चन्द्रगुप्त मौर्य का इतिहास Chandragupta Maurya History in Hindi

Chandragupta Maurya history in Hindi

चन्द्रगुप्त मौर्य की उत्पत्ति एवं उनके प्रारंभिक जीवन के बारे में हमें बहुत कम जानकारी मिलती है और इस संदर्भ में विभिन्न पक्षों एवं साक्ष्यों का तुलनात्मक अध्ययन करने के पश्चात बौद्ध साक्ष्यों को बहुत ही अधिक प्रासंगिक एवं प्रमाणिक माना गया है| 

अतः हम बौद्ध साक्ष्यों के द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुसार ही चन्द्रगुप्त मौर्य के जीवन से संबंधित घटनाओं का उल्लेख यहां पर करेंगे| चन्द्रगुप्त मौर्य का जन्म मोरिय नामक जाति में हुआ था| चन्द्रगुप्त के पिता का नाम नंदा एवं उनकी माता का नाम मूरा था| उनके पिता मोरिय जाति के मुखिया थे जो कि कालांतर में एक सीमान्त संघर्ष में मारे गए थे| पिता की मृत्यु के बाद चन्द्रगुप्त मौर्य की माता पाटिल पुत्र पहुंची और वहीं पर चन्द्रगुप्त मौर्य का जन्म हुआ|

Important Points-

  • चन्द्रगुप्त मौर्य का जन्म कहां हुआ था?- पाटिलपुत्र
  • चन्द्रगुप्त मौर्य का जन्म कब हुआ था? 340 ई॰पु॰,
  • मौर्य साम्राज्य के संस्थापक कौन थे? चन्द्रगुप्त मौर्य
  • चन्द्रगुप्त मौर्य का राज्यारोहण कब हुआ था? 322 ईसा पूर्व
  • चंद्रगुप्त मौर्य की मृत्यु कब हुई थी? 297 ईसा पूर्व
  • चंद्रगुप्त मौर्य की मृत्यु कहां हुई थी ? श्रवणबेलगोला, कर्नाटक

जिस समय चन्द्रगुप्त मौर्य का जन्म हुआ उस समय उनके जीवन को लेकर कई खतरे थे और इन्हीं खतरों को देखते हुए सुरक्षा के ख्याल से चन्द्रगुप्त के मामाओं ने उन्हें एक गौशाला में छोड़ दिया| गौशाला में एक गडरिया ने चन्द्रगुप्त को पाया और उन्हें अपने घर ले गया| उस गडरिया ने चन्द्रगुप्त का पालन-पोषण एक पुत्र की तरह किया और थोड़ा बड़े होने पर चन्द्रगुप्त को एक शिकारी के हाथ बेच दिया|

चन्द्रगुप्त मौर्य इतिहास व जीवन परिचय

Chandragupta Maurya History and Jeevan Parichay in hindi

क्रमांक जीवन परिचय बिंदु चन्द्रगुप्त जीवन परिचय
1. पूरा नाम चन्द्रगुप्त मौर्य
2. जन्म 340 BC
3. जन्म स्थान पाटलीपुत्र , बिहार
4. माता-पिता नंदा, मुरा
5. पत्नी दुर्धरा
6. बेटे बिंदुसार

 

Chandragupta Maurya story in Hindi

चन्द्रगुप्त ने एक राजकीलम नाम के खेल में अपनी प्रतिभा का परिचय दिया, क्योंकि वह उस खेल में स्वयं राजा बनते थे और अपने संगी-साथियों को अपने राज्य का कर्मचारी बनाते थे| राज्यसभा में बैठकर वह न्याय का कार्य करते थे और इसी प्रकार के कई अन्य खेल भी अपने बचपन में खेला करते थे|

चाणक्य ने पहली बार चन्द्रगुप्त को वही खेल खेलते हुए देखा था और उसने चन्द्रगुप्त की प्रतिभा को देखते हुए एक हजार कर्षापण में खरीद लिया| चन्द्रगुप्त मौर्य बचपन में बहुत ही बुद्धिमान एवं प्रतिभाशाली थे और चाणक्य ने उस प्रतिभावान एवं बुद्धिमान बच्चे के जीवन को अपनी शिक्षा से नई दिशा दी, जो कि आगे चलकर भारत के इतिहास में अजर और अमर हो गई|

