मुमताज़ महल का इतिहास Mumtaz Mahal History in Hindi
History of Mumtaz Mahal in Hindi-
अर्जुमंद बानू बेगम (जिनको की मुमताज महल के नाम से भी जाना जाता है) आसफ खान की पुत्री थी, आसफ खान नूरजहां का भाई था| अर्जुमंद बानू बेगम उर्फ़ मुमताज महल का जन्म (Mumtaz Mahal ka Janm) आगरा में सन 1593 ईस्वी में हुआ था|
अर्जुमंद बानू बेगम 1606 में राजकुमार खुर्रम ( शाहजहां ) की वाग्दत्ता (Engaged) हो गई| उस समय शहजादे खुर्रम की उम्र लगभग 15 वर्ष की थी|
Mumtaz Mahal Biography in Hindi-
पूरा नाम | अर्जुनंद बनू बेगम |
जन्म | अप्रैल, 1593 |
जन्मस्थल | आगरा |
पिता का नाम | आसफ खान |
पति का नाम | शाहजहाँ |
मृत्यु | 17 जून 1631 |
मृत्यु स्थान | बुरहानपुर |
दफन | ताज महल |
More History of Mumtaz Mahal in Hindi-
मुमताज को उसके पिता आसफ खान ने खूब अच्छी तरह से शिक्षा दी थी,और उनकी दी हुई शिक्षा उन्होंने सर्वथा सही ठहराया और हम यह कह सकते हैं कि वह उन्हीं शिक्षाओं की वजह से अपने भावी उच्च पद के सर्वथा योग्य थी| उस समय मुमताज महल की सुंदरता की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली हुई थी|
मुमताज महल का विवाह राजकुमार खुर्रम के साथ बड़ी ही धूम-धाम से अप्रैल 1612 ईसवी में हुआ था| विवाह के उत्सव में बादशाह एवं सम्रागी ने भी भाग लिया था|
शाहजहां और मुमताज महल के विवाह का सविस्तार वर्णन जहांगीर ने अपनी आत्मकथा में किया है| यह विवाह खुर्रम एवं मुमताज के लिए बडा ही आनंदमय सिद्ध हुआ| मुमताज महल जो की अद्वितीय सौंदर्य की धनी महिला थी, उन्होंने अपने प्रेम से अपने पति शाहजहां का हृदय वश में कर लिया|
वह शाहजहां के लिए उसके प्राणों से भी अधिक प्रिय थी तथा वह अपने पति के सुख दुख में हमेशा उसके साथ रही| शाहजहां अपने राज्य के प्रत्येक महत्वपूर्ण कार्य में मुमताज महल से उसकी सलाह लेता था एवं उसे अपना सबसे अच्छा सलाहकार भी मानता था|
शाहजहां के गद्दी पर बैठने के पश्चात मुमताज को राजमहिषी का पद प्राप्त हुआ, तथा उसको मल्लिका-एं-जमा की उपाधि दी गई| वह बादशाह की अत्यंत प्रिय एवं विश्वास पात्र थी, जिसके फलस्वरूप शाहजहां ने उसे शाही मुहर प्रदान की| हालांकि मुमताज ने बाद में इस शाही मुहर का अधिकारी अपने पिता आसिफ खान को बनवा दिया|
Shahjahan History in Hindi पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें 👉👉 शाहजहां का इतिहास
मुमताज महल की मृत्यु-
शाहजहां 1630 ईस्वी में खान जहां लोदी के विरुद्ध बुरहानपुर में युद्ध का संचालन कर रहा था, और 1630 ईस्वी में ही मुमताज महल ने अपनी 14वीं संतान के रूप में एक पुत्री को जन्म दिया| इसके पश्चात मुमताज महल काफी बीमार रहने लगी, और जब उसे जान पड़ा कि उसका अंत काल निकट है, तब उसने अपनी पुत्री जहांआरा से बादशाह को अपने पास बुलवाने का संदेसा भिजवाया और उससे आंखों में आंसू भर कर अपनी संतानों एवं माता पिता का ध्यान रखने की प्रार्थना करते हुए, वह 17 जून 1631 ईस्वी को इस लोक से चल बसी|
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