अलाउद्दीन खिलजी का इतिहास | Alauddin Khilji History In Hindi

Alauddin Khilji History in Hindi-

अलाउद्दीन खिलजी का इतिहास-
अलाउद्दीन खिलजी जलालुद्दीन का भतीजा एवं दामाद था, अलाउद्दीन एक उत्साहित सैनिक था और सामान्य व्यवहार-बुद्धि तथा यथार्थवादिता उसमें प्रचुर मात्रा में विद्यमान थे, वह बहुत ही महत्वकांक्षी व्यक्ति था और प्रारंभ में ही उसने अपनी भावी महत्ता के लक्षण प्रकट कर दिए थे|

अलाउद्दीन खिलजी को सन 1920 ईस्वी में अमीर-ए-तुजक का पद मिला था| यह पद उसे अपने चाचा के सिंहासनारोहण के अवसर पर मिला था| इस पद को ग्रहण करने के कुछ समय उपरांत ही उसको इलाहाबाद के निकट कड़ा मानिकपुर का सूबेदार बना दिया गया था| कड़ा मानिकपुर का क्षेत्र वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के अंतर्गत है|

अलाउद्दीन के सैनिक भी बहुत महत्वकांक्षी थे और उनका मानना था कि अलाउद्दीन को सिंहासन पर विराजमान होने के लिए प्रेरित करना चाहिए| इसके पीछे उनका यह मत था कि अलाउद्दीन सिंहासन पर विराजमान हो जाएगा तो वह सैनिकों को अनेक उपहार और पुरस्कार प्रदान करेगा| इसके अतिरिक्त अन्य कई लोग जो सुल्तान जलालुद्दीन से अप्रसन्न थे उन्होंने अलाउद्दीन खिलजी को सिंहासन पर बैठने के लिए उकसाया|

History of Alauddin Khilji Hindi-

Table

अलाउद्दीन बहुत ही चतुर और अनुभवी व्यक्ति था वह अपना हित अहित भली-भांति समझता था, अतः वह किसी भी प्रकार की जल्दबाजी नहीं करना चाहता था| वह राजा सिंहासन पर विराजमान होना चाहता था और वह इसके लिए उपयुक्त अवसर की तलाश में था|

वह गद्दी पर बैठने से पूर्व अपने अनुयायियों की संख्या को बढ़ाना चाहता था, ताकि उसे शासन कार्य में कोई कठिनाई न हो| अलाउद्दीन ने मालवा पर आक्रमण करने के लिए सुल्तान जलालुद्दीन की आज्ञा ली और 1292 ईस्वी में उसने मालवा के क्षेत्र में प्रवेश किया|

मालवा के कुछ क्षेत्रों में उस ने जीत हासिल की और वहां से वह बहुत सारा धन लूट कर लौटा| लूटा हुआ धन जब सुल्तान के पास पहुंचा तो वह बहुत ही प्रसन्न हुआ और उसने अलाउद्दीन कड़ा के साथ-साथ अवध का भी सूबेदार बना दिए|

मालवा की विजय से अलाउद्दीन और भी अधिक प्रभावशाली हो गया और अब उसके मन में दक्षिण भारत पर विजय प्राप्त करने की लालसा जागृत हुई| उसने अपनी सैनिक शक्ति को बढ़ाया और दक्षिण पर विजय प्राप्त करने के लिए पलायन किया|

उसने रास्ते में पड़ने वाले राज्य देवगिरि के राजा रामचंद्र देव को धोखे से परास्त किया और संधि के फलस्वरूप राजा से बहुत सारा धन प्राप्त किया| दक्षिण भारत पर किया गया यह पहला तुर्की आक्रमण था| देवगिरी की अद्भुत विजय ने अलाउद्दीन को दिल्ली के सिंहासन पर विराजमान होने के लिए लालायित कर दिया|

उसकी पत्नी जो कि सुल्तान की पुत्री थी, उससे अलाउद्दीन की नहीं पटती थी, क्योंकि उसकी पत्नी अपनी माता के साथ मिलकर दरबार के कार्यों में विघ्न डालती थी| इन कारणों ने आग में घी का काम किया अंततः 19 जुलाई 1296 ईस्वी को अलाउद्दीन ने अपने चाचा का धोखे से कत्ल करवा दिया और स्वयं मुकुट धारण कर लिया|

अलाउद्दीन ने जलालुद्दीन की हत्या करके मुकुट धारण किया था, परंतु दिल्ली का राज सिंहासन अभी भी उससे दूर था और उस राज सिंहासन पर जलालुद्दीन के पुत्र इब्राहिम का अधिकार था| कुछ समय पश्चात जलालुद्दीन के परिवार में फूट पड़ गई और इस मौके का लाभ उठाकर अलाउद्दीन दिल्ली की ओर बढ़ा|

