गोपाल कृष्ण गोखले | Gopal Krishna Gokhale Biography in Hindi
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Biography of Gopal Krishna Gokhale in Hindi-
गोपाल कृष्ण गोखले भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के अग्रदूतों में से एक थे। गोखले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता थे। वह सर्वेन्ट्स ऑफ़ इंडिया सोसाइटी (Servants of India Society) के संस्थापक थे|
गोपाल कृष्ण गोखले का जन्म 9 मई सन 1866 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के कोथलुक में हुआ था| उनके पिता का नाम कृष्ण राव था जोकि एक किसान और क्लर्क थे| उनकी माता का नाम वालुबाई गोखले था| गोपाल कृष्ण गोखले का विवाह 1880 में सावित्रीबाई के साथ हुआ था, उन्होंने अपने जीवन में दो शादियां की थी| सावित्रीबाई जन्मजात बीमारी से ग्रसित थी और इसी कारणवश गोखले ने 1887 में दोबारा शादी की। उनकी दूसरी पत्नी की मृत्यु 1900 में हुई और गोखले ने इसके बाद पुनर्विवाह नहीं किया। उनकी दूसरी पत्नी ने दो पुत्रियों को जन्म दिया, जिनका नाम काशीबाई और गोदाबाई था|
Gopal Krishna Gokhale Biography in Hindi-
नाम | गोपाल कृष्ण गोखले |
जन्म | 9 मई, 1866 |
जन्म स्थान | कोथापुर (महाराष्ट्र) |
पिता | कृष्ण राव गोखले |
माता | वालूबाई गोखले |
स्थापना | सर्वेन्ट्स ऑफ़ इंडिया सोसाइटी |
मृत्यु | 19 फरवरी, 1915 |
गोपाल कृष्ण गोखले में दिल और दिमाग की अद्भुत योग्यताएं थी| उन्होंने अपने जीवन में बड़ी तीव्र गति से उन्नति की, उन्होंने 18 वर्ष की आयु में स्नातक की डिग्री प्राप्त की और 20 वर्ष की अल्प आयु में प्रोफेसर बन गए| 22 वर्ष की आयु में गोपाल कृष्ण गोखले मुंबई विधान परिषद के सदस्य हो गए एवं 29 वर्ष की आयु में ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुन लिए गए| उनके राजनीतिक जीवन की शुरूआत जस्टिस रानाडे के अनुयायी के रूप में हुई|
इस संबंध में डॉक्टर जकारिया ने लिखा है कि- गोखले के रूप में रानाडे को जैसा शिष्य मिला था वैसा उपयुक्त शिष्य कभी किसी गुरु को नहीं मिला होगा|
थोड़े ही समय में ही वे दक्षिण शिक्षा समाज के सदस्य तथा फर्गुसन कॉलेज के प्रिंसिपल बन गए, वह प्रिंसिपल के पद पर लगभग 20 वर्ष तक सेवारत रहे| पूना सार्वजनिक सभा के त्रेमासिक अखबार के संपादक बन गए, उन्होंने सन 1935 में भारत सेवक समाज की स्थापना की| गोपाल कृष्ण गोखले देश के सच्चे सपूत थे उनमें सेवा-भाव, आत्मत्याग एवं देशप्रेम कूट-कूट कर भरा हुआ था| उनके संबंध में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने लिखा था- यदि गोखले ने कीर्तिमान होना चाहा तो केवल देश की राजनीतिक क्षेत्र में कीर्तिमान होना चाहा, उनकी यह इच्छा इसलिए नहीं थी कि सर्वसाधारण उनकी प्रशंसा करें बल्कि इसलिए थी कि देश का लाभ और कल्याण हो उन्होंने सार्वजनिक प्रशंसा पाने का कभी प्रयास नहीं किया|
गोखले के राजनीतिक विचार एवं कार्य-
गोखले महान उदारवादी नेता थे उनमें देशभक्ति कूट-कूट कर भरी थी| वे सच्चे राष्ट्रवादी थे इसीलिए ब्रिटिश शासन के प्रत्येक भारत विरोधी कदम का उन्होंने जोरदार विरोध किया| नमक पर लगने वाले कर से निर्धन लोगों को होने वाली परेशानी के कारण उन्होंने ब्रिटिश शासन की कटु आलोचना की और उसका विरोध भी किया| उन्होंने बंगाल विभाजन का भी विरोध किया| उच्च पदों पर भारतीयों की नियुक्ति ना करने की सरकारी नीति की जोरदार भर्त्सना की| बंगाल विभाजन के संबंध में उन्होंने कहा- मैं इतना कह सकता हूं कि नौकरशाही के साथ जनता के हित की दृष्टि से सहयोग करने की सारी आशा सदा के लिए खत्म हो गई है| गोखले ने 1909 के मार्ले-मिंटो सुधारों के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी|
सन 1935 ई में गोखले भारत की ओर से प्रचार के लिए इंग्लैंड गए, उन्हें दक्षिण अफ्रीका जाने का भी अवसर प्राप्त हुआ और उन्होंने वहां महात्मा गांधी जी के कार्यों में सहायता प्रदान की| बाद में भारत आने पर उन्होंने वैधानिक तरीकों से भारतीयों को विरोध के लिए प्रेरित किया|
गोपाल कृष्ण गोखले की मृत्यु-
गोखले ने कई वर्षों तक लगातार कड़ी मेहनत और भक्ति भावना से भारत की सेवा की| लेकिन दुर्भाग्यवश, अत्यधिक परिश्रम के कारण वह मधुमेह और अस्थमा जैसी बीमारियों से ग्रसित हो गए| अंततः 19 फरवरी, 1915 भारत माता के इस महान नेता का निधन हो गया।
गोपाल कृष्ण गोखले सच्चे देश भक्त थे| लार्ड कर्जन उन्हें अपना घोर शत्रु मानते थे| एक स्थान पर कर्जन ने लिखा है-
‘भगवान ने आपको असाधारण योग्यताएं प्रदान की है और आप ने उंहें निसंकोच देश सेवा में लगा दिया है”|
बाल गंगाधर तिलक के शब्दों में- गोखले भारत का हीरा, महाराष्ट्र का रत्न और मजदूरों के राजा थे|
यद्यपि गरम दल वाले उन्हें “एक निर्बल हृदय वाला उदारवादी” तथा प्रतिक्रियावादी उन्हें एक छुपा हुआ राजद्रोही समझते थे, किंतु ऐसी बात नहीं थी वह ना तो क्रांतिकारी थे ना ही प्रतिक्रियावादी, बल्कि वे एक रचनात्मक नेता थे| वे सदैव भारतीयों के अधिकारों एवं स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करते रहे, गोखले जनता की आकांक्षाओं को सरकार तक पहुंचाते थे और कांग्रेस की कठिनाइयों को कांग्रेस के सम्मुख रखते थे|
गोपाल कृष्ण गोखले कितने निर्मल एवं पवित्र थे यह आप उनके शब्दों से ही सही अंदाजा लगा सकते हैं, उनके शब्द थे- “तुम लोग मेरा जीवन चरित्र लिखने ना बैठना मेरी मूर्ति बनवाने में भी अपना समय ना लगाना, तुम लोग भारत के सच्चे सेवक होंगे तो अपने सिद्धांत के अनुसार आचरण करना अर्थात् भारत की सेवा करने में व्यतीत करना| यह शब्द उनके जीवन के अंतिम समय के उदगार थे जो भारत सेवक समाज के सदस्यों के लिए संबोधित किए गए थे|