इंदिरा गाँधी का जीवन परिचय Indira Gandhi Biography in Hindi

इंदिरा गाँधी ने 1966 से 1977 तक और 1980 से 1984 तक प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया। इंदिरा गाँधी अपने कार्यकाल में बहुत ही सख्त निर्णय लेने के रूप में जानी जाती हैं, और साथ ही साथ उनका राजनीतिक करियर कई विवादों के साथ भी घिरा रहा|

अतिसंवेदनशीलता, भ्रष्टाचार जैसे कई आरोप उनके कार्यकाल में लगे और उन्ही के समय में 1975 से 1977 तक भारत में आपातकाल की स्थिति उत्पन्न हुई। पंजाब में ऑपरेशन ब्लू-स्टार करने के लिए उनकी बहुत आलोचना की गई, इसी ऑपरेशन ने इंदिरा गाँधी की मृत्यु की बुनियाद रखी| अंततः 31 अक्टूबर 1984 को उनकी हत्या कर दी गयी|

बचपन और प्रारंभिक जीवन

इंदिरा गाँधी भारत के प्रथम प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू की एकमात्र बेटी और भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री हैं। 1966 में उन्हें पहली बार प्रधानमंत्री चुना गया था। इंदिरा गांधी का जन्म 19 नवंबर, 1917 को इलाहाबाद (वर्तमान में प्रयागराज) में जवाहरलाल नेहरू और कमला नेहरू से हुआ था।

पं. मोतीलाल नेहरू इंदिरा के दादा (grand-father) थे जोकि एक प्रसिद्ध वकील और कांग्रेस के नेता थे। नेहरू परिवार तब इलाहाबाद के प्रसिद्ध आनंद भवन में रहता था।

इंदिरा गाँधी के बचपन का नाम इंदिरा प्रियदर्शनी था| इंदिरा के पिता जवाहरलाल एक वकील और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के सक्रिय सदस्य थे। इंदिरा ने पुणे विश्वविद्यालय से मेट्रिक पास किया और उसके बाद वे पश्चिम बंगाल के शांतिनिकेतन में गयीं|

बाद में वह अध्ययन के लिए स्विट्जरलैंड और लंदन में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय गई। इंदिरा स्विट्जरलैंड में अपनी बीमार मां के साथ कुछ महीनों तक रुकी| 1936 में कमला नेहरू तपेदिक के चपेट में आयीं और उनकी मृत्यु हो गयी| माँ की मृत्यु के बाद इंदिरा गाँधी वापस वह भारत लौट आईं। जब कमला नेहरू की मौत हुई थी उस समय जवाहरलाल नेहरू भारतीय जेल में बंद थे|

शादी और पारिवारिक जीवन-

जब इंदिरा इंडियन नेशनल कांग्रेस की सदस्य बनी, तो उस समय उनकी मुलाक़ात फिरोज गांधी से हुई| फिरोज गाँधी एक पत्रकार और यूथ कांग्रेस के महत्वपूर्ण सदस्य थे| 1941 में, अपने पिता की आपत्तियों के बावजूद, उन्होंने फिरोज गांधी से शादी की। 1944 में, इंदिरा ने राजीव गांधी को जन्म दिया और उसके दो साल बाद संजय गांधी ने जन्म लिया। 1951-52 के संसदीय चुनावों के दौरान, इंदिरा गांधी ने अपने पति, फिरोज के अभियानों को संभाला, जो उत्तर प्रदेश के रायबरेली से चुनाव लड़ रही थीं। सांसद चुने जाने के बाद, फिरोज ने दिल्ली में एक अलग घर में रहने का विकल्प चुना।

इंदिरा गांधी का राजनीतिक कैरियर

राजनीति में प्रारंभिक प्रवेश-

चूंकि नेहरू परिवार राष्ट्रीय राजनीतिक गतिविधि का केंद्र था, इसलिए इंदिरा गांधी छोटी उम्र से ही राजनीति में आ गईं थीं। नेहरू परिवार भारत की राजनीति में इतना अहम था कि महात्मा गांधी जैसा व्यक्तित्व इलाहाबाद के नेहरू घराने में अक्सर वार्तालाप और भारत की राजनीति से संबंधित बातें करने जाया करते थे| इंदिरा ने राष्ट्रीय आंदोलन में गहरी दिलचस्पी दिखाई। वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सदस्य भी बनीं। जब भारत 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुआ तब इंदिरा गांधी के पिता जवाहरलाल नेहरू भारत के पहले प्रधानमंत्री बने।

