चंदेरी का युद्ध Chanderi And Ghagra ka Yudh

चंदेरी का युद्ध (21 जनवरी 1528)

  • चंदेरी का प्रसिद्ध युद्ध ( Chanderi ka Yudh ) 21 जनवरी 1528 ई. को मुग़ल बादशाह बाबर एवं राजपूतों के मध्य लड़ा गया था।

चंदेरी का प्रसिद्ध दुर्ग मेदनीराय के अधिकार में था, बाबर ने मेदनीराय पर धावा बोला और 20 जनवरी 1528 को वह चंदेरी पहुंचा| मेदनीराय 5000 राजपूतों के साथ किले का फाटक बंद कर दिया| नगर के सामने 230 फ़ीट ऊंची चट्टान पर चंदेरी का दुर्ग बना हुआ था|

यह स्थान मालवा तथा बुंदेलखंड की सीमाओं पर स्थित होने के कारण से महत्वपूर्ण था| बाबर ने मेदनीराय के सामने जागीर लेकर किले को सौंप देने का प्रस्ताव किया परंतु उसने संधि करने से मना कर दिया| इसी समय पूर्व से खबर मिली की अफगानों ने शाही सेना को पराजित कर दिया है जो लखनऊ छोड़कर कन्नौज लौटाने के लिए विवश हुई थी|

इस समाचार को सुनकर बाबर घबराया नहीं बल्कि उसने किले का घेरा जारी रखा, उसने किले पर चारों ओर से इतनी जोर का हमला किया कि राजपूतों ने निराश होकर जौहर किया और वीरता पूर्वक लड़कर सब के सब वीरगति को प्राप्त हुए और किले पर बाबर का अधिकार हो गया|

इसी बीच 30 जनवरी को महाराणा सांगा का देहांत हो गया और निकट भविष्य में राजपूत शक्ति के पुनरुत्थान की रही सही आशा भी जाती रही| विद्रोही अफगान सरदार दबा दिए गए और सन 1528 के अंत तक बाबर ने शांति का उपभोग किया |

घाघरा का युद्ध (6 मई 1529 )

  • घाघरा का प्रसिद्ध युद्ध ( Ghagra ka Yudh ) 6 मई, 1529 ई. को मुग़ल बादशाह बाबर एवं अफ़ग़ानों के मध्य लड़ा गया था।
  • घाघरा के युद्ध में बाबर ने बंगाल तथा बिहार की संयुक्त सेनाओं को परास्त किया और इस लड़ाई विशेषता थी कि यह युद्ध जल और थल दोनों पर लड़ा गया था।
  • घाघरा के युद्ध के पश्चात (लगभग डेढ़ वर्ष बाद) ही बीमारी के कारणवश 26 दिसम्बर, 1530 को बाबर की मृत्यु हो गई।

बाबर कि कई जीतों के बाद भी अभी अफ़ग़ानों के ऊपद्रवों का अंत नहीं हुआ था इब्राहिम लोदी के भाई महमूद लोदी ने बिहार को जीत लिया था और पूर्वी प्रदेशों के एक बड़े भाग ने उसका साथ दिया था| बाबर ने इस विद्रोही के विरुद्ध एक सेना के साथ अपने पुत्र अस्करी को भेजा और पीछे स्वयं भी गया|

इस सूचना को सुनकर की बाबर आ रहा है शत्रु तितर-बितर हो गए जब वो इलाहाबाद चुनार और बनारस होते हुए बक्सर जा रहा था तब बहुत से अफगान सरदारों ने उसकी अधीनता स्वीकार की, अपने प्रधान सहयोगियों द्वारा परित्यक्त होकर महमूद ने बंगाल में शरण ली| 

बंगाल के शासक नुसरतशाह ने बाबर से मिल दिखाया था लेकिन उसकी सेनाओं ने भागे हुए अफगान विद्रोहियों को शरण दी थी, बाबर बंगाल की ओर बढ़ा, उसने अफगानों को 6 मई 1529 को घाघरा की प्रसिद्ध लड़ाई (Ghaghra ki Ladai) में पराजित किया, बाबर की विजय लोदियों की बची खुशी आशा भी जाती रही और कई प्रधान अफगान सरदारों ने बाबर की अधीनता स्वीकार कर ली|


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