मीराबाई का जीवन परिचय, रचनाएँ Meerabai Biography in Hindi

मीराबाई का जीवन परिचय Meerabai Biography in Hindi

मीराबाई हिंदी साहित्य जगत की कवियत्रियों में अग्रणीय स्थान रखती हैं| मीराबाई ने इस संसार को कई कविताएं, दोहे, पद आदि प्रदान किए हैं जिनका यह संसार सदैव आपका ऋणी रहेगा, आप की कविताएं, दोहे एवं पद प्रमुखता से कृष्ण भक्ति पर आधारित हैं|

मीराबाई का जीवन परिचय Meerabai Biography and History in Hindi-

मीराबाई का जन्म (Meerabai Ka Janm) सन 1498 ईस्वी में राजस्थान के चौकड़ी नामक ग्राम में हुआ था| मीराबाई जोधपुर के संस्थापक राव जोधा जी की प्रपौत्री एवं जोधपुर नरेश राजा रतन सिंह की पुत्री थी| 

इनकी माता का देहांत इनकी अल्प आयु में ही हो गया था और इसी कारण वश वह अपने पितामह राव दूदा के पास रहती थी| उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा भी राव दूदा के ही सानिध्य में प्राप्त की| राव दूदा बड़े ही धार्मिक एवं उदार प्रकृति के थे और प्रायः धर्म-कर्म के कार्यों में ही अपना समय व्यतीत करते थे|

इसी धार्मिक एवं उदार प्रवृत्ति का प्रभाव मीराबाई के जीवन पर भी पड़ा और वह कृष्ण भक्ति की ओर अग्रसर हुई| 8 वर्ष की अल्प आयु में ही मीराबाई ने अपने आराध्य भगवान श्रीकृष्ण को अपना पति मान लिया| इस भौतिक संसार में मीराबाई का विवाह चितौड़ के महाराजा महाराणा सांगा के जेष्ट पुत्र भोजराज के साथ हुआ था|

विवाह के कुछ समय पश्चात ही मीरा विधवा हो गई तथा उनका सारा समय कृष्ण भक्ति में व्यतीत होने लगा| भगवान श्रीकृष्ण को अपना प्रियतम मानकर मीरा उनके विरह में पद गाती थी और साधू संतो के साथ नृत्य एवं कीर्तन भी करती थी|

मीराबाई के इसी व्यवहार के कारण उनके परिवार के लोग उनसे रुष्ट हो गए| उनके परिवार के लोगों ने रुष्ट होकर मीराबाई की हत्या करने के कई प्रयास किए पर वह असफल रहे| अंत में राणा और अपने परिवार के लोगों से व्यथित होकर मीराबाई वृंदावन चली गई|

जब मीरा की कीर्ति और यश का ज्ञान राणा को हुआ तो उन्हें बहुत पश्चाताप हुआ और उन्होंने मीराबाई को वापस बुलाने के लिए कई प्रयत्न किए| राणा ने मीरा को कई संदेश पत्र भेजे परंतु वह सांसारिक बंधनों को छोड़ चुकी थी|

ऐसा माना जाता है कि मीरा’ हरि तुम हरो जन की पीर’ पद को गाते हुए अपने परम पूज्य श्री कृष्ण की मूर्ति में विलीन हो गई थी| मीराबाई की मृत्यु (Meera Bai ki Mrityu) द्वारका में सन् 1546 ईस्वी में हुई थी|

मीराबाई की साहित्यिक सेवाएं-

मीराबाई के काव्य का मुख्य स्वर कृष्ण भक्ति है| आपके काव्य एवं पद बहुत ही सरल एवं निश्छल हैं| आपकी भक्ति साधना ही आपकी काव्य साधना में परिवर्तित हो गई|

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