इंदिरा गांधी ने अपने पिता की सहायता के लिए दिल्ली जाने का फैसला किया। और वह अपने दोनों बेटों के साथ दिल्ली चली गई परंतु उनके पति कुछ समय के लिए इलाहाबाद में ही रहे क्योंकि वह मोतीलाल नेहरू द्वारा स्थापित द नेशनल हेराल्ड ’अखबार के संपादक के रूप में काम कर रहे थे।

कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में इंदिरा-

1959 में, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष के रूप में इंदिरा गांधी को चुना गया था। वह जवाहरलाल नेहरू के राजनीतिक सलाहकारों में से एक थी। जब 27 मई 1964 को भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु हुई तो उनकी मृत्यु के बाद इंदिरा गांधी ने चुनाव लड़ने का फैसला किया| उन्होंने चुनाव को जीता और भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के काल में इंदिरा गांधी को सूचना और प्रसारण मंत्रालय के प्रभारी के रूप में नियुक्त किया गया था

यह माना जाता था कि इंदिरा गांधी राजनीति और छवि बनाने की कला में माहिर थीं। जब 1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध चल रहा था, तब इंदिरा गांधी श्रीनगर की यात्रा पर गई थीं। सुरक्षाबलों ने उनको बार-बार यह चेतावनी दी कि जिस होटल में ठहरी हुई है उससे थोड़ी ही दूर पर पाकिस्तानी विद्रोही भी है, और उस होटल में रहना उनके लिए सुरक्षित नहीं है| परंतु उन्होंने अपने होटल को स्थानांतरित करना उचित नहीं समझा और वहीं पर वह रुकी| यह घटना इतनी साहसिक थी कि इस घटना ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया का ध्यान इंदिरा गांधी की तरफ खींचा|

भारत के प्रधान मंत्री के रूप में पहला कार्यकाल-

11 जनवरी 1966 को ताशकंद में लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु हो गई और उनकी मृत्यु के बाद प्रधानमंत्री की कुर्सी के लिए दौड़ शुरू हुई| कांग्रेस के पास उस समय कई विकल्प मौजूद थे परंतु बहुत विचार-विमर्श के बाद, इंदिरा को कांग्रेस हाईकमान द्वारा पूरी तरह से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में चुना गया| चुनाव के बाद, श्रीमती गांधी ने असाधारण राजनीतिक कौशल दिखाया और उन्होंने कांग्रेस के कई बड़े और दिग्गज नेताओं को सत्ता से बाहर कर दिया|

Indira and Pak War-

इंदिरा गांधी और आपातकाल-

इंदिरा गांधी ने 1975 में आपातकाल लगाया था। ऐसा माना जाता है कि उन्होंने भारत के संविधान के आपातकालीन प्रावधान का उपयोग करके इंदिरा ने असाधारण शक्तियां हासिल कर ली थी| भारत में यह आपातकाल लगभग 19 महीनों तक चला और इसके बाद चुनाव हुए| इस चुनाव में इंदिरा गांधी अपनी सीट हार गई| इंदिरा गांधी के हार के साथ ही साथ कांग्रेस की भी बुरी तरह से इन चुनावों में हार हुई थी और जनता पार्टी ने अपनी सरकार बनाई| जनता पार्टी द्वारा बनाई गई सरकार 5 साल का अपना कार्यकाल पूरा ना कर पाई और यह सरकार 1980 में गिर गई, जिसके बाद पुनः भारत में चुनाव हुए| कांग्रेस फिर से सत्ता में आई और एक बार फिर इंदिरा गांधी को भारत का प्रधानमंत्री बनाया गया|

इंदिरा गांधी और ऑपरेशन ब्लू स्टार-

जून, 1984 के पहले सप्ताह में, भारतीय सेना ने हरमंदिर साहिब (स्वर्ण मंदिर) के परिसर के भीतर एक अभियान चलाया। यह अभियान उस समय चलाया गया जब सिख चरमपंथी धर्मगुरु जरनैल सिंह भिंडरावाले और उनके सशस्त्र उग्रवादी समूह ने स्वर्ण मंदिर के परिसर पर कब्जा कर लिया था| भिंडरावाले को स्वर्ण मंदिर से बाहर निकालने और इस पवित्र स्थल की पवित्रता को बचाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाया था।

भिंडरावाले, जिन्हें कथित तौर पर पाकिस्तान की आईएसआई द्वारा समर्थित किया गया था| भिंडरावाले ने अपनी मांगों को स्पष्ट कर दिया था – वह चाहते थे कि भारत सरकार एक प्रस्ताव पारित करे जिससे भारत विभाजित हो जाए, जिससे सिखों के लिए एक नया देश बनेगा जिसे ‘खालिस्तान’ कहा जाएगा।

