राजा राममोहन राय Raja Ram Mohan Roy Biography in Hindi
History and Biography of Raja Ram Mohan Roy in Hindi-
राजा राममोहन राय का नाम धार्मिक एवं सामाजिक सुधार आंदोलनों के नेताओं में अग्रणी है| उन्होंने ब्रह्म समाज की स्थापना की और इस समाज के सिद्धांतों में भारतीय जनमानस की दशा एवं दिशा को एकदम से बदल कर रख दिया|
राजा राममोहन राय उस वैचारिक क्रांति के शिष्टा थे, जिन्होंने आधुनिक भारत को जन्म दिया| राजा राम मोहन राय को नवीन युग का प्रवर्तक तथा भारतीय नवजागरण का पिता एवं भारतीय इतिहास के देवदूत आदि, अनेक नामों से जाना जाता है|
राजा राममोहन राय निसंदेह आधुनिक भारत के निर्माता थे| 19वीं सदी का कोई भी ऐसा आंदोलन नहीं था, जिस पर राजा राममोहन राय ने सहयोग ना दिया हो|
Raja Ram Mohan Roy Biography in Hindi-
राजा राममोहन राय की जीवनी-
राजा राममोहन राय का जन्म 22 मई 1772 को बंगाल के हुगली जिले के राधा नगर ग्राम में हुआ था| उनका जन्म एक कुलीन ब्राम्हण परिवार में हुआ था| उनके पिता का नाम रमाकांत राय एवं माता का नाम तारणी देवी था| इनके पितामह बंगाल के नवाब की सेवा में लगे रहे, जिससे इन्हें राय रमन की पदवी मिली|
राजा राममोहन राय बचपन से ही बड़े मेधावी एवं प्रतिभाशाली छात्र थे| 12 वर्ष की आयु में वे अध्ययन के लिए पटना चले गए| जहां पर उन्होंने बांग्ला, फारसी, अरबी, संस्कृत, अंग्रेजी आदि कई भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया|
भाषाओं के साथ-साथ राजा राममोहन राय ने विश्व के प्रमुख धर्मों के बारे में भी गहन अध्ययन किया| वे वेद और कुरान का समान रूप से उद्धरण करते थे| फारसी में सूफी कवियों की कविताओं ने उन्हें बहुत प्रभावित किया था|
न्होंने बौद्ध धर्म का ज्ञान प्राप्त करने के लिए तिब्बत देश की यात्रा की और बौद्ध धर्म के उपदेशों, आचरण एवं शिक्षाओं का गहन अध्ययन किया|
Raja Ram Mohan Roy ki Jivani-
राजा राममोहन राय की संक्षिप्त जीवनी अग्रलिखित है-
नाम | राजा राममोहन राय |
जन्म: | 22 मई 1772 |
जन्म स्थान | राधा नगर ( बंगाल ) |
पिता का नाम | रमाकांत राय |
माता का नाम | तारणी देवी |
पत्नी का नाम | उमा देवी |
मृत्यु | 27 सितम्बर 1833 |
मृत्यु स्थान | ब्रिस्टल (इंग्लैंड) |
More History and Information of Raja Ram Mohan Roy in Hindi-
राजा राममोहन राय ने बांग्ला, उर्दू, फारसी आज कई भाषाओं में साहित्य की रचना भी की थी| सन 1803 में आपने उन्होंने पिता के देहांत के उपरांत फारसी भाषा में एक पुस्तक लिखी| इस पुस्तक में उन्होंने मूर्ति पूजा का खंडन किया और एकेश्वरवाद की प्रशंसा की| उन्होंने कुछ समय तक ईस्ट इंडिया कंपनी में नौकरी भी की थी|
राजा राममोहन राय का मुख्य उद्देश्य समाज सुधार का था| हिंदू समाज की कोई भी ऐसी कुरीति एवं बुराई ना थी, जिस पर उन्होंने प्रहार न किया हो| राजा राममोहन राय एक कुशल विचारक, विद्वान राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ समाज सुधारक भी थे|
वह प्रारंभ से ही स्वतंत्र विचारों के पोषक थे| इनके सामाजिक एवं धार्मिक विचारों से अप्रसन्न होकर आपके परिवार के लोग, आपकी माता एवं आपकी पत्नी ने भी आप से संबंधित तोड़ दिए| उस समय इनको ‘नास्तिक’ के नाम से पुकारा जाता था|
