अकबर का इतिहास | Akbar History in Hindi

सन 1526 ईस्वी में पानीपत के ऐतिहासिक रण स्थल में इब्राहिम लोदी को पराजित कर के बाबर ने एक दृष्टि से भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना की थी, बाबर की मृत्यु के बाद हुमायूं सिंहासन पर बैठा परंतु इसी बीच शेरशाह सूरी के अभ्युदय से उत्तरी भारत की राजनीतिक सत्ता सूरवंश के हाथों में आ गई |

शेरशाह सूरी हिंदुस्तान का बादशाह बन गया, परंतु उसके उत्तराधिकारी सर्वथा अयोग्य निकले और जल्द ही सूर वंश का पतन हो गया और भारत में पुनः मुगल राजवंश का सूर्य कमल खिल उठा| हुमायूं की मृत्यु के उपरांत मुगल राजवंश के तृतीय शासक का उदय होता है और यह तृतीय शासक था- सम्राट अकबर (Jalaluddin muhammad Akbar)|

अकबर की जीवनी

अकबर बादशाह हुमायूं का पुत्र था और उसकी माता का नाम हमीदा बानू बेगम था| अकबर का जन्म 15 अक्टूबर 1542 ई. को अमर कोट के राजा वीरसाल के महल में हुआ था, इतिहासकारों के मतानुसार अकबर के जन्म के समय हुमायूँ की स्थिति बहुत ही दयनीय थी क्यूकी वह शेरशाह सूरी से पराजित हो गया था|

अकबर का प्रारंभिक जीवन बहुत ही कठिनाइयों में व्यतीत हुआ, जब उसका जन्म हुआ था तो उसके पिता हुमायूँ के पास उसका जन्मोत्सव मानने के लिए कुछ नही था, उसके पास केवल एक कस्तूरी* थी जिसको तोड़कर हुमायूँ ने अपने सरदारों मे बाँटा था|

**कस्तूरी एक ऐसा पदार्थ है जिसमें एक तीक्ष्ण गंध होती है और यह नर मृग में स्थित एक ग्रंथि से प्राप्त होती है|

Akbar History in Hindi-

अकबर के जन्म के पश्चात हुमायूं को भारत से पलायन करना पड़ा था, जिस समय हुमायूँ ने फारस के लिए प्रस्थान किया| उस समय अकबर की आयु मात्र 1 वर्ष की थी इसलिए हुमायूँ उसे अपने भाई अस्करी के पास कंधार में छोड़ गया|

1545 में अकबर को हुमायूं की बहन खानजादा बेगम के साथ काबुल भेज दिया गया, 15 नवंबर 1545 को हुमायूं ने कामरान से काबुल जीत लिया, इस जीत के बाद अकबर हुमायूं के पास आ गया| 1546 काबुल पुनः कामरान के पास आ जाने से अकबर भी कामरान के ही संरक्षण में पड़ गया|

अप्रैल 1547 ईस्वी में हुमायूं ने पुनः काबुल दुर्ग पर चढ़ाई करके घेरा डाल दिया और वहां भयंकर गोलीबारी हुई| गोलाबारी के समय कामरान ने अकबर को किले की दीवार पर बिठा दिया था किंतु सौभाग्य से अकबर बच गया और काबुल पर हुमायूं का पुनः अधिकार हो गया| 1551 ईस्वी में भारत लौटने पर हुमायु ने अकबर को लाहौर का गवर्नर बना दिया और बैरमखाँ को उसका संरक्षक नियुक्त कर दिया|

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अकबर महान का सिंहासनारोहण

जब हुमायूं की मृत्यु हुई, तब अकबर पंजाब में था जहां वह बैरमखां के साथ वहां के सूबेदार अबुलमाली के आतंक एवं कुप्रबंध का अंत करने गया था| पंजाब से लौटते हुए कलानौर में उसे अपने पिता हुमायूं की अकाल मृत्यु का समाचार प्राप्त हुआ|

हुमायूं की मृत्यु का समाचार सुनकर अकबर बहुत ही दुखी हुआ और उस समय उसके सबसे विश्वास पात्र सरदार बैरम खान ने उसे धैर्य बँधाया| बैरम खान ने सरदारों को शोक बनाने की विधियां पूरी करने को कहा| शोक मनाने की विधियां पूर्ण होने के पश्चात सरदारों ने अकबर के राज्य अभिषेक की तैयारी की|

