Pal Vansh History in Hindi पाल वंश का इतिहास

Pal Vansh History in Hindi- पाल वंश के शासकों की उत्पत्ति निश्चित रूप से ज्ञात नहीं है और इस वंश की उत्पत्ति के विषय में इतिहासकारों में मतभेद है| कुछ इतिहासकारों के मतानुसार पाल साम्राज्य के शासक क्षत्रिय वंश की थी और कुछ इतिहासकारों ने इस वंश के संस्थापक को शुद्र बताया है| कुछ विद्वानों ने पालो को सूर्यकुल और समुद्रकुल से जोड़ा है| संध्याकार नंदी ने पाल नरेशों को समुद्र की संतान बताया है|

Pal vansh ki sthapna kisne ki?

पाल वंश का संस्थापक कौन था?

पाल वंश का संस्थापक गोपाल था| ऐसा माना जाता है तत्कालीन बंगाल साम्राज्य में बहुत ही अराजकता फैली हुई थी जिस कारण से वहां की जनता व्याकुल हो गई और उसने गोपाल को अपना शासक चुन लिया| गोपाल ने जनता के विश्वास को मूर्त रुप दिया और उसने बंगाल में फैली हुई अराजकता का अंत कर के मगध तक अपना शासन क्षेत्र फैला दिया| गोपाल के बाद उसका पुत्र धर्मपाल पाल वंश के सिंहासन पर आसीन हुआ था| पाल वंश की स्थापना 750 ईस्वी में हुई थी|

पाल वंश के प्रमुख शासक-

पाल साम्राज्य के प्रमुख शासकों के नाम गोपाल पाल, धर्मपाल देवपाल, महीपाल प्रथम, नयपाल, महीपाल द्वितीय, रामपाल है|

पाल साम्राज्य के प्रमुख शासकों का विवरण निम्नलिखित है-

गोपाल पाल (750-770 ईस्वी)- 

गोपाल पाल को पाल वंश का संस्थापक माना जाता है| उसने लगभग 20 वर्षों तक शासन कार्य किया था और वह बौद्ध धर्म का अनुयाई था| गोपाल ने नालंदा के समीप उदंतपुर नामक स्थान में एक महाविहार का निर्माण करवाया था| गोपाल की मृत्यु 770 ईस्वी में हुई थी|

धर्मपाल (770- 810 ईस्वी)- 

धर्मपाल गोपाल का पुत्र तथा पाल साम्राज्य का दूसरा नरेश था| धर्मपाल गोपाल की मृत्यु के बाद 770 ईस्वी में सिंहासन पर आसीन हुआ था| उसने विस्तार नीति का अनुसरण करके मदद को पूर्ण कर अपने अधिकार में ले लिया था| मगध को अपने राज्य में शामिल करने के बाद वह कन्नौज और बढ़ा था|

पंजाब, मालवा, पूर्वी राजपूताना, मत्स्य, कुरू, गांधार के शासक उसकी सत्ता को स्वीकार करते थे| धर्मपाल ने महाराजाधिराज, परमभट्टारक तथा परमेश्वर की उपाधि धारण की थी| धर्मपाल को उत्तरापथ तथा पंचगौड़ का स्वामी कहा जाता है| धर्मपाल ने 810 ईस्वी तक शासन कार्य किया था|

देवपाल (810- 850 ईस्वी)- 

धर्मपाल के पुत्र का नाम देवपाल था और वह धर्मपाल की मृत्यु के बाद पाल वंश के सिंहासन पर आसीन हुआ था| देवपाल इस वंश के अन्य शासकों की तुलना में अधिक योग्य भूमि एवं महत्वाकांक्षी था| गद्दी पर बैठने के पश्चात ही उसने उड़ीसा के राजा का गौरव खंडित कर दिया|

उसने युद्ध में हूणों को परास्त किया था| उसने प्रतिहार वंश के प्रसिद्ध शासक मिहिर भोज को युद्ध में पराजित किया था| अभिलेखों के अनुसार देवपाल का शासन क्षेत्र हिमालय से लेकर विंध्याचल तक विस्तृत था| उसने बोधगया के विहार को 10 गांव तथा राजगिरी के विहार को 4 गांव दान में दिए थे|

देवपाल में लगभग 40 वर्षों तक शासन कार्य किया और 850 ईस्वी में उसकी मृत्यु हो गई| देवपाल के दरबार में बौद्ध कवि ‘वज्रदत्त’ रहता था, उसने प्रसिद्ध ग्रंथ ‘लोकेश्वरशतक’ की रचना की थी|

विग्रहपाल प्रथम- 

देवपाल के बाद विग्रह पाल सिंहासन पर विराजमान हुआ था और उसने लगभग 5 साल तक शासन कार्य किया था| विग्रहपाल को भोज प्रथम ने युद्ध में पराजित किया था| विग्रह पाल और नारायण पाल के समय में पाल वंश का इतिहास अवनत का काल था|

नारायणपाल- 

नारायणपाल एक सुशासन एवं यशस्वी व्यक्ति था| जब वक्त राजगद्दी पर आसीन हुआ था पाल साम्राज्य की शक्ति क्षीण होने लगी थी किसी कारणवश पाल वंश के इतिहास में नारायणपाल के काल को अवनत काल के नाम से जाना जाता है| 

