी की होड़ में झोंक दिया|

हर राष्ट्र अधिक से अधिक हथियार खरीदने लगा| जर्मनी तथा फ्रांस इस दिशा में सबसे तीव्र गति से आगे बढ़े| 1932 में जिनेवा निरस्त्रीकरण सम्मेलन आयोजित किया गया परंतु यह आयोजन सफल नहीं हो सका|

फ्रांस ने अपनी सीमा पर मैगिनो लाइन का निर्माण किया, और जमीन के भीतर मजबूत किलाबंदी की, जिससे कि भविष्य में जर्मन आक्रमण को फ्रांस की सीमा पर ही रोका जा सके,और देश के अंदर जन और धन की हिफाज़त की जा सके| इसके जवाब में जर्मनी ने अपनी पश्चिमी सीमा को सुदृढ़ करने के लिए सीजफ्रेड लाइन बनाई. इन सैनिक गतिविधियों ने द्वितीय विश्वयुद्ध को अवश्यंभावी बना दिया|

7- तुष्टिकरण की नीति-

द्वितीय विश्वयुद्ध से पहले ब्रिटेन तथा फ्रांस ने फासीवादी शक्तियों के प्रति तुष्टिकरण की नीति अपनाई| 1931 से 1938 के मध्य जापान में मंचूरिया, इटली ने अबीसीनिया और जर्मनी ने ऑस्ट्रिया को हड़प लिया, किंतु यूरोपीय देशों और अमेरिका ने उनका कोई प्रतिरोध नहीं किया|

म्यूनिख समझौते में तुष्टीकरण की नीति पराकाष्ठा पर जा पहुंची, जबकि ब्रिटेन के प्रधानमंत्री चेंबरलेन तथा फ्रांस के प्रधानमंत्री डलाडियर ने चेकोस्लोवाकिया की बलि दे दी| साम्यवाद को रोकने के लिए तुष्टीकरण की नीति अपनाई गई और यही नीति आगे चलकर विश्व युद्ध का एक कारण बन गई|

द्वितीय विश्व युद्ध के तात्कालिक कारण-

पोलैंड की समस्या तथा युद्ध का आरंभ –

पेरिस की शांति सम्मेलन के निर्णय के अनुसार पोलैंड को एक स्वतंत्र राज्य बना दिया गया था और वहां पर लोकतंत्र की स्थापना की गई थी| पोलैंड को समुद्र तट से मिलाने के लिए जर्मनी के बीच से होकर एक मार्ग बना दिया गया था|यह पोलिश गलियारा डेंजिंग के बंदरगाह तक जाता था|

हिटलर का कहना था कि डेंजिंग और उसके आसपास के इलाकों में जर्मन जाति के लोग निवास करते हैं; अतः डेंजिंग पर जर्मन का अधिकार होना चाहिए| हिटलर का यह बयान आक्रामक था परंतु हिटलर की इस बात को मानने के लिए पोलैंड तैयार नहीं था|

जब पोलैंड ने हिटलर के इन बयानों को अनसुना कर दिया तब जर्मन सेनाओं ने 1 सितंबर 1939 ईसवी को पोलैंड पर आक्रमण कर दिया| पोलैंड की सुरक्षा का आश्वासनदेने के कारण ब्रिटेन, सभी ब्रिटिश उपनिवेश तथा फ्रांस ने भी जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर डाली| इस प्रकार द्वितीय विश्व युद्ध प्रारंभ हो गया| इस तरह से लगभग आधा यूरोप द्वितीय विश्वयुद्ध की अग्नि में कूद पड़ा|

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द्वितीय विश्व युद्ध के प्रमुख परिणाम-

1- भयंकर विनाश और नरसंहार-

इस युद्ध में 5 करोड़ से भी अधिक लोग मारे गए| करोड़ों लोग घायल व बेघर हो गए| लगभग एक करोड़ 20 लाख लोगों को तो जर्मनी व इटली के यंत्रणा शिविरों में अपनी जान गवानी पड़ी|

