चंदेल वंश का इतिहास Chandel Vansh History in Hindi

चंदेल वंश का इतिहास-

चंदेल वंश के शासक 9वी शताब्दी के प्रारंभ में बुंदेलखंड में राज करते थे, इस वंश की उत्पत्ति किस प्रकार हुई थी इस विषय में उनके दोनों में कोई निश्चित मत नहीं है| चंदेलों के अभिलेख से यह ज्ञात होता है कि अत्रि के नेत्र से चंद्रमा का जन्म हुआ था और चंद्रमा की संतान चंदात्रेय ऋषि थे|

ऐसा माना जाता है कि चंदात्रेय की संतान चंदेल कहलाए थे| ‘चंद्रवरदाई’ के अनुसार चंदेल वंश का जन्म एक ब्राह्मण कन्या हेमवती और चंद्रमा के सहयोग से हुआ था| जिस प्रकार अन्य राजपूतों के विषय में इतिहासकारों को पर्याप्त जानकारी नहीं है उसी प्रकार चंदेल वंश की उत्पत्ति के विषय में भी इतिहासकारों में मतभेद है|

इस वंश के राजाओं ने हिंदू धर्म और संस्कृति की रक्षा की थी| यशोवर्मन, गण्ड, धंग, विद्याधर आदि कई राजाओं ने मुस्लिम आक्रमणकारियों से भारत के क्षेत्र को बचाने का प्रयत्न किया था|

चंदेल वंश की राजधानी-

इस वंश के राजाओं ने देश में एक सुशासन की व्यवस्था स्थापित की थी|चंदेल वंश की राजधानी खजुराहो थी और इनका शासन क्षेत्र बुंदेलखंड तथा उसके आसपास का क्षेत्र था| चंदेल वंश के प्रथम शासक का नाम ‘नन्नूक’ था| प्रारंभ में किस वंश का शासन क्षेत्र बहुत ही सीमित था परंतु जब प्रतिहार वंश के शासकों की शक्ति क्षीण हुई तब हर्षदेव चंदेल ने अपने राज्य का बहुत अधिक विस्तार किया था|

चंदेल वंश के प्रमुख शासक-

  • नन्नुक (831 -45) ( चंदेल वंश का संस्थापक)
  • वाक्पति (845 -870)
  • जयशक्ति चन्देल और विजयशक्ति चन्देल (870 -900)
  • राहिल 
  • हर्ष चन्देल (900-925)
  • यशोवर्मन् (925-950)
  • धंगदेव (950-1003)
  • गंडदेव (1003–1017)
  • विद्याधर (1017–1029)
  • विजयपाल (1030–1045)
  • देववर्मन (1050-1060)
  • कीर्तिसिंह चन्देल (1060-1100)
  • सल्लक्षनवर्मन (1100-1115)
  • जयवर्मन 
  • प्रथ्वीवर्मन (1120-1129)
  • मदनवर्मन (1129–1162)
  • यशोवर्मन द्वितीयI (1165-1166)
  • परर्मार्दिदेव

चंदेल वंश का पतन-

विद्याधर की मृत्यु के उपरांत चंदेल वंश की शक्ति बहुत अधिक कमजोर हो गई और उसके पुत्र विजयपाल तथा पौत्र देववर्मन के समय में चंदेल वंश के शासक अन्य राजाओं की आधीनता स्वीकार करने लगे थे| इसके बाद चंदेल वंश का शासक कीर्तिवर्मन हुआ, कीर्ति वर्मन एक प्रतापी राजा था और वह युद्ध नीति में काफी कुशल था|

उसने चेदि नरेश कर्ण को परास्त कर के पुनः अपने वंश की स्वतंत्रता घोषणा की| गोपाल नामक एक सामंत ने कर्ण को पराजित किया था| कीर्तिवर्मन के पश्चात कई अन्य शासक भी चंदेल वंश की राजगद्दी पर आसीन हुए परंतु उनके काल में कोई विकास का कार्य नहीं हुआ था और ना ही इन शासकों ने कोई बड़ी उपलब्धि हासिल की थी|

चंदेल वंश का अंतिम महान शासक परमाल हुआ जिसने 1165 ईस्वी से 1203 ईस्वी तक राज्य कार्य किया था| परमाल को पृथ्वीराज चौहान ने 1182 ईस्वी में पराजित किया था| 1203 ईस्वी में कुतुबुद्दीन ने परमाल को पराजित करके कालिंजर के दुर्ग पर अपना प्रभुत्व जमा लिया था, इसी दुर्ग में परमाल की मृत्यु हो गई थी और इसी के साथ चंदेल वंश का लगभग संपूर्ण पतन हो गया था|

चंदेल वंश की कलाकृतियां-

भारत के इतिहास में चंदेल राजाओं का शासन काल कला की उन्नति की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण एवं प्रसिद्ध काल था| उस समय की कला के कई उदाहरण आज भी खजुराहो में विद्यमान हैं| खजुराहो में लगभग 30 मंदिर बने हैं जो विष्णु, शिव तथा जैन तीर्थंकरों की उपासना में निर्मित कराए गए थे| चंदेल वंश के राजाओं ने कंदारिया महादेव का मंदिर बनवाया था जो कि विश्व विख्यात मंदिर है|


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