चाणक्य और चन्द्रगुप्त की मुलाकात भारतीय इतिहास की एक प्रसिद्ध घटना है चाणक्य ज्ञान की खोज के लिए पाटिलपुत्र का भ्रमण कर रहे थे और वहीं पर उन्हें चन्द्रगुप्त मौर्य दिखाई पड़े| जिस समय चाणक्य पाटलिपुत्र का भ्रमण कर रहे थे उस समय मगध साम्राज्य पर नंद वंश के शासकों का शासन था, नंद वंश के शासक घनानंद वहां के राजा थे|

इतिहासकारों के अनुसार चाणक्य को घनानंद ने अपनी दानशाला का अध्यक्ष नियुक्त किया था परंतु चाणक्य बहुत ही कुरूप थे जिस वजह से घनानंद ने उन्हें पद से बर्खास्त कर दिया| इस अपमान का बदला लेने के लिए चाणक्य ने नंद वंश को समाप्त करने का निर्णय लिया और इसी उद्देश्य से उन्होंने चन्द्रगुप्त मौर्य को खरीदा तथा उन्हें शिक्षित किया|

उन्होंने चन्द्रगुप्त मौर्य को हर वह शिक्षा उपलब्ध कराई जो कि किसी भी व्यक्ति के राजा बनने के लिए स्वाभाविक एवं महत्वपूर्ण थी| चाणक्य ने चन्द्रगुप्त मौर्य को एक ऐसा योद्धा, एक ऐसा ज्ञानी बनाया जिसका लोहा उस समय पूरी दुनिया मानती थी|

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चन्द्रगुप्त मौर्य की पहली पत्नी दुर्धरा-

चन्द्रगुप्त मौर्य की पहली पत्नी का नाम दुर्धरा था| ऐसा माना जाता है कि दुर्धरा चन्द्रगुप्त के सबसे बड़े मामा की बेटी थी| चन्द्रगुप्त के बड़े मामा राजा धनानंद के खिलाफ चन्द्रगुप्त मौर्य का समर्थन करने पाटिलपुत्र आये थे| कुछ लोग दुर्धरा को धनानंद की बेटी भी मानते हैं|

इतिहासकारों में इस विषय पर मतभेद है| चन्द्रगुप्त मौर्य की पत्नी दुर्धरा ही अपने एकमात्र पुत्र बिंदुसार की माता थीं, बिन्दुसार ही मौर्य साम्राज्य का दूसरा सम्राट बना था। हालांकि, दुर्धरा अपने बेटे को सम्राट बनते हुए नहीं देख पायीं थी क्यूंकि उससे पहले ही उनकी मृत्यु हो गयी थी|

जब दुर्धरा नौ महीने की गर्भवती हुई तो चन्द्रगुप्त मौर्य को विषाक्त दूध से मारने का प्रयत्न किया गया था, और गलती से वह दूध दुर्धरा ने पी लिया| जिससे उनकी और उनके गर्भ में पल रहे बच्चे की जान को खतरा उत्पन्न हो गया| तब आचार्य चाणक्य ने हाशिये से उनके पेट को चीरकर बिन्दुसार को बाहर निकाला|

चन्द्रगुप्त मौर्य की दूसरी पत्नी हेलेना-

दुर्धरा की मृत्यु के बाद चन्द्रगुप्त ने दूसरी शादी नहीं की और उस समय उनकी उम्र लगभग 40 वर्ष हो चुकी थी|, हेलेना सेलेकस निकेटर की बेटी थीं, जिसे चन्द्रगुप्त मौर्य ने युद्ध में पराजित किया था। युद्ध के बाद, चन्द्रगुप्त मौर्य ने हेलेना से शादी की थी|

