अशफ़ाक़ुल्लाह ख़ाँ Ashfaqulla Khan Biography in Hindi
अशफाकुल्ला खान उन महानतम शहीदों में से एक है जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए अपना जीवन लगा दिया। अपने अनोखे बलिदान से, अशफाकुल्ला खान भारत के इतिहास में एक अमर क्रांतिकारी बन गए।
अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ का जीवन परिचय
अशफाकुल्ला खान का जन्म 22 अक्टूबर, 1900 को उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर में हुआ था। उनके पिता का नाम शफ़ीकुर रहमान और उनकी माता का नाम मज़हरुनिसा था| उनके पिता पुलिस विभाग में काम करते थे।
अशफाकुल्ला स्कूल के छात्र थे, जब महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन का आह्वान किया था। महात्मा गांधी के इस आंदोलन ने उनके मन पर बहुत गहरा प्रभाव डाला और वह स्वतंत्रता सेनानी बनने की ओर अग्रसर हुए|
काकोरी में हुई ट्रेन की डकैती में उनकी सक्रिय भागीदारी को देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने उन्हें बागी घोषित कर दिया|
चौरी चौरा की घटना के बाद, महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन को वापस लेने से भारत के युवाओं को बहुत निराशा हुई। अशफाकुल्ला खान को भी महात्मा गांधी के इस निर्णय से काफी दुख हुआ, और इसके बाद उन्होंने भारत को जल्द से जल्द ब्रिटिश सरकार से मुक्त कराने का प्रण लिया और अपने कार्य को अंजाम देने के लिए वह अग्रसर हुए|
उस समय भारत को आजादी दिलाने के लिए कई क्रांतिकारी गुट भारत के कई हिस्सों में सक्रिय था| अशफाक उल्ला खान ऐसे ही एक गुट के साथ जुड़ गए|
रामप्रसाद बिस्मिल, जो शाहजहाँपुर के रहने वाले थे, इन क्रांतिकारियों के समूह के नेता थे। अशफाकुल्ला खान ने रामप्रसाद बिस्मिल के साथ दोस्ती की।
रामप्रसाद एक आर्यसमाजी थे, जबकि अशफाकुल्ला खान एक मुस्लिम थे। भले ही इन दोनों लोगों का धर्म एक नहीं था, परंतु उन दोनों ही लोगों का उद्देश्य एक ही था और वह था भारत को स्वतंत्र कराना|
आगे चलकर राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खान बहुत गहरे मित्र हो गए| उनकी दोस्ती इतनी प्रगाढ़ थी कि वे एक साथ कहीं पर आया जाया करते थे, एक साथ ही खाना खाया करते थे और एक साथ ही भारत की स्वतंत्रता के लिए योजनाएं भी बनाया करते थे|
एक बार अशफाक को तेज बुखार हुआ और वह राम, मेरे प्यारे राम जैसे शब्द बड़बड़ा रहे थे| अशफाक उल्ला खान के माता पिता इन शब्दों के उच्चारण से हैरान हो गए और उन्हें लगा अशफाक उल्ला खां को कुछ बुरी आत्माओं ने घेर रखा है, क्योंकि उन्हें लगा कि अशफाक उल्ला खान हिंदुओं के भगवान राम का नाम ले रहे हैं|
अशफाक उल्ला खान के माता-पिता ने अपने पड़ोसी को बुलाया और तब पड़ोसी ने उन्हें समझाया कि अशफ़ाकउल्ला अपने दोस्त राम प्रसाद बिस्मिल को याद कर रहे हैं, जिन्हें वह राम के नाम से संबोधित करते हैं|
इस बात को सुनते ही बिस्मिल को बुलाया गया और अशफाक उल्ला खान ने उन्हें देखते ही गले लगा लिया|
आगे चल कर क्रांतिकारियों द्वारा 8 अगस्त, 1925 को शाहजहाँपुर में एक बैठक आयोजित की गई। उन्होंने हथियार खरीदने के लिए ट्रेन में रखे सरकारी खजाने को लूटने का फैसला किया।
इसलिए 9 अगस्त, 1925 को राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकुल्ला, चंद्रशेखर आज़ाद और अन्य कई क्रांतिकारियों ने मिलकर काकोरी में सरकारी खजाने को लूट लिया| इस घटना को इतिहास में काकोरी ट्रेन डकैती के नाम से जाना जाता है|
राम प्रसाद बिस्मिल को पुलिस ने 26 सितंबर, 1925 को गिरफ्तार कर लिया, परंतु अशफाकुल्ला अभी भी फरार थे। वह बिहार से बनारस गए और एक इंजीनियरिंग कंपनी में काम करने लगे।
उन्होंने वहां लगभग 10 महीने तक काम किया। अब वह इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए विदेश जाना चाहते थे, क्योंकि उन्हें विश्वास था कि ऐसा करके वह भारत के स्वतंत्रता संग्राम में मदद करेंगे|
वह इसी उद्देश्य से दिल्ली गए। उन्होंने अपने एक पठान दोस्त पर भरोसा किया, जिसने उनकी मदद करने का नाटक किया लेकिन बदले में अशफाक उल्ला खान को पुलिस के हवाले कर दिया|
अशफाकउल्ला को फैजाबाद जेल में बंद कर दिया गया| उनके भाई रियासतुल्ला खान उनके वकील थे, जिन्होंने उनका और उनके साथियों का केस लड़ा था|
राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकुल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी और रोशन को मौत की सजा सुनाई गई जबकि अन्य दूसरों को उम्र कैद की सजा दी गई थी| और इसी के साथ-साथ काकोरी ट्रेन डकैती का केस बंद हुआ था|
अशफाकुल्ला खान को 19 दिसंबर 1927 को फांसी दी गई थी।
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