कुतुबुद्दीन ऐबक का इतिहास Qutubuddin Aibak History in Hindi

मुहम्मद गोरी ने भारत के कई क्षेत्रों पर अपना अधिकार कर लिया था और भारत में उसके द्वारा जीते गए साम्राज्य का स्वामी उसका सबसे महत्वपूर्ण गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक था| ऐबक का अर्थ होता है- चंद्रमुखी|

कुतुबुद्दीन ऐबक ने एक नए राजवंश की नींव भारत में डाली| यह वंश कालांतर में गुलाम वंश के नाम से प्रसिद्ध हुआ| कुतुबुद्दीन ऐबक को कुरान खान के नाम से भी जाना जाता था|

कुतुबुद्दीन ऐबक भारत में तुर्की साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक था, उसके पिता तुर्किस्तान के निवासी थे और वह तुर्क थे| कुतुबुद्दीन का बचपन बड़ी ही दयनीय स्थिति में व्यतीत हुआ|

बचपन में ही लोग उसे दास (गुलाम) बनाकर निशापुर ले गए थे| निशापुर के काजी फ़ख़रूद्दीन अब्दुल अज़ीज़ कूफी ने कुतुबुद्दीन को खरीद लिया, बाद में काजी की मृत्यु के पश्चात उसके पुत्रों ने उसे फिर बेंच दिया और अंत में वह मुहम्मद गौरी का गुलाम बन गया|

कुतुबुद्दीन ने अपनी गुलामी के समय में लिखने पढ़ने का थोड़ा ज्ञान प्राप्त कर लिया और इसके अतिरिक्त उसने घुड़सवारी तथा सैनिक शिक्षा भी प्राप्त कर ली थी| गजनी में उसने अपने शौर्य,वीरता और साहस से नए स्वामी का ध्यान आकर्षित किया|

उसकी कर्तव्यनिष्ठा से प्रभावित होकर मोहम्मद गोरी ने उसे अपनी सेना की एक टुकड़ी का नायक बना दिया| उसके कार्यों से प्रसन्न होकर उसे घोड़ों के अस्तबल का अध्यक्ष (अमीर आखुर) बना दिया गया| तराइन के द्वितीय युद्ध में पृथ्वीराज चौहान को पराजित करने के बाद मोहम्मद गोरी ने कुतुबुद्दीन को अपने भारतीय साम्राज्य का शासक बना दिया|

मोहम्मद गोरी ने कुतुबुद्दीन को अपनी अनुपस्थिति में राज चलाने का संपूर्ण अधिकार प्रदान किया था| Qutubuddin Aibak ने दिल्ली के निकट इंद्रप्रस्थ को अपनी राजधानी बनाया और वहीं से सत्ता का संचालन करने लगा|

Qutubuddin Aibak Short History in Hindi

नाम कुतुबुद्दीन ऐबक
जन्म स्थान तुर्किस्तान
राज्याभिषेक जून, 1206 ई., लाहौर
शासन काल 1206 ई. से 1210 ई. तक
उपाधि लाख बख्श
मृत्यु तिथि 1210 ई.
मृत्यु स्थान लाहौर

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मोहम्मद गौरी की अनुपस्थिति में उसने 1192 में अजमेर और मेरठ के विद्रोह का दमन किया| इसके बाद उसने दिल्ली पर अधिकार कर लिया| आगे चलकर दिल्ली तुर्की साम्राज्य की राजधानी के रूप में विकसित हुई|

जयचंद और मोहम्मद गौरी के मध्य हुए युद्ध में कुतुबुद्दीन ऐबक ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी| हाँसी के किले को जाट सरदारों ने घेर कर तुर्क किलेदार मलिक नसीरुद्दीन के लिए संकट उत्पन्न कर दिया था, पर ऐबक ने बड़ी वीरता और चतुराई से जाटों को पराजित कर, हाँसी के दुर्ग पर पुनः अधिकार कर लिया।

1195 ईसवी में कुतुबुद्दीन ने कोइल (अलीगढ़) पर अधिकार कर लिया था और कुछ समय बाद उसने रणथंभौर के प्रसिद्ध किले को भी जीत लिया था| कुतुबुद्दीन के सहायक सेनानायक का नाम बख्तियार खिलजी था, बख्तियार ने बिहार और बंगाल के कुछ भागों पर अपना अधिकार कर लिया था|

