पृथ्वीराज चौहान Prithviraj Chauhan History Biography in Hindi

Prithviraj Chauhan History in Hindi

पृथ्वी राज III (तृतीय) को पृथ्वीराज चौहान के नाम से जाना जाता है| पृथ्वीराज चौहान हिंदू चौहान वंश के राजा थे| उन्होंने 12 वीं शताब्दी में उत्तर भारत में अजमेर और दिल्ली के राज्यों पर शासन कार्य किया। अपने बचपन में उन्होंने अपने हाथों से एक शेर को मार दिया।

उन्होंने 13 वर्ष की आयु में गुजरात के राजा भीमदेव को पराजित किया| उनकी बहादुरी के लिए उनके नाना अंगम ने उन्हें दिल्ली का राजा घोषित कर दिया। वह दिल्ली के सिंहासन पर बैठने वाले अंतिम स्वतंत्र हिंदू राजा थे|

वह 1169 में 20 वर्ष की उम्र में सिंहासन पर विराजमान हुए और अजमेर और दिल्ली के राज्यों पर शासन किया| उन्होंने राजस्थान और हरियाणा के क्षेत्रों में बहुत अधिक नियंत्रण किया और मुस्लिम आक्रमणों के खिलाफ राजपूतों को एकजुट किया।

पृथ्वीराज चौहान सोमेश्वर चौहान के पुत्र थे। उन्होंने एक मजबूत राजपूत साम्राज्य का निर्माण किया और उनका साम्राज्य मुख्य रूप से भारत के उत्तर-पश्चिम में विस्तारित हुआ। उनके साम्राज्य में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के क्षेत्र शामिल थे।

उन्होंने कई पड़ोसी राज्यों पर विजय प्राप्त की और उत्तर भारत में चौहान राज्य को हिंदू प्रमुख राज्य बनाया। उन्होंने बुंदेलखंड के चंदेला राजपूतों के खिलाफ अभियान चलाया।

कन्नौज के गहड़वाल राजा जय चन्द्र राठोड की बेटी संयुक्ता (संयोगिता) के साथ उनका प्रेम इतिहास में काफी उल्लेखनीय है| उनके प्रेम प्रसंग के बारे में उनके दोस्त चंदरबरदाई ने अपने महाकाव्य पृथ्वीराज रासो में कविता के रूप में लिखा है|

Prithviraj Chauhan Biography in Hindi

जन्म 1149
जन्म स्थान गुजरात गुजरात
मृत्यु 1192
मृत्यु स्थान
पिता का नाम सोमेश्वर चौहान
माता का नाम कर्पूरदेवी

 

पृथ्वीराज चौहान को शब्दभेदी बाण चलाने में महारथ हासिल थी| पृथ्वीराज चौहान ने अपनी दोनों आंखें खो देने के बावजूद भी अपने शब्द भेदी बाणों से भरी सभा में अपने दुश्मन मोहम्मद गौरी को मृत्यु का रास्ता दिखा दिया था।

पृथ्वीराज की समस्याएं: पृथ्वीराज ने 1169 में सिंहासन ग्रहण किया और शुरुआत से ही वह गुजरात के चालुक्य राजा के साथ चली आ रही वंशानुगत शत्रुता से उन्हें सामना करना पड़ा| इसके अतिरिक्त उनका सामना पंजाब के तुर्की आक्रमणकारियों से भी हुआ|

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पृथ्वीराज चौहान के साथ मुहम्मद गोरी के मुठभेड़-

History of Prithviraj Chauhan and Mohammad Gori in Hindi Language-
तराइन की पहली लड़ाई: 

तराइन की पहली लड़ाई सन 1191 में हुई थी| उस समय पृथ्वीराज चौहान दिल्ली और अजमेर के शासक थे| जब मोहम्मद गोरी ने पंजाब के कई हिस्सों पर विजय प्राप्त कर ली, तब उसने अपनी सेना को दिल्ली को और बढ़ाया|

जब मोहम्मद गोरी दिल्ली की और बढ़ रहा था, तब पृथ्वीराज ने कुछ राजपूत राज्यों को एकजुट करने के लिए प्रयास किये और उन्हें एकत्रित किया| हालांकि कनौज के शासक जयचंद ने अपनी निजी शत्रुता के कारण पृथ्वीराज के नेतृत्व में स्वयं और कुछ अन्य राजपूत राज्यों को पृथ्वी राज के साथ शामिल नहीं होने दिया|

