नाना साहेब का जीवन परिचय Nana Sahib Biography in Hindi
Nana Sahib Biography in Hindi-
झांसी की रानी लक्ष्मी बाई और तात्या टोपे के साथ नाना साहेब को 1857 की क्रांति के प्रमुख योद्धाओं के रूप में जाना जाता है| नाना साहिब ने 1857 के विद्रोह में क्रांति की एक नयी मशाल जलायी| उन्होंने ब्रिटिश से मुकाबला करने के लिए स्वयं तलवार उठायी और अन्य लोगों के लिए प्रेरणा के स्रोत बने|
Short Biography of Nana Sahib in Hindi-
नाम | नाना साहेब |
जन्म तिथि | 19 मई 1824 |
जन्म स्थान | बिठूर (कानपुर) |
उपाधि | पेशवा |
पिता का नाम | नारायण भट्ट |
माता का नाम | गंगा बाई |
किसने गोद लिया | 1827 में बाजी राव द्वितीय ने नाना साहिब को गोद लिया था। |
Nana Sahib Biography and History in Hindi-
नाना साहिब का जन्म जून 1824 में महाराष्ट्र के वेणु में हुआ था। उनके बचपन का नाम ‘धोंदु पंत’ था| उनके पिता का नाम माधव नारायण भट्ट और माता का नाम गंगा बाई था| उन्हें पेशवा बाजीराव द्वितीय ने 1827 में अपने बेटे के रूप में गोद लिया था। नाना साहेब की शिक्षा का उचित प्रबंध किया गया था और इसके साथ ही साथ उन्हें सैन्य शिक्षा भी दी गयी थी|
नाना साहिब को घुड़सवारी का भी ज्ञान था और वह एक कुशल तलवार बाज थे| रानी लक्ष्मी बाई और तात्या टोपे उनके बचपन के दोस्त थे। नाना साहेब बहुत बहादुर और प्रतिभाशाली थे।
जब 1851 में नाना साहिब पेशवा बजी राव के उत्तराधिकारी तब ब्रटिश सरकार ने उन्हें उनकी पेंसन देने से इंकार कर दिया| इस बात से नाना साहिब ने ब्रिटिश सरकार को अपना दुश्मन बनाया और उनके साथ हर प्रकार के युद्ध करने के लिए तत्पर हो गए| उन्होंने बड़ी ही बहादुरी और कौशल से ब्रिटिश सेना का सामना किया था|
उनकी बहादुरी का गुणगान कई विदेशी लेखकों ने अपनी पुस्तकों में किया है| नाना साहब (Nana Sahib) ने हमेशा हिन्दू और मुसलामानों को एक साथ मिलकर चलने का प्रयत्न किया था और वह हर धर्म के लोगों को एक साथ रखकर एकता कायम करना चाहते थे|
1857 का विद्रोह और नाना साहेब-
कानपुर एक महत्वपूर्ण स्थान था जहां ग्रांड ट्रंक रोड और झांसी से लखनऊ को जोड़ने वाला रास्ता एक दुसरे से मिलते थे| जब ब्रिटिश सरकार ने उनकी वार्षिक पेंशन को रोक दिया तब उन्होंने अदालत में अपनी मांग रखनी चाही परन्तु नाना साहेब की अपील स्वीकार नहीं की गई थी।
इस घटना ने उन्हें ब्रिटिश शासकों का परम शत्रु बना दिया। 1857 में कानपुर में एक भयंकर लड़ाई के हुई इस युद्ध के बाद जनरल सर ह्यूग व्हीलर (General Sir Hugh Wheeler) ने 27 जून, 1857 को आत्मसमर्पण कर दिया।
नाना साहिब ने किसी भी निर्दोष व्यक्ति और अंग्रेजी महिलाओं तथा बच्चों को सुरक्षित रहने का सम्पूर्ण प्रयास किया, और उन्हें इलाहाबाद में सुरक्षित रखने का आश्वासन दिया गया था। हालांकि इलाहाबाद में जनरल जेम्स ओ’नील ने भारतीयों के ऊपर अमानवीय अत्याचार करना प्रारम्भ कर दिया| जिससे बनारस और इलाहबाद के लोग बदले की भावना से भर गए|
उन लोगों ने ब्रिटिश पुरुषों, महिलाओं और बच्चों की हत्या करके अपना प्रतिशोध लिया| कानपुर में भीषण नरसंहार हुआ जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए|
कानपुर में हुई इन घटनाओं के बाद नाना साहेब ने खुद को पेशवा घोषित कर दिया। तात्या टोपे, ज्वाला प्रसाद और अजीमुल्लाह खान नाना साहिब के सबसे वफादार साथी थे, और उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ बड़ी ही वीरता से नाना साहेब का साथ दिया था|
जून 1857 में अंग्रेजों ने नाना साहिब को हरा दिया और फिर नवंबर 1857 में नाना साहिब और तात्या टोपे ने कानपुर को फिर से हासिल कर लिया था| लेकिन वे लंबे समय तक इसे अपने अधिकार में नहीं रख सके, क्योंकि जनरल कैंपबेल ने 6 दिसंबर 1857 को फिर से कानपुर पर हमला करके उसे जीत लिया|
नाना साहिब इसके बाद नेपाल चले गए और तात्या टोपे वहां से बच निकलकर झांसी की रानी के साथ शामिल हो गए।
यह भी जाने- भारत के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी
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