
Sachidanand Hiranand Vatsyayan Agyeya Biography in Hindi
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन का जीवन परिचय-
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन “अज्ञेय” को कवि, शैलीकार, कथा-साहित्य को एक महत्त्वपूर्ण मोड़ देने वाले कथाकार, निबन्धकार, सम्पादक और अध्यापक के रूप में जाना जाता है।
इनका जन्म 7 मार्च 1911 को हुआ था। इनके पिता का नाम पं. हीरानन्द शास्त्री था और वह एक सुप्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता (प्राचीन लिपियों के विशेषज्ञ) थे। पिता का बार-बार स्थानान्तरण होने के कारण ‘अज्ञेय’ जी की प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई। अज्ञेय जी ने भाषा, साहित्य, इतिहास, विज्ञान साथ साथ फारसी और अँग्रेजी भाषा का अध्ययन घर पर ही किया। इनकी पत्नी का नाम कपिला वात्स्यायन था।
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ने 1925 में पंजाब से मैट्रिक की परीक्षा पास की और उसके बाद मद्रास क्रिस्चन कॉलेज में दाखिल हुए। वहाँ से विज्ञान में इंटर की पढ़ाई पूरी कर 1927 में वे बी.एससी. करने के लिए लाहौर के फॅरमन कॉलेज के छात्र बने।
1929 में बी. एससी. करने के बाद एम.ए. में उन्होंने अंग्रेजी विषय लिया; पर क्रांतिकारी गतिविधियों में हिस्सा लेने के कारण पढ़ाई पूरी न हो सकी। इसी बीच सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन भगत सिंह के साथी बने और 1930 में गिरफ़्तार हो गए।
अज्ञेय जी 1930 से 1936 तक जेल में बंद रहे। उन्होंने सन 1936-37 में सैनिक और विशाल भारत नामक पत्रिकाओं का संपादन किया। उन्होंने 1943 से 1946 तक ब्रिटिश सेना में कार्यरत रहे। इसके बाद उन्होंने इलाहाबाद से प्रतीक नामक एक पत्रिका निकाली और ऑल इंडिया रेडियो की नौकरी स्वीकार की।
उन्होंने कई देशों की यात्रायें की और इसके साथ ही साथ उन्होंने कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से लेकर जोधपुर विश्वविद्यालय तक में अध्यापन का कार्य किया। तत्पश्चात वे दिल्ली लौटे और दिल्ली में ही 4 अप्रैल 1987 को उनकी मृत्यु हुई।
अज्ञेय जी को 1964 में आँगन के पार द्वार के लिए साहित्य अकादमी का पुरस्कार से अलंकृत किया गया इसके बाद सन 1978 में कितनी नावों में कितनी बार के लिए उन्हें भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया।
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन प्रयोगवाद के प्रवर्त्तक तथा समर्थ साहित्यकार थे। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। इनकी प्रतिभा गद्य-क्षेत्र में नवीन प्रयोगों में दिखायी देती है।
‘अज्ञेय’ जी की प्रमुख कृतियाँ-
‘अज्ञेय’ जी की प्रमुख कृतियॉं है-
- कविता भग्नदूत
- चिंता
- इत्यलम
- हरी घास पर क्षण भर
- बावरा अहेरी
- आंगन के पार द्वार
- पूर्वा
- कितनी नावों में कितनी बार
- क्योंकि मैं उसे जानता हूँ
- सागर मुद्रा
- पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ
‘अज्ञेय’ जी के उपन्यास-
- शेखर,एक जीवनी
- नदी के द्वीप
- अपने अपने अजनबी
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन का सप्तक
अज्ञेय ने 1943 में सात कवियों के वक्तव्य और कविताओं को लेकर एक लंबी भूमिका के साथ तार सप्तक का संपादन किया। अज्ञेय ने आधुनिक हिन्दी कविता को एक नया मोड़ दिया, जिसे प्रयोगशील कविता की संज्ञा दी गई। इसके बाद समय-समय पर उन्होंने दूसरा सप्तक, तीसरा सप्तक और चौथा सप्तक का संपादन भी किया।
‘अज्ञेय’ जी की भाषा-शैली-
‘अज्ञेय’ जी ने अपने लेखन में कम-से-कम शब्दोंं के प्रयोग से सटीक अर्थ प्रदान किये हैं। अज्ञेय’ जी की भाषा विषय तथा प्रसंगानुयार बदलती रहती है, वे भाषा-शिल्पी थे ओर अज्ञेय’ जी सदैव जीवन्त एवं संस्कारित भाषा-प्रयोग के पक्षधर रहे। इनकी शैली विविधरूपिणी है। इन्होंने शैली के क्षेत्र में भी नवीन प्रयोग किये हैं।
‘अज्ञेय’ जी ने नयी कविता तथा प्रयोगवाद के जनक के रूप में ख्याति प्राप्त की है। वे हिन्दी साहित्य के शीर्षस्थ साहित्यकारों में महत्तवपूर्ण स्थान रखते हैं। एक युग-प्रवर्त्तक साहित्यकार के रूप में अज्ञेय’ जी चिरस्मरणीय रहेंगे।
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