1202-03 में ऐबक ने चन्देल राजा परमर्दी देव को पराजित कर महोबा, कालिंजर और खजुराहो पर अधिकार कर लिया जिससे उसकी स्थिति और अभी सुदृढ़ हो गयी|

कुतुबुद्दीन ऐबक का सिंहासनारोहण-

इतिहासकारों के मतानुसार ऐबक मुहम्मद गोरी के सबसे विश्वास पात्र व्यक्तियों में से एक था और गोरी की भी यह इच्छा थी कि कुतुबुद्दीन को भारत में उसका उत्तराधिकारी बनाया जाए| गोरी को शाही ख़ानदान की बजाय तुर्क दासों पर अधिक विश्वास था।

जब 1206 में गोरी की मृत्यु हो गई तो लाहौर के नागरिकों ने कुतुबुद्दीन को शासन सत्ता संभालने के लिए आमंत्रित किया| वह दिल्ली से लाहौर पहुंचा और राज्य की बागडोर अपने हाथों में ले ली|

कुतुबुद्दीन ऐबक का सिंहासनारोहण मोहम्मद गोरी की मृत्यु के 3 महीने के बाद 24 जून 1206 ईसवी में हुआ था| राज्यारोहण के समय ऐबक ने सुल्तान की उपाधि ना धारण करके “मलिक” और “सिपहसालार” की उपाधि धारण की|

कुतुबुद्दीन ऐबक ने अपने नाम के सिक्कों को जारी नहीं किया, और इसके अतिरिक्त उसने खुतबा भी नहीं पढ़वाया|

कुतुबुद्दीन ऐबक का शासनकाल-

कुतुबुद्दीन का संपूर्ण राज्यकाल विदेशी झगड़ों में ही व्यतीत हुआ| उसने 4 साल (1206 – 1210) तक शासन कार्य किया और उसे अपने शासनकाल में कोई भी विजय प्राप्त नहीं हुई थी| राजधानी तथा प्रांतीय नगरों में शासन चलाने के लिए उसने मुसलमान पदाधिकारियों को नियुक्त किया|

ऐबक का शासन प्रबंध पूर्ण रूप से सेना पर निर्भर था| उसकी न्याय व्यवस्था भी अनुचित प्रतीत होती है और हम यह कह सकते हैं कि उसने सुदृढ़ न्याय व्यवस्था की नींव नहीं डाली थी| कुतुबुद्दीन एक महान सेनानायक था| वह एक प्रतिभाशाली सैनिक था जो की गुलामी से निकल कर सिंहासन पर आसीन हुआ था|

कुतुबुद्दीन ने मंदिरों को तोड़कर जो मस्जिदों का निर्माण करवाया था- पहली मस्जिद दिल्ली में स्थित है, जिसका नाम कुव्वत-उल-इस्लाम है तथा दूसरी मस्जिद अजमेर में स्थित है, जिसे ढाई दिन का झोपड़ा कहते हैं|

सूफी संत कुतबुद्दीन बख्तियार काकी की याद में ऐबक ने दिल्ली में स्थित कुतब मीनार का निर्माण करवाया था, जिसके अधूरे निर्माणकार्य को बाद में गुलाम वंश के शासक इल्तुमिश ने पूरा किया था।

कुतुबुद्दीन को लाख बख्श की उपाधि प्रदान की गई थी जिसका अर्थ “लाखों का दान करने वाला” होता है| इसके अतिरिक्त कुतुबुद्दीन ऐबक इतिहास में हत्याओं के लिए भी बदनाम है और उसने लाखों लोगों की हत्या करवाई थी|

कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु-

ऐबक के शासन के अंतिम काल के दौरान तुर्कों ने बंगाल के क्षेत्र को रौंद डाला और इसके साथ ही साथ राजपूत भी कुतुबुद्दीन ऐबक के विरुद्ध विद्रोह करते थे| ऐबक ने इन सारी विपत्तियों का डटकर मुकाबला किया|

परंतु अंत में बख्तियार खिलजी की मृत्यु के उपरांत अली मर्दान ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी, और साथ ही साथ उसने यह घोषणा की कि वह अब कुतुबुद्दीन के स्वामित्व को नहीं मानेगा, जिससे कुतुबुद्दीन के शासन क्षेत्र में काफी प्रभाव पड़ा| अंततः कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु 1210 ईस्वी में पोलो खेलते समय घोड़े से गिरकर एक दुर्घटना में हो गई|


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