इतिहासकारों के मतानुसातर चन्द्रगुप्त मौर्य और हेलेना का विवाह दो राज्यों के बीच एक रणनीतिक गठजोड़ था, परन्तु कुछ कहानियां ऐसी भी हैं जो यह दर्शाती हैं कि हेलेना और चन्द्रगुप्त का विवाह एक प्रेम विवाह था| ऐसा माना जाता है कि चन्द्रगुप्त के युद्ध कौशल पर हेलेना मोहित हो गयी और अंततः उन दोनों ने विवाह कर लिया|

हेलेना और चन्द्रगुप्त का विवाह लंबे समय तक नहीं चला क्योंकि चन्द्रगुप्त मौर्य ने विवाह के कुछ समय पश्चात् ही जैन धर्म को अपना लिया और हेलेना से शादी के 4-5 साल बाद ही चन्द्रगुप्त मौर्य कि मृत्यु हो गई।

चन्द्रगुप्त मौर्य का राज्यारोहण

चन्द्रगुप्त मौर्य ने पंजाब की धरती को विदेशी दासता से मुक्त कराने के बाद देश को नंद शासकों के अत्याचारों से मुक्त कराने का संकल्प लिया था| उस समय पंजाब की धरती पर विदेशी शक्तियों का प्रभुत्व था जिसको चन्द्रगुप्त ने अपनी कला कौशल, एवं युद्धों से लगभग उखाड़ फेंका था|

सर्वप्रथम चन्द्रगुप्त मौर्य ने मगध साम्राज्य के केंद्रीय भाग पर आक्रमण किया परंतु उसे इस युद्ध में पराजय का सामना करना पड़ा और इस युद्ध में उसको सफलता नहीं मिली|

इसके पश्चात उसने सीमांत प्रदेशों को अपना निशाना बनाया और सीमांत प्रदेशों से अपने विजय रथ को आरंभ किया तथा रास्ते में आने वाले सभी जनपदों पर चन्द्रगुप्त ने विजय प्राप्त की और अपने साम्राज्य का प्रभुत्व स्थापित किया|

उसने अपनी विजई सेना के साथ मगध साम्राज्य की सीमा में प्रवेश करके पाटिल पुत्र पर घेरा डाला| उस समय पाटिल पुत्र पर नंद वंश के राजा धनानंद का साम्राज्य था और वहां का शासन कार्य धनानंद ही संचालित करता था| उसने कालांतर में धनानंद को पराजित किया और मार डाला|

नंद के विरुद्ध युद्ध में चन्द्रगुप्त को सैनिक तत्वों की अपेक्षा नैतिक तत्वों से कहीं अधिक सहायता प्राप्त हुई| चाणक्य ने इस कार्य में चन्द्रगुप्त की भरपूर सहायता की क्योंकि धनानंद ही चाणक्य को अपने राज्य से बर्खास्त किया था|

जिस समय नंद सेनाओं से चन्द्रगुप्त का युद्ध हो रहा था उस समय नंद वंश का सेनापति भद्रसाल हुआ करता था| इस युद्ध में बहुत ही भीषण रक्तपात हुआ| मुद्राराक्षस ग्रंथ से यह विदित होता है कि नंद शासक की हत्या कर दी गई थी और 322 ईसा पूर्व में चन्द्रगुप्त मौर्य का राज्यारोहण हुआ था|

चन्द्रगुप्त और सेल्यूकस-

जब सिकंदर का राज्य अपनी चरम सीमाओं पर था तब सिकंदर के साम्राज्य के पूर्वी भाग का स्वामी सेल्यूकस हुआ करता था| सेल्यूकस ने सिकंदर के द्वारा जीते गए भारत के विभागों को पुनः विजित करने के लिए 305 ईसापूर्व में भारत पर आक्रमण किया|

सिकंदर ने भारत के कई राज्यों पर अपना अधिकार किया था और सेल्यूकस भी सिकंदर की तरह ही एक महत्वाकांक्षी व्यक्ति था, जिसने भारत पर अधिकार करने के लिए पुनः आक्रमण किया था परंतु इस बार यूनानी आक्रमणकारी अर्थात सेल्यूकस पूरी तरह से भारतीय साम्राज्य के शासक द्वारा पराजित हुआ|