तराइन के क्षेत्र में मोहम्मद गोरी और पृथ्वीराज की सेनाएं आमने सामने हुई और दोनों के बीच एक भयंकर लड़ाई हुई। इस युद्ध में गोरी घायल हो गया और युद्ध हार गया। गोरी को एक खिलजी सिपाही द्वारा युद्ध मैदान से दूर ले जाया गया था।

उसकी सेना भाग गई और गोरी पकड़ा गया| राजपूत धर्म का पालन करते हुए पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गोरी को जीवनदान दिया और यह भारतीय इतिहास में की गयी बहुत बड़ी गलती थी|

तराइन की दूसरी लड़ाई:

तराइन की दूसरी लड़ाई सन 1192 में हुई थी| तराइन के पहले युद्ध की हार के बाद मुहम्मद गोरी ने भारत पर अपने अधिकार को स्थापित करने के लिए प्रतिबद्ध किया| वह अपनी हार पर निराश था| वह अपने अपमान का बदला लेना चाहता था|

उसने अपनी सेना को पुनर्गठित और मजबूत किया| उसने अपनी सेना में बड़े घुड़सवारों को शामिल किया और पुनः 1192 में ताराइन के मैदान में उतरा|

पृथ्वीराज ने एक बार फिर उत्तर भारतीय राजाओं का एक संघ बनाया। इस बार भी कनौज के जयचंद ने न केवल स्वयं युद्ध से अलग रखा, बल्कि पृथ्वीराज को खत्म करने के लिए मुहम्मद गोरी की सहायता भी की।

राजपूत बलों की संख्यात्मक ताकत गोरी की सेना की तुलना में कहीं ज्यादा थी और उनका बेहतर आयोजन भी किया गया था। परन्तु तुर्की घुड़सवार सेना ने इस लड़ाई में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, और बड़ी संख्या में भारतीय सैनिकों ने अपना जीवन गंवा दिया| इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान को हार का सामना करना पड़ा और उन्हें बंदी बना लिया गया|

Prithviraj Chauhan aur Sanyogita story in Hindi

पृथ्वीराज चौहान भारतीय इतिहास के एक वीर योद्धा थे, और एक योद्धा होने के साथ साथ वह एक प्रेमी भी थे। संयोगिता के साथ उनका प्रेम प्रसंग इतिहास में काफी उल्लेखनीय है|

संयोगिता महाराज जय चन्द्र की पुत्री थी| पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता में इतना गहरा प्रेम था कि राजकुमारी संयोगिता को पाने के लिए पृथ्वीराज चौहान ने स्वयंवर के बीच से उनका अपरहण कर लिया था|

जब पृथ्वीराज चौहाण अपने नाना और दिल्ली के सम्राट महाराजा अनंगपाल की मृत्यु के पश्चात् दिल्ली की राज गद्दी पर आसीन हुए तब उनको कन्नौज के महाराज जयचंद की पुत्री संयोगिता भा गई।

महाराज जयचंद्र कन्नौज के राजा थे, और एक दिन कन्नौज में एक चित्रकार पन्नाराय आया| पन्नाराय के पास दुनिया के महारथियों के चित्र थे, और उन्हीं चित्रों में से एक चित्र पृथ्वीराज चौहान का भी था|

जब कन्नौज की जनता ने पृथ्वीराज के चित्र को देखा तो वे देखते ही रह गए, और सभी युवतियां उनकी सुन्दरता का बखान करते नहीं थक रहीं थीं। जब पृथ्वीराज की सुंदरता का बखान संयोगिता के पास पहुंचा तब वे उस चित्र को देखने के लिए लालायित हो उठीं|

राजकुमारी संयोगिता अपनी सहेलियों के साथ उस चित्रकार के पास पहुंची, और पृत्वीराज के चित्र को दिखाने को कहा। उस चित्र को देखते ही राजकुमारी राजा पर मुग्ध हो गयी| परन्तु दोनों का मिलन इतना आसान नहीं था, क्योंकि महाराज जयचंद और पृथ्वीराज चौहान में गहरी शत्रुता थी।

इधर वह चित्रकार दिल्ली पहुंचकर सम्राट पृथ्वीराज से भेट की और राजकुमारी संयोगिता का एक चित्र बनाकर उन्हें दिखाया| उस चित्र को देखकर महाराज के मन में भी संयोगिता के लिए प्रेम उमड़ पड़ा।

