सुमित्रानंदन पंत जीवनी Sumitranandan Pant Biography in Hindi

हिन्दी साहित्य में सुमित्रानंदन पंत (Sumitranandan Pant) छायावादी युग के चार स्तंभों में से एक हैं। आधुनिक हिन्दी साहित्य में सुमित्रानंदन पंत नये युग के प्रवर्तक के रूप में उदित हुए। आपको सुकुमार भावनाओं का कवि भी कहा जाता है|

सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय | Sumitra Nandan Pant Biography in Hindi

प्रकृति के सुरम्य गोद में कवि सुमित्रानंदन पंत का जन्म 20 मई सन 1900 को अल्मोड़ा के निकट कौसानी नामक एक छोटे से ग्राम में हुआ था| इनके पिता का नाम पंडित गंगा दत्त पंत था|

इनके जन्म के 6 घंटे के पश्चात ही आपकी माता का देहावसान हो गया, जिस कारण से इनका लालन-पालन आपके पिता गंगा दत्त पंत एवं आपकी दादी ने किया| आपके बचपन का नाम गुसाई दत्त तथा आगे चलकर आपने स्वयं अपना नाम बदलकर सुमित्रानंदन पंत रखा|

सुमित्रानंदन पंत की शिक्षा-

पंत जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अल्मोड़ा में ही प्राप्ति की| प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के पश्चात आपने वाराणसी ( काशी) के जय नारायण स्कूल से स्कूल लिविंग की परीक्षा को उत्तीर्ण किया और उसके उपरांत आप सन 1919 ईस्वी में इलाहाबाद आए|

इलाहाबाद में आकर आपने इलाहाबाद के प्रसिद्ध म्योर सेंट्रल कॉलेज मैं दाखिला लिया, और अपनी शिक्षा को आगे बढ़ाया| महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से प्रभावित होकर एवं उनके आह्वान पर सन 1921 ईस्वी में आपने बीए की परीक्षा में भाग नहीं लिया और कॉलेज का त्याग कर दिया| परंतु अध्ययन में आपकी रुचि निरंतर बनी रही और आपने स्वाध्याय से ही संस्कृत, बांग्ला, हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा का अच्छा ज्ञान प्राप्त किया|

सुमित्रा नंदन पंत की जीवनी-

नाम सुमित्रानंदन पंत
जन्मतिथि 20 मई सन 1900
जन्म स्थान कौसानी ग्राम (अल्मोड़ा)
मृत्यु 28 December, 1977
मृत्यु स्थान इलाहाबाद
पिता का नाम पंडित गंगादत्त पंत
शिक्षा हिंदी, अंग्रेजी, बांग्ला, संस्कृत
साहित्य में पहचान छायावादी काव्य धारा के प्रवर्तक
पत्रिका का प्रकाशन रूपाभा
संस्कृति पीठ की स्थापना लोकायन

इलाहाबाद को प्रकृति की गोद भी कहा जाता है और इसी गोद में पलने के कारण आपने अपनी सुकुमार भावना की प्रकृति को अपनी काव्य रचनाओं में व्यक्त किया| आपने रूपाभा पत्रिका का प्रकाशन किया| यह पत्रिका प्रगतिशील विचारों पर आधारित थी|

इसके अतिरिक्त आपने भारत छोड़ो आंदोलन से प्रेरित होकर सन 1942 ईस्वी में लोकायन नामक संस्कृति पीठ की स्थापना की और तत्पश्चात् भारत भ्रमण हेतु निकल पड़े|


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