बैरम खान ने 14 जनवरी 1556 ईस्वी को एक साधारण बाग में महान सम्राट अकबर का राज्यारोहण किया, और हुमायूं की राजगद्दी पर उसे बिठाया| जिस समय अकबर सिंहासन पर विराजमान हुआ उस समय उसकी उम्र केवल 13 वर्ष की थी, और उसे राज्य कार्य में बहुत अधिक अनुभव नहीं था, इसीलिए उसके पिता का विश्वास पात्र सरदार एवं मित्र बैरमखां राज्य की देखभाल करने लगा|

अकबर की मृत्यु-

Akbar ki Mrityu- अकबर मुगल वंश का सम्राट था, वह मुगल के अतिरिक्त अन्य सभी धर्मों के प्रति आदर एवं सम्मान का भाव रखता था, और वह सभी धर्मों के प्रति उदार था| इन्हीं कारणों से अकबर ने एक नया धर्म “दीन-ए-इलाही” की स्थापना की| उसने फतेहपुर सीकरी में एक इबादत खाना का निर्माण करवाया जिसे प्रार्थना गृह कहा जाता है|

इस इबादत खाने में वह सभी धर्मों एवं संप्रदायों के व्यक्तियों से धार्मिक चर्चाएं करता था| मुगल वंश के महान सम्राट अकबर की मृत्यु 27 अक्टूबर सन 1605 ईस्वी में हुई|

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अकबर का मकबरा-

Akbar ka Maqbara- उत्तर प्रदेश में 75 जिले हैं जिनमें से आगरा भी एक है| आगरा से ही 4 किलोमीटर की दूरी पर सिकंदरा स्थित है, और यहीं पर मुगल सल्तनत के बादशाह अकबर का मकबरा स्थित है| इस मकबरे का निर्माण अकबर नहीं शुरू करवाया था परंतु इस मकबरे के पूरा होने के पहले ही अकबर की मृत्यु हो गई थी|

इसके बाद अकबर के पुत्र जहांगीर ने इस मकबरे का निर्माण कार्य पूरा करवाया| इस मकबरे के निर्माण में हिंदू, इस्लामिक, बौद्ध, ईसाई और जैन कलाओं का मिश्रण किया गया है| यह मकबरा लगभग 119 एकड़ में फैला हुआ है।

सिकंदरा का नाम जहां पर अकबर का मकबरा स्थित है लोदी वंश के शासक सिकंदर लोदी के नाम पर पड़ा था| अकबर के मकबरे के चारों कोनों पर तीन मंजिला मीनारें बनाई गई हैं| इन मीनारों को बनाने में लाल पत्थर प्रयोग में लाया गया जिन पर संगमरमर से सुंदर काम किया गया है| मकबरे के चारों ओर खूबसूरत बगीचा स्थित है और यहीं पर बरादी महल भी स्थित है जिसका निर्माण सिकंदर लोदी ने करवाया था|

अकबर के नवरत्न-

नवरत्न एक ऐसा शब्द था जोकि भारत के सम्राट की अदालत में नौ असाधारण लोगों के समूह के लिए प्रयोग किया जाता था| जैसा की हम सभी जानते हैं कि महान सम्राट अकबर एक निरक्षर राजा था परन्तु निरक्षर होने के बावजूद भी वह अपने साम्राज्य में कलाकारों और बुद्धिजीवियों को काफी बढ़ावा देता था|

अकबर के महान दिमाग में ज्ञान प्राप्त करने और सीखने का जूनून था और इसी जुनून के कारण उसने 9 प्रतिभाशाली लोगों को अपने राज दरबार में एक अलग स्थान और पद प्रदान किया | इन 9 व्यक्तियों के समूह को अकबर के नवरत्न के नाम से जाना जाता है| अकबर के नवरत्नों का सविस्तार वर्णन अग्रलिखित है-