उसके आने की खबर सुनकर इब्राहिम गद्दी छोड़ कर भाग गया और अलाउद्दीन बिना युद्ध के ही विजयी हुआ| अंततः अलाउद्दीन 3 अक्टूबर 1296 ईसवी को बलबन के लाल किले में उसका नियमानुसार राज्यभिषेक हुआ|

दिल्ली की गद्दी पर विराजमान होने के पश्चात अलाउद्दीन ने कई कत्लेआम करवाया, क्योंकि उसने अपने चाचा की हत्या करके राजगद्दी प्राप्त की थी, अतः कई व्यक्ति अलाउद्दीन को पसंद नहीं करते थे| उसके राज्य में ही रहने वाले बहुत सारे लोग, अमीर तथा जलालुद्दीन के समर्थक उससे घृणा करते थे|

अलाउद्दीन को गद्दी पर बैठने के उपरांत कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा और उसने हर कठिनाई की बड़ी दृढ़ता से सामना किया|

सुल्तान बनने के उपरांत उसने जनता को प्रसन्न करने के भरसक प्रयास किए ताकि उसके द्वारा किए गए कृत्य को जनता भूल जाए| अलाउद्दीन के दरबारी उससे बहुत ज्यादा आतंकित रहते थे| केवल अलाउद्दीन का पुराना मित्र अला-उल-मुल्क एक ऐसा व्यक्ति था, जो सुल्तान को सलाह देने का साहस कर सकता था|

अलाउद्दीन खिलजी और हिंदू-

अलाउद्दीन के व्यवहार हिंदुओं के प्रति बहुत अच्छे नहीं थे| अलाउद्दीन अपने को सिर्फ मुसलमानों का शासक मानता था, और उन्ही की भलाई के लिए अपने आप को जिम्मेदार मानता था| अन्य धर्मों के प्रति वह अपना दायित्व नहीं समझता था| राज्य में हिंदुओं की क्या स्थित होनी चाहिए यह तय करने के लिए अलाउद्दीन ने काजी मुगीसुद्दीन की सलाह ली थी|

काजी की सलाह के अनुसार- शरा में हिंदुओं को कर (tax) देने वाला कहा गया है, जब कोई अफसर हिंदुओं से सोना-चांदी इत्यादि वस्तुएं मांगे तो उन्हें बिना हिचकिचाहट के वस्तुएं अफसर को सौंप देनी चाहिए|

काजी के अनुसार- यदि कोई अफसर हिंदुओं के ऊपर धूल फेंके तो हिंदुओं को अपने मुंह खोल देना चाहिए| इस प्रकार के कार्यों से इस्लाम धर्म की यश और कीर्ति बढ़ेगी|

अलाउद्दीन ने काजी की सलाह का स्वागत किया और कठोरता से सलाहों का पालन किया| हिंदुओं का दमन करने तथा अपने अत्याचार पूर्ण शासन के विरुद्ध उनके विद्रोह को रोकने के लिए अलाउद्दीन ने अपने राज्य में कई तरह के नियम लगवाए|

इन नियमों के अनुसार राज्य में कर में वृद्धि की गई, भूमि के अतिरिक्त हिंदुओं के चारागाहों पशु, भेड़ और बकरियों पर भी कर लगा दिया इसको वसूलने के लिए कठोर इंतजाम किया गया|

इन करो के परिणाम स्वरूप हिंदुओं की भारी हानि हुई और वह दरिद्र होते गए| यदि वे इन करों से बचने का प्रयत्न करते थे तो उन्हें कठोर से कठोर दंड दिया जाता था|

अलाउद्दीन की स्थाई सेना-

अलाउद्दीन ने जनता पर कई तरह के कर लगाए, और उन करों को वसूल करने तथा जनता पर नियंत्रण करने के लिए उसको एक बड़ी सेना की जरूरत थी| इसके अतिरिक्त अलाउद्दीन का संघर्ष समय-समय पर मंगोलों से हुआ करता था|

इन सभी कारणों से उसने अपनी सेना को निरंतर बढ़ाने का प्रयास किया| उसने अच्छे से अच्छे सैनिकों का चुनाव किया और अपनी सेना में कई तरह के सैन्य सुधार किए| अलाउद्दीन दिल्ली का प्रथम सुल्तान था जिसने स्थाई सेना की नींव डाली|

सैनिकों को वेतन प्राप्त होता था, और उनको वेतन उनके पद तथा उनकी आवश्यकता के अनुसार दिया जाता था| एक सैनिक का वेतन लगभग 230 से 235 टका प्रतिवर्ष होता था, अगर कोई सैनिक अपने पास घोड़ा रखता था तो उसे लगभग 85 टका का अतिरिक्त वेतन प्राप्त होता है| इतिहासकारों के अनुसार अलाउद्दीन की सेना में लगभग 475000 घुड़सवार सैनिक थे|