इस युद्ध में सबसे अधिक हानि जर्मनी और रूस को उठानी पड़ी| इसके अतिरिक्त पोलैंड तथा चेकोस्लाविया में शायद ही कोई गांव बचा हो जो युद्ध में नष्ट ना हुआ हो| फ्रांस, बेल्जियम. हालैंड आदि राष्ट्रों में असंख्य लोग भूख से तड़प तड़प कर मर गए थे|

2- आर्थिक परिणाम-

यूरोप के अनेक राष्ट्रों ने अपने साधनों को युद्ध में लगा दिया था जिससे उनकी अर्थव्यवस्था चौपट हो गई| इस युद्ध में संलग्न सभी राष्ट्रों द्वारा लगभग 13 खराब 84 लाख 90 करोड़ डालो वेयर किए गए| युद्ध के बाद अनेक देशों की कीमतों में तीव्रता से वृद्धि हुई जिससे मुनाफाखोरी तथा चोरबाजारी को बढ़ावा मिला, साथ ही बेरोजगारी बढ़ी|

3- जर्मनी का विभाजन-

इस युद्ध में जर्मनी की पराजय होने पर मित्र राष्ट्र द्वारा उसे दो भागों में विभाजित कर दिया गया- पूर्वी जर्मनी और पश्चिमी जर्मनी| पूर्वी जर्मनी पर रूस का अधिकार हो गया जबकि पश्चिमी जर्मनी पर अमेरिका, फ्रांस व इंग्लैंड का प्रभुत्व रहा|

4- फासिस्टवाद का अंत-

इटली में फासिस्टवाद का अंत हो गया| वहां प्रजातंत्र की स्थापना हुई| युद्ध के हर्जाने के रूप में उसे अत्यधिक धनराशि देनी पड़ी| इटली के अफ्रीकी उपनिवेश उसके अधिकार से छीन गए|

5- दो गुटों का निर्माण एवं शीत युद्ध का जन्म-

द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विश्व के अनेक राष्ट्र दो गुटों में बंध गए- पूंजीवादी तथा साम्यवादी| पूंजीवादी देशों का नेतृत्व अमेरिका, जब की साम्यवादी देशों का नेतृत्व उसके हाथों में था| यद्यपि द्वितीय विश्वयुद्ध में अमेरिका तथा रूस दोनों ने मिलकर जर्मनी के विरुद्ध लड़ाई लड़ी, किंतु युद्ध के बाद साम्यवाद के प्रसार के कारण अमेरिका तथा रूस में गंभीर मतभेद उत्पन्न हो गए|

रूस की बढ़ती हुई शक्ति से चिंतित होकर अमेरिका तथा कुछ अन्य राष्ट्रों ने नाटो, सीटों तथा सेंटो नामक सैनिक गुड बंदियों का निर्माण किया|

6- अस्त्र- शस्त्र के निर्माण में होड़-

द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद आणविक अस्त्र शस्त्रों के निर्माण का एक नया युग प्रारंभ हो गया| अमेरिका, रूस, फ्रांस, इंग्लैंड आदि राष्ट्र अपनी सुरक्षा को मजबूत करने हेतु विनाशकारी अस्त्र- शास्त्रों के निर्माण में लग गए| अस्त्र शस्त्रों के निर्माण की बढ़ती प्रतिस्पर्धा ने अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में पुनः तनाव फैलाना शुरू कर दिया, जिसके कारण ‘शीत युद्ध’ की चपेट में आ गया|

7- संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना-

द्वितीय विश्वयुद्ध की विनाशलीला को देखकर भविष्य में युद्ध को रोकने, अंतरराष्ट्रीय विवादों को शांतिपूर्ण ढंग से हल करने तथा विश्व में सहयोग एवं मैत्री स्थापित करने के उद्देश्य से विभिन्न राष्ट्रों ने मिलकर 24 अक्टूबर, 1945 विश्व को ‘ संयुक्त राष्ट्र संघ’ नामक अंतरराष्ट्रीय संस्था की स्थापना की| यह संस्था आज भी विश्व में शांति तथा मानव जाति की सुरक्षा के लिए प्रयत्नशील है|


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