कट्टरपंथी अलगाववादी जरनैल सिंह भिंडरावाले ने 1982 में अपनी मांग के लिए आधार बनाना शुरू कर दिया था, और 1983 के मध्य तक भारत को विभाजित करने की अपनी योजना के लिए समर्थन हासिल करने में कामयाब रहे।

उनके कार्यों और योजनाओं को कथित तौर पर पाकिस्तान के आईएसआई द्वारा समर्थित किया गया था, जिसने उन्हें राज्य में उग्रवाद फैलाने में मदद की, और उन्हें हथियार और गोला-बारूद भी प्रदान किए।

1983 के मध्य में, भिंडरावाले और उनके सशस्त्र उग्रवादी समूह ने स्वर्ण मंदिर (हरमंदिर साहिब परिसर) में प्रवेश किया और अपने नियंत्रण में ले लिया। के बाद उन्होंने लगभग पूरे स्वर्ण मंदिर को अपने नियंत्रण में ले लिया|। सशस्त्र आतंकवादियों से स्वर्ण मंदिर का नियंत्रण वापस लेना और इसकी पवित्रता को संरक्षित करना आसान नहीं था।

सिखों के लिए सबसे पवित्र स्थल होने के कारण यह निर्णय लेना और भी कठिन हो गया। लेकिन लगभग एक साल के परामर्श और बातचीत की कोशिश के बाद, तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने फैसला किया कि अब उनके पास केवल और केवल एक विकल्प मौजूद है वह है सैन्य अभियान| उन्होंने इसकी इजाजत दी और इस ऑपरेशन को “ ऑपरेशन ब्लू स्टार” के नाम से जाना गया|

2 जून 1984 को देर रात, भारतीय सेना ने ऑपरेशन ब्लूस्टार को अंजाम दिया। पूरे पंजाब में कर्फ्यू लगा दिया गया। किसी को भी राज्य की ओर से आने-जाने की अनुमति नहीं थी। संचार के सभी चैनलों को भी अवरुद्ध कर दिया गया था। अंततः का ऑपरेशन सफल था क्योंकि भिंडरावाले और उनके आतंकवादियों के समूह को मार गिराया गया| परंतु इस ऑपरेशन में बहुत सारे नागरिकों और सेना के जवानों की भी मृत्यु हुई थी|

ऑपरेशन ब्लूस्टार दो तरह से चलाया गया था- पहले वाले को ऑपरेशन मेटल कहा जाता था, जो गोल्डन टेंपल परिसर में सशस्त्र आतंकवादियों को समाप्त करने के लिए चलाया गया था। इसके बाद ऑपरेशन शॉप किया गया, जिसे पूरे पंजाब में चलाया गया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी संदिग्ध आतंकवादी या तो पकड़े जाएं या मारे जाएं|

यद्यपि स्वर्ण मंदिर को सकुशल बचा लिया गया और फिर से जनता के लिए खोल दिया गया, लेकिन दुनिया भर में सिखों द्वारा इस ऑपरेशन की आलोचना की गई थी, क्योंकि यह उनकी पवित्रत पूजा स्थल पर किया गया था।
ऑपरेशन के दीर्घकालिक परिणाम हुए, इस ऑपरेशन ने भारत को एकजुट किया, और पंजाब को उग्रवाद से मुक्त किया|

इंदिरा गांधी की हत्या-

ऑपरेशन ब्लू स्टार स्वर्ण मंदिर को तो सुरक्षित कर लिया परंतु सिख समुदाय के लोग इंदिरा गांधी से काफी नाराज हो गए| और उनका मानना था कि उनके सबसे पवित्र स्थल पर यह जो कत्लेआम हुआ है उसकी जिम्मेदार केवल और केवल इंदिरा गांधी हैं|

31 अक्टूबर 1984 को, इंदिरा गांधी को उनके दो अंगरक्षकों ने गोली मार दी| इंदिरा गांधी को गोली मारने वाले उनके दोनों अंगरक्षक सिख थे और उन्होंने इंदिरा गांधी को गोली केवल इसलिए मारी क्योंकि वह स्वर्ण मंदिर में हुए कत्लेआम का प्रतिशोध लेना चाहते थे| इंदिरा गांधी की मृत्यु के बाद उनके बेटे राजीव गांधी को भारत की कमान सौंपी गई|


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