बर्मा का युद्ध Burma yuddh in Hindi Language

बर्मा के इतिहास में दो युद्धों का वर्णन प्रमुख रूप से मिलता है, पहला युद्ध बर्मा का प्रथम युद्ध एवं दूसरी लड़ाई बर्मा का द्वितीय युद्ध के नाम से जानी जाती है| इन युद्धों का सविस्तार वर्णन अग्रलिखित है-

बर्मा का प्रथम युद्ध-

First war of Burma in Hindi

इस युद्ध का समय 1824- 1826 ईसवी तक माना जाता है| उस समय वर्मा एक स्वतंत्र राष्ट्र था और इस देश की सीमाएं भारतीय राज्य की पूर्वी सीमाओं से मिलती थी तथा उस समय भारत पर अंग्रेजी हुकूमत का प्रभाव था|

बर्मा का तत्कालीन राजा अंग्रेजों की साम्राज्य विस्तार की नीति से सशंकित एवं भयभीत था और वह अपने राज्य की सीमाओं को सुदृढ़ एवं शक्तिशाली बनाना चाहता था| इस कारण से उसने सन 1822 ईस्वी में मणिपुर एवं असम राज्य पर अपना अधिकार कर लिया|

सन 1823 ईस्वी में उसने शाहपूरी के छोटे द्वीप पर भी अपना अधिकार कर लिया, यह द्वीप चटगांव के निकट स्थित था| सन 1824 ईस्वी में राजा ने चटगांव के साथ-साथ ढाका, कासिम बाजार एवं मुर्शिदाबाद के क्षेत्रों की मांग की| राजा की इन मांगों के फलस्वरुप लॉर्ड एमहर्स्ट ने सन 1824 ईस्वी में बर्मा के विरुद्ध युद्ध का प्रारंभ किया|

बर्मा का प्रथम युद्ध (Barma ka yudh) काफी लंबे समय तक चला, जिसका प्रमुख कारण यह था कि बर्मा प्रदेश की जलवायु प्रतिकूल थी एवं धरातल बहुत ही दुर्गम था| इन विपरीत परिस्थितियों के कारण अंग्रेजों ने जलमार्ग से आक्रमण करने की योजना बनाई और इस योजना में वह सफल भी हुए|

अंग्रेजों ने रंगून पर अपना अधिकार कर लिया और अंततः सन 1826 ईस्वी में विवश होकर बर्मा की सेना को याण्डबू नामक स्थान पर संधि करनी पड़ी|

इस संधि के परिणाम स्वरुप अंग्रेजो को तानासरिम एवं अराकान के प्रदेश प्राप्त हुए| असम, जयंतियां एवं कछार से बर्मा का अधिकार समाप्त हुआ एवं मणिपुर को स्वतंत्र राज्य घोषित किया गया|

बर्मा का द्वितीय युद्ध-

  • बर्मा का द्वितीय युद्ध 1852 ईसवी में हुआ था|

Second war of Burma in Hindi

जैसा की हमने ऊपर किए गए वर्णन में देखा की वर्मा के प्रथम युद्ध का अंत याण्डबू की संधि से हुआ था परंतु यह संधि बर्मा के इतिहास में ज्यादा कारगर सिद्ध नहीं हुई और यह संधि समाप्त हो गई| इस संधि के समापन का कारण यह था कि संधि के पश्चात कुछ अंग्रेजी व्यापारी बर्मा के दक्षिणी तट पर बस गए और वहीं से अपने व्यापार का संचालन प्रारंभ किया|

कुछ समय पश्चात इन व्यापारियों ने बर्मा सरकार के निर्देशों एवं नियमों का उल्लंघन करना प्रारंभ कर दिया इस कारणवश बर्मा सरकार ने उन व्यापारियों को दंडित किया| जिसके फलस्वरुप अंग्रेज व्यापारियों ने अंग्रेजी शासन से सन 1851 ईस्वी में सहायता मांगी|

लॉर्ड डलहौजी ने इस अवसर का फायदा उठाकर सन 1852 ईस्वी में बर्मा के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी, इस लड़ाई में अंग्रेजों ने बर्मा को पराजित किया और मर्तवान एवं रंगून पर अपना अधिकार कर लिया| इस युद्ध के पश्चात बर्मा राष्ट्र का समस्त दक्षिणी भाग अंग्रेजी सरकार के अधीन हो गया|


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