छायावादी युग, छायावाद के चार स्तंभ

छायावादी युग, छायावाद के चार स्तंभ एवं प्रवर्तक

हिन्दी साहित्य में द्विवेदी युग के उपरांत कविताओं में जो धारा प्रवाहित हुई, उसे हम छायावादी कविताओं के नाम से जानते हैं। छायावादी युग की का समय सन् 1917 से 1936 ई तक मन गया है।

आलोचकों ने इस युग को छायावाद और इन कविताओं को छायावादी कविता का नाम दिया है| आधुनिक हिंदी काव्य एवं कविता को सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि इसी काल की कविताओं में मिलती है। लाक्षणिकता, नूतन प्रतीक विधान, चित्रमयता, मधुरता, व्यंग्यात्मकता, सरसता आदि गुणों के कारण छायावादी कविता ने धीरे-धीरे अपना एक अलग प्रशंसक वर्ग उत्पन्न कर लिया। छायावाद शब्द का प्रयोग सबसे पहले मुकुटधर पाण्डेय ने किया।

छायावादी कवियों (Chhayavadi Kavi) ने अधिकांशतः प्रकृति के कोमल रूपों का चित्रण अपने काव्य में किया है,परंतु कहीं-कहीं प्रकृति के उग्र रूप का चित्रण भी किया गया है| कवियों ने अपने काव्य में सुख-दु:ख,आशा-निराशा, उतार-चढ़ाव की अभिव्यक्ति खुल कर की।

छायावादी युग (Chayavadi Yug) के कवियों का मन प्रकृति के चित्रण में खूब रमा है और प्रकृति के प्रेम और सौंदर्य की व्यंजना छायावादी कविता की प्रमुख विशेषता रही है। छायावादी कवियों ने प्रकृति को अपने काव्य का साधन बनाया एवं अपने काव्य में उन्होंने प्रकृति को सजीव बना दिया है।

Important Point- ‘छायावाद’ के प्रवर्तक का नाम क्या है?- जयशंकर प्रसाद

छायावादी युग के कवि और उनकी रचनाएं-

डॉ कृष्णदेव झारी के अनुसार छायावाद युग (Chayavadi Yug) के चार प्रमुख आधार स्तंभ हैं, ये आधार स्तम्भ हैं- जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ एवं कवयित्री महादेवी वर्मा। छायावादी युग के अन्य कवियों में डॉ.रामकुमार वर्मा, जानकी वल्लभ शास्त्री, हरिकृष्ण प्रेमी, उदयशंकर भट्ट, भगवतीचरण वर्मा, नरेन्द्र शर्मा, रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’ के नाम उल्लेखनीय हैं। इनकी रचनाएं अग्रलिखित हैं :-

1. महाकवि जयशंकर प्रसाद (1889-1936 ई.) के काव्य संग्रह : चित्राधार(ब्रज भाषा में रचित कविताएं); कानन-कुसुम; महाराणा का महत्त्व, चंद्रगुप्त, अजातशत्रु, करुणालय; आंसू; लहर; झरना ; कामायनी।

2. सुमित्रानंदन पंत (1900-1977ई.) के काव्य संग्रह :वीणा; ग्रन्थि; पल्लव; युगान्त, गुंजन, ग्राम्या; युगवाणी; स्वर्ण-किरण; स्वर्ण-धूलि; युगान्तर|

3. सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ (1898-1961ई.) के काव्य-संग्रह: अनामिका, गीतिका ; परिमल; तुलसीदास; कुकुरमुत्ता; आराधना; अणिमा; नए पत्ते; बेला; अर्चना।

4. महादेवी वर्मा (1907-1988ई.) की काव्य रचनाएं:रश्मि; दीपशिखा; निहार; सांध्यगीत; यामा, नीरजा।

5. डॉ. रामकुमार वर्मा की काव्य रचनाएं : अंजलि ; चितौड़ की चिता; रूपराशि; अभिशाप ; चंद्रकिरण; निशीथ; वीर हमीर; चित्ररेखा; एकलव्य।

6. हरिकृष्ण ‘प्रेमी’ की काव्य रचनाएं : आखों में ; जादूगरनी; अनंत के पथ पर; अग्निगान; रूपदर्शन; स्वर्णविहान।


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