बीरबल- अकबर के नवरत्नों में बीरबल का नाम प्रमुख एवं अग्रणी है| बीरबल का जन्म सन 1528 में कालपी में हुआ था, जोकि मध्य प्रदेश में स्थित है| बीरबल के बचपन का नाम महेश दास था| और यह एकमात्र ऐसे हिंदू राजा थे जिन्होंने अकबर के द्वारा संचालित दीन-ए-इलाही धर्म को ग्रहण किया था| यूसुफ जाईयों के विद्रोह को दबाने में बीरबल की मृत्यु हो गई थी और अकबर ने बीरबल को राजा की उपाधि दी थी|

टोडरमल- अकबर के नवरत्नों में से एक टोडरमल का जन्म उत्तर प्रदेश के बरेली जिले में हुआ था| आपने अपना कार्यकाल शेरशाह सूरी के समय में शुरू किया था| अकबर के शासनकाल में आप एक वित्त मंत्री के पद पर कार्यरत थे| टोडरमल ने ही सन 1580 ईस्वी में दहसाला बंदोबस्त प्रणाली लागू की थी| टोडरमल ने ही जलालुद्दीन मोहम्मद को अकबर की उपाधि प्रदान की थी|

तानसेन- महान संगीतज्ञ तानसेन अकबर के दरबार में संगीतज्ञ के रूप में कार्यरत थे| तानसेन के बचपन का नाम तनु पांडे था| तानसेन की जन्म तिथि और जन्म का स्थान स्पष्ट नहीं है, लेकिन अधिकांश इतिहासकारों ने इनकी जन्म तिथि 1500 के आस पास बताई है| तानसेन का मकबरा मध्य प्रदेश का जिला ग्वालियर में स्थित है|

बैरम खान- बैरम खान का जन्म बदख्शां में हुआ था और वह अकबर के संरक्षक के तौर पर नियुक्त किए गए थे| बैरम खान ने ही अकबर को तलवारबाजी एवं युद्ध कला में पारंगत किया था| कालांतर में कुछ मतभेदों के कारण अकबर ने बैरम खां को अपने मंत्रिमंडल से निष्कासित कर दिया था और तीर्थ यात्रा पर जाते हुए उड़ीसा के पास में बैरम खां की हत्या कर दी गई थी|

बैरम खान का इतिहास पढ़ने के लिए क्लिक करें

अबुल फजल- अबुल फजल का जन्म 14 January 1551 को हुआ था| अबुल फजल अकबर के नवरत्नों में में से एक है और अबुल फजल ने ही आईने अकबरी एवं अकबरनामा की रचना की थी| दीन ए इलाही धर्म के प्रधान पुरोहित के रूप में अबुल फजल का नाम आता है| कुछ मतभेदों के कारण 1602 ईसवी में जहांगीर के इशारे पर वीर बुंदेल ने अबुल फजल की हत्या कर दी|

अबुल फजल के भाई का नाम फैजी था, फैजी ने ही आईने अकबरी के लेखन की शुरुआत की थी और इस पुस्तक का अंत अबुल फजल ने किया था| इसके अलावा अबुल फजल ने विष्णु शर्मा की पुस्तक पंचतंत्र का फारसी में अनुवाद करवाया था| अबुल फजल की ही प्रेरणा से मजहर नामक दस्तावेज की शुरुआत हुई थी|

अब्दुल रहीम खानखाना- बैरम खान की मृत्यु के पश्चात अकबर ने बैरम खान की पत्नी से विवाह कर लिया था और उनके पुत्र अब्दुल रहीम खानखाना को अपने पुत्र जैसा प्रेम दिया| अब्दुल रहीम खानखाना की शिक्षा की व्यवस्था अकबर ने ही करवाई थी| और इन्होंने ही बाबरनामा का फारसी में अनुवाद भी करवाया था|

मानसिंह- मान सिंह आमेर के राजपूत राजा थे| मानसिंह अकबर के नवरत्नों में से एक थे और उन्होंने कई युद्धों में अकबर का साथ दिया था| मान सिंह की बहन मान भाई का विवाह अकबर के पुत्र जहांगीर से हुआ था| इनकी पुत्री मनोरमा बाई का विवाह शाहजहां के पुत्र दारा शिकोह से हुआ था|

मुल्ला दो प्याजा- मुल्ला दो-प्याजा के विषय में इतिहासकारों में मतभेद है कुछ इतिहासकार इन्हे एक कल्पना मात्र मानते हैं जोकि मुगल सम्राट अकबर और उनके दरबारी बीरबल की लोक कथाओं की एक श्रृंखला से एक चरित्र है।