इन सारी विपत्तियों एवं कठिनाइयों के बावजूद भी उन्होंने अपने विचारों पर भारत के पुनर्जागरण आंदोलन को गति और शक्ति दी थी| उन्होंने बाल विवाह, वधु विवाह, अल्पायु विवाह, विधवा विवाह, सती प्रथा जैसी बुराइयों को दूर करने का प्रयास किया|
इसके साथ ही साथ उन्होंने अस्पृश्यता, नशा आदि को दूर किया| उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय स्त्री शिक्षा तथा अनेक कुरीतियों एवं बुराइयों को दूर करने का भी प्रयास किया|
राजा राममोहन राय के सामाजिक विचार-
वस्तुतः राजा राममोहन राय एक समाज सुधारक थे, और उन्होंने सामाजिक पुनर्निर्माण के साथ साथ शिक्षा के क्षेत्र में बहुत ही सराहनीय कार्य किए थे| उन्हें भारत की सामाजिक क्रांति का अग्रदूत भी कहा जाता है|
उन्होंने यह विश्वास व्यक्त किया कि, धर्म एवं समाज सुधार की अनुपस्थित में केवल राजनीतिक विकास का कोई मूल्य नहीं रहेगा, इसलिए राजनीतिक विकास के साथ-साथ धर्म और समाज सुधार में भी हम सबको योगदान करना चाहिए|
उन्होंने राजनीतिक प्रगति और सामाजिक धार्मिक सुधारों के बीच घनिष्ठ संबंध सुनिश्चित करते हुए अग्रलिखित विचार प्रस्तुत किए-
- उन्होंने मूर्ति पूजा का विरोध किया|
- उन्होंने सती प्रथा का भी विरोध किया|
- वह नारी की स्वतंत्रता एवं नारी की शिक्षा के प्रबल समर्थक थे|
- उन्होंने जाति प्रथा का घोर विरोध किया|
इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि राजा राममोहन राय ने सामाजिक कुरीतियों तथा अन्याय की कटु भर्त्सना और परंपरावाद का खुलकर विरोध किया, किंतु उनका विश्वास था कि सामाजिक बुराइयों का अंत करने का तरीका बुद्धिवाद का प्रचार करना है| इन्हीं विचारों के कारण उनकी तुलना फ्रेंच ज्ञानकोश के सह रचयिता दिदरो से की जाती है|
राजा राममोहन राय की आर्थिक विचार-
राजा राममोहन राय कोई अर्थशास्त्री नहीं थे, और ना ही उन्होंने किसी आर्थिक सिद्धांत की रचना की है| लेकिन देश की तात्कालिक स्थिति के अनुसार उन्होंने समय-समय पर अपने जो भी विचार प्रकट किए हैं, वह उनके आर्थिक विचारों को दर्शाता है|
लार्ड कार्नवालिस द्वारा बंगाल में स्थापित स्थाई भूमि प्रबंध से उत्पन्न बुराइयों ने जो विनाशकारी कार्य किया था, उसे राम मोहन राय भली-भांति जानते थे| उन्होंने ही सबसे पहले भारतीय जमीनदारी प्रथा के विरोध में आवाज उठाई और कहा कि- जमींदार तथा जागीरदार किसानों और मजदूरों के सूचक हैं तथा देश के आर्थिक एवं सामाजिक पतन का एक मुख्य कारण भी हैं|
इसके साथ ही साथ राजा राममोहन राय ने भारत में पूंजी के निर्माण एवं पूंजी के संरक्षण के लिए यह विचार व्यक्त किया कि- देश से प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए की धनराशि के निर्यात को रोका जाना चाहिए| इस निर्यात को रोकने के लिए समृद्ध विदेशी व्यापारियों को जो कि भारत में अपना व्यापार करते हैं उन व्यापार तरीकों को भारत में ही विकसित किया जाना चाहिए, ताकि वह अपना धन बाहर भेजने के स्थान पर भारत की उद्योग व्यवस्था को ही सुदृढ़ बनाएं|
इसके साथ ही साथ उन्होंने कहा कि ब्रिटिश नागरिकों का भारत में उपनिवेश किया जाए और इस उपनिवेश से भारत की साहित्यिक, सामाजिक एवं राजनीतिक प्रगति में सहायता प्राप्त होगी|