गुर्जर प्रतिहार वंश के सार्थक मिहिर भोज ने नारायणपाल को युद्ध में परास्त किया था| नारायणपाल ने बौद्ध धर्म को त्याग करके शैव धर्म को स्वीकार कर लिया था| कुछ विद्वानों के मतानुसार नारायणपाल ने अपने राज्य में 1000 शिवलिंग स्थापित किए थे|

राज्यपाल- 

राज्यपाल नारायण पाल का पुत्र था और वह नारायणपाल की मृत्यु के उपरांत पाल साम्राज्य के सिंहासन पर हासिल हुआ था| विग्रहपाल और नारायण पाल के समय में पाल राज्य बहुत अस्थिर हो गया था अतः सत्ता संभालने के उपरांत राज्यपाल ने अपने साम्राज्य को पुनः स्थिर करने का प्रयास किया|

जब राज्यपाल ने सत्ता संभाली उस समय राष्ट्रकूटों एवं प्रतिहारों के मध्य भीषण संघर्ष हो रहा था और स्थित का लाभ उठाकर राज्यपाल ने पाल राज्य के पुरातन भागों को पुनः प्राप्त कर लिया| उसने लगभग 24 वर्ष तक शासन कार्य किया था|

**राज्यपाल के बाद पाल वंश के शासकों में गोपाल द्वितीय और विग्रहपाल द्वितीय नामक राजाओं ने सत्ता संभाली थी परंतु यह दोनों शासक बहुत ही निर्भर थे और इनकी अयोग्यता के कारण उनका शासनकाल बहुत ही कम समय का रहा|

महीपाल प्रथम- 

जिस समय पाल साम्राज्य औरतों की पराकाष्ठा पर था तब ऐसा प्रतीत हो रहा था कि शीघ्र ही बंगाल से पाल साम्राज्य लुप्त हो जाएगा परंतु उसी समय महीपाल प्रथम नामक एक अत्यंत पराक्रमी अयोग्य शासक ने सत्ता ग्रहण की| महीपाल विग्रहपाल द्वितीय का पुत्र था|

जब महीपाल सत्ता पर आसीन हुआ था उसे मात्र मगध का साम्राज्य प्राप्त हुआ था परंतु उसने अपनी युद्ध कला और अपने पराक्रम से शीघ्र ही पूर्वी बंगाल तथा उत्तरी बंगाल पर अधिकार कर लिया| चोल वंश के राजा राजेंद्र ने महीपाल पर आक्रमण किया था और इस युद्ध में महीपाल की पराजय हुई|

महीपाल के शासनकाल में पर्याप्त सांस्कृतिक उन्नति हुई थी और भारतीय संस्कृति का प्रचार सुदूर देशों में हुआ था| महीपाल बौद्ध धर्म का अनुयाई था और उसने बौद्ध मंदिरों के निर्माण करवाए थे|

नयपाल- 

महिपाल की मृत्यु के बाद नयपाल पर साम्राज्य के सिंहासन पर विराजमान हुआ था| विद्वानों के मतानुसार नयपाल और चेदि नरेश लक्ष्मीकर्ण के मध्य संघर्ष हुआ था| यह युद्ध बहुत कम समय तक चला था और अंत में दोनों पक्षों में संधि हो गई थी|

विग्रहपाल तृतीय- 

नयपाल की मृत्यु के उपरांत उसका पुत्र विग्रहपाल तृतीय पाल साम्राज्य के सिंहासन पर बैठा| विग्रहपाल ने लक्ष्मीकर्ण की पुत्री यौवनश्री से विवाह किया था और इस संबंध के कारण पाल वंश और चेदि वंश के मध्य मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित हुए|

पाल वंश के शासकों की शासन व्यवस्था-

पाल साम्राज्य में एक सुव्यवस्थित शासन व्यवस्था का संगठन किया था| किस वंश के शासकों ने महाराजाधिराज, परमभट्टारक, परमेश्वर आदि कई उपाधियां धारण की थी| यमराज एक विशाल साम्राज्य था और इस वंश के शासक बड़ी ही सुविधा पूर्वक अपने राज्य पर नियंत्रण रखते थे|

इस साम्राज्य के शासकों की नीतियां धर्मनिरपेक्ष थी| राजा के अधिकारियों में मंत्रियों का प्रमुख स्थान होता था और वह राजकार्य में राजा को सलाह प्रदान करते थे| पाल वंश के शासकों की सेना चतुरंगिणी थी|

पाल वंश का पतन-

विग्रहपाल तृतीय के बाद पाल वंश का पतन प्रारंभ हो गया था और उसके तीन पुत्रों में गृह युद्ध आरंभ हो गया| इस गृह युद्ध का लाभ उठाकर पूर्वी बंगाल के नरेश तथा उत्तरी बंगाल के कई क्षेत्रों में अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी| धीरे धीरे पाल साम्राज्य का पतन होता चला गया और लगभग 4 शताब्दी के लंबे समय के बाद पाल वंश के इतिहास की समाप्ति हुई|

इस काल में कला और विद्या के क्षेत्र में महत्वपूर्ण एवं सराहनीय कार्य हुए| पाल सम्राटों ने कई जन उपयोगी कार्य किए और उन्होंने कई मठ और विद्या केंद्रों की स्थापना भी की थी| इसमें वृहत्तर भारत के निर्माण में अमूल्य एवं सराहनीय योगदान दिया था|


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