फ़ैज़ी- फ़ैज़ी अकबर के नवरत्न होने के साथ ही साथ एक प्रसिद्ध कवि थे|

फकीर अज़ुद्दीन- फकीर अज़ुद्दीन एक सूफी फकीर थे| आप अकबर के नवरत्न होने के साथ ही साथ अकबर के एक प्रमुख सलाहकार थे|

सम्राट अकबर का शासन प्रबंध-

राज गद्दी पर बैठने के लगभग 4 वर्ष पश्चात 1560 ई में अकबर ने स्वतंत्रता पूर्वक अपना शासन कार्य आरंभ किया| उसने 1562 ईस्वी में युद्ध में पकडे गए सिपाहियों एवं आम जनता को गुलाम बनाने की प्रथा को समाप्त कर दिया| 1563 ईस्वी में उसने तीर्थ यात्रा पर लगने वाले कर (जिसको की तीर्थ यात्री कर कहा जाता था) को भी समाप्त कर दिया|

सन 1564 ईस्वी में उसने हिंदुओं से लिया जाने वाला जजिया कर समाप्त कर दिया| अकबर ने अपनी राज्य का विस्तार करने एवं संपूर्ण भारत को जीतने के लिए दल, बल, मित्रता तथा भेद की नीतियों का सहारा लिया| मालवा, चुनार, मेरठ, रणथंभोर, जौनपुर, गोंडवाना, मारवाड़, कालिंजर, गुजरात, बंगाल, कश्मीर, बिहार, काबुल, सिंध, उड़ीसा तथा दक्षिण भारत की भागों पर उसने विजय प्राप्त कर ली|

इस तरह से उसने लगभग संपूर्ण भारत पर अपनी विजय प्राप्त कर ली परंतु चित्तौड़ पर अभी भी उसकी विजय नहीं हुई थी| 1567-68 ईस्वी में महाराणा प्रताप से एक लंबे संघर्ष के बाद उसका चित्तौड़ पर अधिकार हो गया| राजपूत राजाओं ने जयमल और पत्ता के नेतृत्व में अकबर को कठिन चुनौतियां प्रस्तुत की थी| जिसमें गोंडवाना राज्य की रानी दुर्गावती एवं मेवाड़ के शासक महाराणा प्रताप प्रमुख थे|

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सम्राट अकबर की नीतियां-

अकबर एक कुशल शासक, राजनीतिज्ञ एवं चतुर सम्राट था| वह जानता था कि हिंदू राजाओं एवं हिंदुओं के सहयोग के बिना वह अपना राज्य विस्तार नहीं कर सकता है, और जिन राज्यों पर उसने अभी तक अपना अधिकार किया है उन पर अधिकार बनाए रखने के लिए उसे हिंदुओं की आवश्यकता पड़ेगी|

इसीलिए उसने अपने राज्य में कई हिंदुओं को मनसबदार बनाया| इन मनसबदारों में अधिकतर राजा राजपूत थे| इन राजपूत राजाओं से उसने व्यक्तिगत एवं वैवाहिक संबंध स्थापित किए| उसने भगवान दास, बीरबल, टोडरमल, राजा मानसिंह एवं अंय कई राजपूत राजाओं को उच्च मनसब प्रदान किए|

उसने हिंदुओं के लिए अलग से नीतियां बनाई और बीकानेर, आमेर, जैसलमेर जैसे राजघरानों की राज कन्याओं से विवाह किया| और कालांतर में उसकी यह नीति उसके लिए बहुत ही लाभदायक सिद्ध हुई| इसके अतिरिक्त जिन राजपूत राजाओं ने अकबर की इस नीति और अधीनता को अस्वीकार किया उनके विरुद्ध उसने युद्ध किए|

अकबर की अधीनता स्वीकार करने में मेवाड़ के महाराणा प्रताप का नाम सर्वोच्च है| महाराणा प्रताप के विरुद्ध उसने युद्ध का निर्णय लिया और अकबर एवं महाराणा प्रताप की सेनाओं के मध्य 21 जून सन 1576 ईस्वी में हल्दीघाटी के प्रसिद्ध मैदान में युद्ध हुआ|


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