इस युद्ध में हार के पश्चात विवश होकर सेल्यूकस को संधि करनी पड़ी| इसके उपहार स्वरूप चन्द्रगुप्त ने 500 हाथी भेंट किए परंतु इस संधि की जो शर्तें थी वह सेल्यूकस के लिए अप्रिय थी; क्योंकि सेल्यूकस को अपने साम्राज्य का महत्वपूर्ण भाग चन्द्रगुप्त मौर्य को देना पड़ा था| 

गांधार और काबुल का इलाका अब चन्द्रगुप्त के आधीन हो गया था और इसके साथ ही मौर्य साम्राज्य की सीमाएं अब ईरान की सीमाओं तक बढ़ गई थी|

चन्द्रगुप्त मौर्य की उपलब्धियाँ एवं उसकी विजयें-

चन्द्रगुप्त मौर्य एक बुद्धिमान, कुशल योद्धा एवं परमवीर शासक था| उसका बचपन बहुत ही संघर्षमय था| वह अपने पराक्रम, परिश्रम और निपुणता से भारत के इतिहास का प्रथम सम्राट एवं प्राचीन भारत का एक प्रमुख सम्राट बना|

वह प्रथम भारतीय साम्राज्य निर्माता एवं एक कुशल प्रशासक के रूप में इतिहास में विख्यात है| उसने अपनी प्रतिभाओं और योग्यताओं से सम्राट का पद प्राप्त किया| चन्द्रगुप्त के समय में भारतीय साम्राज्य का विस्तार बहुत ही अधिक हुआ और उसने लगभग समस्त भारत पर अपना शासन स्थापित किया|

चन्द्रगुप्त मौर्य के साम्राज्य की सीमाएं ईरान तक फैली हुई थी| चन्द्रगुप्त मौर्य का शासन काल लगभग 24 वर्षों तक कथा वह एक महान विजेता था, एक महान विजेता होने के साथ ही साथ वह कला एवं साहित्य का प्रेमी भी था|

चन्द्रगुप्त के समय में पश्चिमोत्तर भारत पर सिकंदर का शासन कार्य हुआ करता था सिकंदर एक विदेशी था और भारत की धरती पर विदेशी आधिपत्य को देखकर चन्द्रगुप्त मौर्य बहुत ही दुखी था| चन्द्रगुप्त मौर्य के सलाहकार चाणक्य विदेशी आधिपत्य के घोर विरोधी थे|

चन्द्रगुप्त मौर्य का प्रथम कर्तव्य और अभिलाषा यही थी कि वह विदेशी शासन से भारतीय धरती को मुक्त कराएं| उसकी योजना यह थी कि वह सर्वप्रथम भारत में फैले यूनानी शासकों का सफाया कर दे और उसने इस कार्य को करने के लिए निकानोर और फिलिप की हत्या भी करवा दी|

जब सिकंदर को इस बात का पता चला तो वह बहुत ही क्रोधित हुआ परंतु चन्द्रगुप्त के इस विद्रोह के खिलाफ सिकंदर कोई भी कारगर कदम उठाने में असमर्थ था| धीरे धीरे कर के चन्द्रगुप्त ने यूनानियों को भारत से निकालने में सफलताएं हासिल की इसी कारणवश चन्द्रगुप्त को मुक्तिदाता भी कहा जाता है|

जब 323 ईसा पूर्व में सिकंदर की मृत्यु हो गई तब चन्द्रगुप्त की योजनाओं को और अधिक बल मिला और उसने यूनानियों की पारस्परिक कलह का लाभ उठाते हुए यूनानियों के साम्राज्य को लगभग धराशायी कर दिया|

चन्द्रगुप्त मौर्य को मुक्तिदाता इसलिए कहा जाता है क्योंकि उसने मगध की जनता को नंदों के अत्याचारी शासन एवं शासकों से मुक्ति दिलाई और दूसरी तरफ उसने यूनानी आक्रमणकारियों का लगभग सफाया कर दिया और विदेशी ताकतों से भारत को मुक्त करा दिया|