राजा राममोहन राय ने स्वतंत्र व्यापार के विचार का भी समर्थन किया था| उन्होंने यह भी कहा था कि- अंग्रेजों द्वारा अपने देश में ले जाए जाने वाले माल से कर को हटा लेना चाहिए, ताकि विदेशी बाजार में भारतीय माल की अच्छी खपत हो सके और भारतीय उद्यमियों को अपने माल का उचित मूल्य प्राप्त हो सके|
राजा राममोहन राय स्त्रियों को उत्तराधिकार का अधिकार देने के पक्ष में थे| उनका यह मानना था कि वंश की संपत्ति में पुत्री का बराबर का अधिकार होना चाहिए, और वंश की संपत्ति में पुत्री के अधिकार का पक्ष लेने वाले वह पहले भारतीय विचारक भी थे| उनके अनुसार पति की संपत्ति में पत्नी को उतना ही अंश मिलना चाहिए जितना कि लड़के को मिलता है|
राजा राममोहन राय के शिक्षा संबंधी विचार-
राजा राममोहन राय का शिक्षा एवं विज्ञान से गहरा लगाव था| उनके शिक्षा संबंधी विचार बहुत ही रचनात्मक थे, और वह आधुनिक पाश्चात्य शिक्षा प्रणाली के प्रबल समर्थक थे|
अंग्रेजी भाषा एवं पश्चिमी शिक्षा को उन्होंने भारत के भविष्य के लिए लाभकारी बताया, और उनका यह मानना था कि- भारत में पाश्चात्य शिक्षा प्रणाली के लागू होने से ही राष्ट्रीय एकता की भावना का प्रसार होगा|
प्राचीन भारतीय दर्शन एवं धर्म में निहित ज्ञान के अमरकोश के प्रति राजा राममोहन राय की श्रद्धा कम नहीं थी, परंतु उन्होंने वेदों एवं उपनिषदों का बंगाली एवं अंग्रेजी भाषा में अनुवाद करने का कठिन कार्य अपने हाथों में लिया| इसके अतिरिक्त उनका यह मानना था कि भारत में प्रगति के पथ पर आगे बढ़ने के लिए अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली का प्रचलन अपरिहार्य है|
अंग्रेजी शिक्षा पर बल देते हुए भी उन्होंने संस्कृत की आवश्यकता का तिरस्कार नहीं किया| उनका विचार था कि देश की वास्तविक उन्नति के लिए विश्व से संबंध स्थापित करके कदम से कदम मिलाकर चलना पड़ेगा, अतः शिक्षा के क्षेत्र में पाश्चात्य प्रणाली को अपनाना बहुत ही लाभदायक एवं हितकारी होगा|
Important Points about Raja Ram Mohan Roy in Hindi
- राम मोहन राय ब्रह्मः समाज के संस्थापक थे। यह समाज उस समय का एक महान सामाजिक-धार्मिक आंदोलन के रूप में बनकर लोगों के सामने आया|
- उन्होंने सती प्रथा के खिलाफ लड़ने की पहल की। उनके प्रयास का फल उन्हें सन 1827 में प्राप्त हुआ जब यह प्रथा कानूनी रूप से समाप्त कर दी गयी|
- Important Point- सती प्रथा का अंत कब हुआ- 1827 में|
- राजा राम मोहन रॉय ने कई सामाजिक मुद्दों जैसे कि बहुपत्नी, सती प्रथा, बाल विवाह आदि के खिलाफ लड़े।
- उन्होंने अपने मित्र डेविड हरे (David Hare) की सहायता से 1817 में हिंदू कॉलेज की स्थापना की| उन्होंने 1822 में एंग्लो-हिंदू स्कूल (Anglo-Hindu School) और 1826 में जनरल असेंब्ली इंस्टीट्यूशन (General Assembly’s Institution) की भी स्थापना की।
- राम मोहन राय एक लेखक भी थे उन्होंने मुख्य रूप से इतिहास, भूगोल और विज्ञान के क्षेत्र में कार्य किया|
- उन्हें “बंगाली गद्य का पिता” के रूप में भी जाना जाता है|
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