जयचंद का इतिहास Jaichand History in Hindi
जयचंद का इतिहास-
जयचंद विजय चंद्र का पुत्र था और वह गढ़वाल वंश का राजा था| अपने पिता की मृत्यु के उपरांत जयचंद्र गढ़वाल राज्य का शासक बना था| उसकी माता का नाम चंद्रलेखा था| तत्कालीन ग्रंथों के अनुसार जयचंद की सेना में असंख्य सिपाही थे|
Jaichand Short History in Hindi-
नाम | जयचंद |
पिता का नाम | विजय चंद्र |
माता का नाम | चंद्रलेखा |
पुत्री का नाम | संयोगिता |
पुत्र का नाम | हरिश्चंद्र |
जयचंद का राज्यारोहण-
जयचंद के राज्यारोहण के संबंध में दो प्रमाण उपलब्ध हैं-
1- कुछ इतिहासकारों के मतानुसार उसका राजतिलक 16 जून 1168 ईसवी में हुआ था|
2- इसके अतिरिक्त कुछ इतिहासकारों के अनुसार उसका राजतिलक 21 जून 1170 ईसवी में हुआ था|
Life History of Jaichand in Hindi-
सिंहासन पर आसीन होने के उपरांत राजा जयचंद ने देवगिरि के यादवों, गुजरात के सोलंकियों तथा तुर्कों को युद्ध में परास्त किया था| उस समय गहड़वालों तथा बंगाल के लक्ष्मण सेन के बीच बहुत अधिक प्रतिद्वंदिता थी| पालों का पतन हो जाने पर जयचंद ने गया के क्षेत्र पर अपना अधिकार जमाना चाहा परंतु लक्ष्मणसेन ने जयचंद्र का विरोध किया|
राजा जयचंद ने अपनी विशाल सेना का प्रयोग करके उसने कई युद्धों में विजय प्राप्त की और इस उपलक्ष्य में उसने में राजसूय यज्ञ का आयोजन किया तथा 8 सामंत राजाओं को बंदी बनाया| इसके बाद उसने अपनी पुत्री संयोगिता के स्वयंवर का आयोजन किया था| राजा जयचंद ने इस स्वयंवर में पृथ्वीराज चौहान को आमंत्रित नहीं किया था|
अनेक इतिहासकारों के अनुसार पृथ्वीराज चौहान संयोगिता से प्रेम करते थे अतः उन्होंने स्वयंवर से ही संयोगिता का अपहरण कर लिया था| संयोगिता के अपहरण के उपरांत राजा जयचंद बहुत ही क्रोधित हुआ और उसने पृथ्वीराज चौहान से शत्रुता कर ली|
पृथ्वीराज चौहान और राजा जयचंद के बीच की पारस्परिक शत्रुता ने भारत की राजनीति तथा भारत के इतिहास की गति को बहुत अधिक प्रभावित किया था| जब सन 1191 ईसवी में मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज पर आक्रमण किया तो इस युद्ध में मोहम्मद गोरी की हार हुई थी, परंतु पृथ्वीराज ने मोहम्मद गोरी को जीवनदान दिया था|
इस युद्ध को तराइन का प्रथम युद्ध कहा जाता है| तराइन के प्रथम युद्ध के 1 वर्ष के बाद ही मोहम्मद गोरी ने पुनः 1192 ईसवी में पृथ्वीराज को तराइन के मैदान में पुनः ललकारा| तराइन के द्वितीय युद्ध में पृथ्वीराज चौहान पराजित हुआ था और उसे बंदी बना लिया गया| इतिहासकारों के मतानुसार राजा जयचंद ने ही पृथ्वीराज चौहान के खिलाफ गोरी को आक्रमण करने का निमंत्रण दिया था|
जयचंद को यह विश्वास था कि पृथ्वीराज को पराजित करने के उपरांत मोहम्मद गोरी वापस चला जाएगा परंतु ऐसा नहीं हुआ और मोहम्मद गोरी ने कन्नौज पर आक्रमण कर दिया| इस आक्रमण के फलस्वरुप 1194 ईसवी में चंदावर के मैदान में जयचंद तथा गोरी के बीच में संघर्ष हुआ|
मोहम्मद गोरी के सेनापति कुतुबुद्दीन ने बहुत ही कुशल युद्ध नीति का प्रयोग किया और उसके द्वारा चलाए गए बाणों से जयचंद की आंखें फूट गई| आँख फूट जाने के कारण जयचंद्र हाथी से गिर पड़ा और उसकी मृत्यु हो गई| इस युद्ध में असंख्य लोग मारे गए और गढ़वाल राजवंश के राजकोष पर गोरी का अधिकार हो गया|
गोरी ने कन्नौज पर अपना अधिकार नहीं जमाया और उसने राजा जयचंद के पुत्र हरिश्चंद्र को कन्नौज का शासक नियुक्त किया और तत्पश्चात वह अपने देश को लौट गया|
More History of Jaichand in Hindi-
भारतीय इतिहास में राजा जयचंद का स्थान उसके द्वारा किए गए कृत्यों द्वारा निर्धारित होता है, निसंदेह जयचंद एक वीर पराक्रमी तथा साहसी राजा था परंतु वह पूर्णता अदूरदर्शी था| वह विद्वानों का संरक्षक था, और उसकी राज्यसभा को संस्कृत का प्रथम कवि श्रीहर्ष सुशोभित करता था|
परंतु विद्वानों के साथ के बाद भी उसने कई ऐसे निर्णय लिए जिस ने तत्कालीन भारतीय समाज की दशा एवं दिशा को बदल कर रख दिया| जयचंद के हृदय में पृथ्वीराज चौहान से प्रतिशोध लेने की भावना इतनी प्रबल कि जब एक मुसलमान आक्रमणकारी उसकी मातृभूमि को रौंद रहा था तब भी वह तटस्थ बना रहा|
उस की अदूरदर्शिता के कारण ही मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान को हराने के उपरांत उसके भी राज्य पर धावा बोल दिया| इन युद्धों में गोरी ने बहुत सारे अत्याचार किए, देव स्थानों, मंदिरों आदि को उसने छिन्न-भिन्न कर दिया और इस का उत्तरदायित्व केवल जयचंद पर ही है|
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