बाबर का इतिहास | Babar History in Hindi
हिंदुस्तान के इतिहास में जब दिल्ली सल्तनत का पतन हुआ तब एक नए युग का प्रारंभ हुआ, जिसे हम मुगल युग के नाम से जानते हैं|
भारतीय इतिहास को मुगल साम्राज्य ने कई वीर एवं पराक्रमी शासक दिए, और मुगल वंश के शासकों ने को राजनीतिक परंपराएं भारत के इतिहास को समर्पित की| भारतवर्ष में बाबर को (पूरा नाम जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर Jhhir ud-din Muhammad Babar) मुगल साम्राज्य की स्थापना का श्रेय दिया जाता है|
पानीपत के प्रथम युद्ध में जहीरुद्दीन बाबर ने इब्राहिम लोदी को सन 1526 ईस्वी में परास्त किया, और इसके उपरांत ही भारत में मुगल वंश का समावेश हुआ| वैसे तो बाबर मुग़ल नहीं था परंतु इस राजवंश को कालांतर में मुगल राजवंश के नाम से जाना गया, और इस युग को इतिहास में मुगल युग के नाम से जाना गया|
मुगल युग के प्रमुख शासकों में हुमायूं, अकबर, जहांगीर, शाहजहां, औरंगजेब एवं बहादुर शाह जफर के नाम आते हैं| मुगल वंश का अंतिम शासक बहादुर शाह जफर था, बहादुर शाह जफर को अंग्रेजों ने सन 1858 ईस्वी में सिंहासन से हटाकर बंदी बना लिया था|
डॉ रामप्रसाद त्रिपाठी के अनुसार– बाबर एक नए साम्राज्य के निर्माण का पथ प्रदर्शक ही नहीं रहा, उसने उन लक्षणों और नीतियों का भी संकेत किया, जिन्हें उसके उत्तराधिकारी मान्यता देते रहे| उसने भारत में एक राजवंश और उसकी परंपरा की स्थापना की, जिसकी जोड़ किसी दूसरे देश के इतिहास में बड़ी मुश्किल से मिलती है|
महत्वपूर्ण तथ्य– बाबर द्वारा स्थापित राजवंश इतिहास में मुगल राजवंश के नाम से प्रख्यात है परंतु बाबर स्वयं मुगल नहीं था, वह तैमूर का वंशज तुर्क था|
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बाबर का इतिहास (प्रारंभिक जीवन)-
History of Babar in Hindi–
- बाबर का जन्म 24 जनवरी 1483 ईस्वी में फरगना में हुआ था|
- वह तैमूर का वंशज चगताइ तुर्क था|
- बाबर के पिता का नाम उमर शेख मिर्ज़ा था||
- उसकी मां का नाम कुतलुक निगार खान था|
- उमर शेख मिर्ज़ा फरगना के छोटे से राज्य का शासक था|
प्रसिद्ध इतिहासकार विंसेंट स्मिथ ने लिखा है की बाबर अपने युग के एशिया के बादशाहों में सर्वाधिक ज्योतिर्मय शासक था| यदि हम बाबर के प्रारंभिक जीवन और उसकी उपलब्धियों का वर्णन करें तो हमें यह पता चलता है कि की बाबर ने अनेक कठिनाइयों और अवरोधों को पराजित करके भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना में सफलता प्राप्त की थी|
सन 1494 ईस्वी में बाबर के पिता की मृत्यु हो गई इसके बाद वह फरगना की राजगद्दी पर बैठा और अपने पिता के शासन काल को आगे बढ़ाया| जिस समय बाबर राजगद्दी पर विराजमान हुआ उस समय उसकी अवस्था केवल 12 वर्ष की थी|
उसकी आरंभिक शिक्षा का बहुत अच्छा प्रबंध किया गया था परंतु राज गद्दी पर बैठने के पश्चात उसे अध्ययन का अवसर नहीं मिला| परंतु उसने छोटी अवस्था में ही तुर्की और फारसी भाषाओं का पूरा ज्ञान प्राप्त कर लिया था और वह उन्हें बड़ी आसानी से लिख एवं बोल सकता था|
Babar Biography in Hindi-
बाबर का जन्म | 1483 ईस्वी |
बाबर का भारत में प्रवेश | 1519 ईस्वी |
पानीपत का प्रथम युद्ध | 1526 ईस्वी |
खानवा का युद्ध | 1527 ईस्वी |
चंदेरी का युद्ध | 1528 ईस्वी |
घाघरा का युद्ध | 1529 ईस्वी |
बाबर की मृत्यु | 1530 ईस्वी |
भारत पर बाबर के प्रारंभिक आक्रमण-
बाबर ने भारत में कई युद्ध लड़े, जिनमें पानीपत का युद्ध, खानवा का युद्ध, चंदेरी का युद्ध, घाघरा का युद्ध प्रमुख है| भारत पर अपने अंतिम तथा प्रसिद्ध आक्रमण के पहले बाबर ने भारतीय सीमा पार करके कई छोटे-मोटे आक्रमण किए|
इसके अतिरिक्त उसने बजौर के किले पर हमला किया, और इस युद्ध में बजौर किले की सेना ने अपनी स्वरक्षा में बड़ी वीरता एवं युद्ध कौशल का परिचय दिया, परंतु बाबर एक कुशल शासक था और अंत में यह सेना बाबर की सेना के हाथों परास्त हुई|
सन 1519 में उसने झेलम के तट पर स्थित भीरा पर चढ़ाई की, और बिना किसी लड़ाई के ही उस पर अधिकार कर लिया| वहां के निवासियों के साथ दया का बर्ताव हुआ और जिन सिपाहियों ने अत्याचार किया वे मार डाले गए|
अपने सलाहकारों की राय से बाबर ने सुल्तान इब्राहिम लोदी के पास एक राजदूत को इस संदेश के साथ भेजा कि सुल्तान उन प्रदेशों को लौटा दे जो बहुत दिनों से तुर्कों के हाथ में था, किंतु वह दूत दौलतखान द्वारा लाहौर में ही रोक लिया गया और बिना कुछ उत्तर पाए ही 5 महीने बाद लौटा|
वीरा, खुशाल और चिनाव का प्रदेश अधिकार में ले कर बाबर दर्रा कुर्रम के रास्ते से काबुल लौट गया| उन दिनों बाबर आनंद उत्सव में बहुत भाग लिया करता था, वह बहुत शराब पीने लगा और अफीम भी खाने लगा, परंतु बाबर अपनी इंद्रियों का दास नहीं था|
मदिरापान उसकी चढ़ाइयों और विजयों में बाधा नहीं डाल सका| 1520 में उसने बदखशा जीत लिया और शहजादा हुमायूं को उसका अधिकारी बना दिया| 2 वर्षों बाबर ने अर्गुनो से कंधार छीन लिया और उसे अपने छोटे लड़के कामरान के हवाले किया|
बाबर की मृत्यु 26 दिसंबर सन 1530 ईस्वी में हुई थी, पहले बाबर को आगरा में दफनाया गया था परंतु बाद में उसको काबुल में दफनाया गया| काबुल का स्थान उसने स्वयं चुना था
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