चन्द्रगुप्त मौर्य ने उत्तर भारत के साथ-साथ दक्षिण भारत में भी अपने विजय अभियान को बढ़ाया और दक्षिण भारत के कई राज्यों को अपने प्रभुत्व में ले लिया| इतिहासकारों के मतानुसार वृद्धावस्था में चन्द्रगुप्त ने अपना राजपाट छोड़कर जैन साधु भद्रबाहु का शिष्य बन गया|

चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपनी असीम सैन्य शक्ति एवं युद्ध कौशल के बल पर लगभग समस्त भारत का एकीकरण कर दिया था, प्रारंभिक विजयों के परिणाम स्वरुप चन्द्रगुप्त का साम्राज्य व्यास नदी से लेकर सिंधु नदी तक के प्रदेश पर हो गया था|

जिस समय चन्द्रगुप्त मौर्य की मृत्यु हुई उस समय उसके साम्राज्य का विस्तार पश्चिम में हिंदुकुश पर्वत से लेकर पूर्व में बंगाल की खाड़ी तक तथा उत्तर में हिमालय की श्रृंखलाओं से लेकर दक्षिण में मैसूर तक था|

चंद्रगुप्त मौर्य तथा चाणक्य एक विस्तृत एवं संगठित केंद्रीय मूल साम्राज्य की स्थापना करना चाहते थे| और अपनी इसी योजना को कार्यान्वित करने के लिए चंद्रगुप्त ने कई प्रदेशों पर विजय प्राप्त की, चंद्रगुप्त ने जिन-जिन प्रदेशों पर विजय प्राप्त की उनका वर्णन अग्रलिखित है-

पंजाब पर विजय-

चंद्रगुप्त ने अपनी विजय पंजाब राज्य से प्रारंभ की थी| पर कर जब सिकंदर भारत से चला गया तब इस मौके का फायदा उठाकर 316 ईसा पूर्व में चंद्रगुप्त मौर्य ने संपूर्ण पंजाब पर अपने राज्य का प्रभुत्व स्थापित किया|

मगध राज्य पर विजय-

चंद्रगुप्त मौर्य ने नंद राजाओं का विनाश करके मगध राज्य पर अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहा और इसी उद्देश्य से उसने पूर्व की ओर अपनी सेना के साथ प्रस्थान किया|

नंद राजा और चंद्रगुप्त मौर्य के बीच युद्ध हुआ जिसमें नंद वंश के राजा घनानंद की मृत्यु हुई और इसी युद्ध के पश्चात चाणक्य ने 321 ईसापूर्व में चंद्रगुप्त को मगध के सिंहासन पर बैठा दिया|

मलय केतु के विद्रोह का दमन-

जब चंद्रगुप्त मौर्य ने मगध राज्य पर विजय प्राप्त कर ली तो उसके पश्चात चंद्रगुप्त ने पर्वतक के साथ संधि कर ली| पर्वतक हिमालय पर्वत के आसपास के कुछ जिलों में शासन कार्य करता था|

जिस समय मगध पर चंद्रगुप्त ने विजय प्राप्त की उसके बाद ही पर्वतक की मृत्यु हो गई और उसका पुत्र मलय केतु राज गद्दी पर बैठा| चंद्रगुप्त ने मलय केतु के विद्रोह काफ़ी दमन बड़ी ही सरलता और सूझबूझ से किया|

दक्षिण भारत पर विजय-

चंद्रगुप्त मौर्य ने लगभग समस्त उत्तर भारत पर विजय प्राप्त कर ली और उसके पश्चात उसने दक्षिण भारत के कई इलाकों पर अपनी विजय पताका फहराने का साहस किया|

महाक्षत्रप रुद्रदामन के जूनागढ़ के अभिलेखों से यह पता चलता है कि सौराष्ट्र पर भी चंद्रगुप्त मौर्य का आधिपत्य हुआ करता था|

इस प्रकार हम उपरोक्त जानकारियों के आधार पर यह कह सकते हैं कि चन्द्रगुप्त मौर्य एक चक्रवर्ती सम्राट था जिसने शासन संबंधी सुधारों को नए आयाम प्रदान किए और हम उसे दुनिया के महानतम सम्राटों की कोटि में रख सकते हैं| उस के शासनकाल में प्रजा और शासक के बीच पिता पुत्र का संबंध था|


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