कुछ समय पश्चात जयचंद्र ने राजकुमारी संयोगिता के लिए एक स्वयंवर का आयोजन किया। इस स्वयंवर में विभिन्न राज्यों के राजकुमारों एवं महाराजाओं को आमंत्रित किया गया, लेकिन जयचंद्र ने ईर्ष्या वश पृथ्वीराज को स्वंयवर के लिए आमंत्रण नहीं भेजा।

राजकुमारी के पिता ने पृथ्वीराज चौहाण का अपमान करने के उद्देश्य से स्वयंवर कक्ष में उनकी एक मूर्ति को द्वारपाल की जगह खड़ा कर दिया। जब राजकुमारी संयोगिता वर चुनने के लिए सभा में आईं तो उन्हें पृथ्वीराज कहीं नजर नहीं आए। और उसी समय उनकी नजर द्वारपाल की जगह रखी पृथ्वीराज की मूर्ति पर पड़ी|

उस मूर्ति को देखते ही राजकुमारी ने वरमाला को उस मूर्ति के गले में डाल दिया| जब राजकुमारी मूर्ति को माला पहनने वाली थी तभी पृथ्वीराज उस मूर्ति के स्थान पर आकर खड़े हो गए और माला उनके गले में पड़ गई।

संयोगिता द्वारा पृथ्वीराज के गले में वरमाला डालते देख, उनके पिता जयचंद्र बहुत क्रोधित हुए| वह अपनी तलवार लेकर राजकुमारी को मारने के लिए आगे बढे, लेकिन इससे पहले की वो संयोगिता तक पहुँचते पृथ्वीराज संयोगिता को अपने साथ लेकर वहां से निकल पड़े।

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Prithviraj Chauhan death story in Hindi Language

अंतिम हिंदू राजा पृथ्वीराज चौहान की मौत के बारे में काफी अस्पष्टता और भ्रम है, उनकी मृत्यु के बारे में इतिहासकारों में मतभेद है| पर जैसा की हम जानते हैं की 1192 में तेराइन की दूसरी लड़ाई में मुहम्मद गोरी ने पृथ्वी राज को पराजित किया था।

पृथ्वीराज की मृत्यु के बारे में उनके दरबारी कवि चांदबरदाई ने अपनी रचना “पृथ्वी राज रासो” में लिखा है कि पृथ्वीराज को मोहम्मद गोरी ने कैद करके उन्हें जेल में ले जाया गया। एक साल पहले हुई अपनी हार का बदला लेने के लिए गोरी ने पृथ्वीराज को अंधा बनाने का फैसला किया और उसने उनकी आँखों में लोहे की गर्म सलाखें डाल दी|

कुछ समय बाद, गोरी को पृथ्वीराज के प्रसिद्ध तीरंदाजी प्रतिभा का ज्ञान हुआ कि वह अपनी आँखें बंद करके भी लक्ष्य को मार सकता है| गोरी ने इस तथ्य की जांच करने का फैसला किया और वह राजसभा में एक ऊंचे स्थान पर बैठा आखिर में पृथ्वीराज को अंदर लाया गया, और पूर्व निर्धारित लक्ष्य को मारने के लिए कहा गया।

वह सभा भीड़ से भरी हुई थी और लोग इस घटना को देखने के लिए उत्सुक थे। जब वह लक्ष्य को मारने के लिए खुद को तैयार कर रहे थे तब चंद्र बरदाई ने कुछ पंक्तियाँ बोली, वह पंक्तियाँ थी-

चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण,
ता ऊपर सुल्तान है मत चुके चौहान

(4 बांस 24 गज, और 8 उंगलियां)

यह वह ऊँचाई थी जिसपर सुलतान मोहम्मद गोरी बैठा था| इन पंक्तियों ने पृथ्वी राज को गोरी की ऊँचाई कि बहुत जरूरी स्थिति को बता दिया| और जैसे ही गोरी बाण चलाने के लिए आदेश दिया पृथ्वीराज ने आवाज़ की दिशा में बाण मारा और गोरी मारा गया| इसके बाद पृथ्वीराज ने आत्महत्या कर ली थी| हालाँकि कुछ इतिहासकारों का मानना है कि पृथ्वीराज कि मृत्यु युद्ध के मैदान में हुई थी|

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