अलाउद्दीन खिलजी की बाजार व्यवस्था-

अलाउद्दीन ने लोगों पर नियंत्रण रखने और बाहरी आक्रमण से बचाव करने के लिए बहुत ही विशाल सेना तैयार कर ली थी| उसकी सेना कितनी विशाल रही होगी इस बात का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि उसकी सेना में लगभग 475000 घुड़सवार सैनिक हुआ करते थे|

उसने मंगोलों के आक्रमण को रोकने और संपूर्ण भारत को विजय करने के लिए इतनी बड़ी सेना बनाई थी और इस कारणवश वह इस सेना का पूरी तरह से ख्याल रखता था| इतनी बड़ी सेना को नियंत्रण में रखने के लिए बहुत सारे धन की आवश्यकता होती थी|

उसने कपड़े तथा अन्य जरूरत के सामानों की कीमतों को बहुत कम करवा दिया, जिससे सैनिक आसानी से उन वस्तुओं को खरीद सके| उसने अनाज की कीमतों को भी काफी कम करवा दिया| प्रत्येक व्यापारी को एक निश्चित दाम पर ही वस्तुओं को बेचने का अधिकार था|

सभी व्यापारियों को अलाउद्दीन के एक पदाधिकारी के पास अपना नाम लिखवाना पड़ता था| उस पदाधिकारी को शान-ए-मंडी (शहाने-मंडी) के नाम से जाना जाता था| अगर किसी व्यापारी के पास पर्याप्त धन नहीं होता था तो उसे अग्रिम धन प्रदान किया जाता था|

इसके अतिरिक्त अगर कोई व्यापारी सामान बेचने में धोखाधड़ी करता था, तो उसे सख्त से सख्त सजा दी जाती थी| यदि कोई व्यापारी सामान कम तोल के देता था तो पकड़े जाने पर उसके शरीर से उतना ही मांस काट लिया जाता था|

अलाउद्दीन खिलजी की बाजार व्यवस्था में चोरबाजारी और सट्टेबाजों पर पूरी तरह से नियंत्रण किया गया| अलाउद्दीन की बाजार व्यवस्था का प्रभाव उसके शासन के हर क्षेत्र में दिखाई पड़ा और उस के समय में कपड़े, अनाज, दैनिक उपयोग की वस्तुएं, घोड़ों आदि सामानों की कीमतों में काफी कमी आई|

चोरबाजारी से जनता को काफी हद तक मुक्ति मिल गई| इतिहासकारों ने अलाउद्दीन की आर्थिक नीति की सफलता के लिए बहुत प्रशंसा की है, और हम यह कह सकते हैं कि अलाउद्दीन खिलजी ने एक सुदृढ़ बाजार व्यवस्था की स्थापना की थी|

अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु-

अलाउद्दीन के अंतिम दिन बहुत ही संकट तथा निराशा में बीते| उसने अपने संपूर्ण जीवन में बहुत परिश्रम किए पर वह विलासिता के जाल में भी फंस गया था| विलासिता के कारण उसका स्वास्थ्य बिगड़ गया और उसे शैय्या की शरण लेनी पड़ी|

उसके स्वास्थ्य के प्रति उसकी पत्नी या पुत्रों ने कोई भी ध्यान नहीं दिया| उसकी रानी आमोद-प्रमोद में व्यस्त रहती थी तथा अलाउद्दीन का पुत्र खिज्र खां विलासिता में ही डूबा रहता था|

इन कारणों से परेशान होकर अलाउद्दीन ने मलिक काफूर और अलपखान को अपने पास बुलवाया, और उनसे अपने पुत्र एवं पत्नी के बारे में बातचीत की| जब काफूर ने देखा कि सुल्तान का अंतिम समय निकट आ गया है तो उसने सिंहासन पर बैठने के लिए एक षड्यंत्र रचा|

उसने अपने षड्यंत्र से सुल्तान अलाउद्दीन को यह विश्वास दिलाया कि खिज्र खां, अलपखां और रानी तीनों मिलकर आप का कत्ल करवाना चाहते हैं| इस षड्यंत्र के फलस्वरुप अलाउद्दीन ने खिज्र खां को ग्वालियर के किले में तथा रानी को पुरानी दिल्ली के किले में बंदी बनाकर रखवा दिया|

अलपखां का कत्ल करवा दिया गया, इसके परिणाम स्वरुप अलपखां के सैनिकों ने गुजरात में विद्रोह कर दिया| इस विद्रोह के अलावा अभी कहीं और जगह पर विद्रोह हुए, जिससे अलाउद्दीन का अधिकार क्षेत्र कम होता गया और इन सब कारणों से उसकी दशा और भी अधिक खराब हो गई| अंततः 1 जनवरी 1316 ईसवी में अलाउद्दीन की मृत्यु हो गई|


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